देश अभी माता वैष्णो देवी मंदिर भगदड़ के सदमें में उबरा भी नहीं था कि उत्तर प्रदेश के बरेली में कांग्रेस द्वारा आयोजित ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ मैराथन दौड़ में भगदड़ मचने से तीन लड़कियां घायल हो गर्इं। इस मैराथन में प्रशासन की ओर से दो सौ लड़कियों को शामिल होने की अनुमति प्रदान की गई थी, लेकिन अपनी शक्ति दिखाने के लिए पार्टी ने अधिक लड़कियों को इकट्ठा कर लिया और यही भगदड़ की वजह बनी। कांग्रेस पार्टी अतीत की गलतियों से सबक सीखने को तैयार नहीं है। कांग्रेस अपनी भूल स्वीकार करने के बजाय उसकी राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि इस तरह के आयोजन होते हैं तो ऐसी कुछ छिटपुट घटनाएं तो हो जाती हैं।
अपनी राजनीति चमकाने के लिए मासूम बच्चों को मोहरा बनाना एक नैतिक अपराध है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव निकट आ चुका है, इसलिए सभी पार्टियां कोरोना प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ाते हुए अपनी शक्ति प्रदर्शन कर रही हैं। देश में कोरोना महामारी की तीसरी लहर आ चुकी है, ऐसी परिस्थिति में राजनीतिक दलों को नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए रैलियों और भीड़ इकट्ठा करने की प्रवृत्ति को त्यागना चाहिए। जब बच्चे आनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं, तो नेतागण आनलाइन प्रचार क्यों नहीं करते?
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया
चीन के कदम
जून, 2020 में हुए गलवान घाटी मुठभेड़ से हमें सीख लेनी चाहिए थी, जो हम नहीं ले पा रहे। दुनिया जानती है, चीन अपनी प्रोपेगैंडावादी नीति के चलते अपने विरोधियों पर दबाव बनाता है। समय-समय पर किसी न किसी विवाद पर कोई फोटो या वीडियो जारी करके अपने लोगों को खुश करने की कोशिश करता है और इसी जाल में हम सबसे बड़े लोकतंत्र को फंसते देख रहे हैं। भारत भले ही सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन यहां के नेता इस उपलब्धि के कतई हकदार नहीं रहेंगे। कुछ समय पहले चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ एक प्रोपेगैंडा वीडियो जारी किया था, तो अमेरिकी सरकार और विपक्ष ने करारा जवाब दिया था। लेकिन यही घटना जब हमारे साथ घटती है तो हमारा विपक्ष भारतीय सेना का पक्ष जाने बिना ही चीनी प्रोपेगैंडा का हिस्सा बन जाता है और भारत पर ही सवाल उठने लगता है। यह सब देश के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं। सोचें, उस सैनिक पर क्या बीत रही होगी, जो आज चीन से आंखें मिला रहा है।
’जय कुमार मेघवाल, जयपुर</p>
नकली सम्मान
महिला सशक्तिकरण की आड़ में महिलाओं को आज इतनी तवज्जो दी जा रही है कि राह चलते अगर कुछ घटना होती है, तो लड़का पक्ष उससे कुछ बोल पाने की हिम्मत भी नहीं करता। अगर गलती से कोई कुछ बोल भी देता है तो लड़की के ताने तो सुनता ही है, आसपास के लोग बिना बात जाने बस उसे मारने पर उतारू हो जाते हैं। इस महिला को सशक्त करने के बाजाय हम उसे सारी सुविधाएं हाथ में देकर निशस्त्र जरूर बना रहे हैं। अगर सशक्त बनाना है तो उसे आरक्षण और छद्म स्त्रीवाद की नहीं, बल्कि सम्मान की जरूरत है।
’राखी पेशवानी, भोपाल</p>