आइसीसी द्वारा आयोजित वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल के बाद भारतीय कप्तान विराट कोहली द्वारा कहे गए कथन “दुनिया में सर्वश्रेष्ठ टेस्ट टीम का फैसला सिर्फ एक बार का खेल, तीन टेस्ट सर्वश्रेष्ठ आदर्श” पर क्रिकेट जगत खासकर भारतीय क्रिकेट प्रेमियों में कौतूहल का विषय बन गया है। कोई इसे सही कह रहा तो कोई इसे गलत मान रहा। इसी कड़ी में मेरा मानना है कि फाइनल में भी एक और शृंखला हो, यह सही नहीं।
अगर हम फाइनल में तीन मैचों की एक शृंखला कराएं और उसमें से एक टीम पहले दो मैच जीत जाए और बाकी बचे एक मैच के होने और न होने का कोई मलतब नहीं रह जाएगा। रही बात सभी टीम वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के दौरान शृंखला क्यों खेलती हैं? तो टेस्ट शृंखला तो पहले भी खेली जाती थी पर उसे एक मंच देने के लिए और रोमांचक बनाने के लिए आइसीसी ने वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का नाम देकर टेस्ट क्रिकेट को एक पहचान देने की कोशिश की। जिसका पहला संस्करण सफल रहा और दुनिया को एक नया टेस्ट चैंपियन मिला।
’सफी अंजुम, रामपुर डेहरु, मधेपुरा
म्यांमा का साथ!
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र से भारतीयों को हैरान करने वाली खबर आई। म्यांमा में तख्तापलट के बाद जारी संकट में साढ़े आठ सौ से अधिक नागरिकों को सेना द्वारा मौत के घाट उतारे जाने को लेकर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर भारत ने असहमति जताई है। इतना ही नहीं वह चीन और रूस जैसे तानाशाह देशों का साथ देते हुए मतदान से अनुपस्थित रहा। इसका मतलब ये हुआ कि म्यांमा के सैन्य शासकों को सबसे बड़े लोकतंत्र का साथ मिल गया। एक सौ उन्नीस देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था। अब भारतीय विदेश विभाग के लोग ज्यादा समझदार होंगे। उन्हें लगा होगा की पड़ोसी देश में सैन्य शासक के साथ अच्छे संबंध हो सकते हैं। मुझे तो साथ देने का जो कारण नजर आ रहे है वह यह कि इन्हीं सैनिकों ने रोहिंग्या मुसलमानों का कत्ले आम किया। उन्हें देश से भगाया। यह भारत के लिए संतोष की बात हो सकती है।
’जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर