मनुष्य ने अपनी विकास यात्रा के दौरान अलग-अलग व्यवस्थाओं का अनुभव किया है। ऐसी ही एक व्यवस्था आज मानव के जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी है, जिसका नाम डिजिटल दुनिया है। इसमें मनुष्य ने बड़ी तीव्रता के साथ प्रवेश किया है और सफलता के नए आयामों को भी स्थापित किया है। लेकिन आज इस व्यवस्था पर होते हमले एक चिंताजनक स्थिति को दर्शाते हैं, जिन्हें हम साइबर हमलों के नाम से जानते हैं।

इस विकट स्थिति को हम एक हाल के घटनाक्रम से जोड़कर देख सकते हैं। गौरतलब है कि जब ‘बिग बास्केट’ जैसी नामचीन कंपनी के करीब दो करोड़ उपभोक्ताओं की गोपनीय जानकारी चुरा ली गई, जिसमें उपभोक्ताओं के नाम, ईमेल, पासवर्ड, पता, आइपी एड्रेस जैसी संवेदनशील जानकारियां शामिल हैं। कोविड-19 के दौर में डिजिटल दुनिया में व्यापक स्तर पर विस्तार देखने को मिला है। खासतौर पर घर से काम करने और आॅनलाइन शिक्षा का अत्याधिक प्रयोग। यही कारण है कि इस पर भी साइबर हमले होने की आशंका बनी रहती है।

अगर हम भारत के संदर्भ में बात करें तो आज भारत साइबर हमलों के मामले में अग्रणी देशों में शामिल है। ऐसा भी नहीं है कि भारत सरकार ने साइबर अपराध को कम करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया हो। इसके लिए सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 पारित किया, वहीं साइबर अपराध करने वालों के लिए दो साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा या जुमार्ना या दोनों का प्रावधान किया है। वहीं राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति का गठन किया गया है।

इन सब प्रयासों के बावजूद आज भी हमारे सामने साइबर हमले को लेकर कई चुनौतियां हैं। पहली चुनौती कुशल मानव संसाधन की कमी, दूसरी चुनौती आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बौद्धिकता और ब्लॉकचेन तकनीकी डाटा विश्लेषण की समझ रखने वाले पेशेवरों की कमी है। तीसरी चुनौती साइबर सुरक्षा से जुड़े विनियामक संगठनों की कार्यप्रणाली में एकरूपता का अभाव है।

चौथी चुनौती के रूप में साइबर सुरक्षा उपकरणों के लिए भारत आज भी दूसरे देशों पर निर्भर है। पांचवीं चुनौती यह है कि भारत में डिजिटल साक्षरता की बेहद कमी है। अगर सरकार इस ओर ध्यान देती है तो निश्चित रूप से हम काफी हद तक इस समस्या से पार पा सकते हैं।
’सौरव बुंदेला, भोपाल, मप्र

साझा हित

ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का ब्रिक्स का बारहवां शिखर सम्मेलन रूस की अध्यक्षता में कोविड-19 के दौर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संपन्न हुआ। इस वर्ष अपने उद्देश्य वैश्विक स्थिरता, साझा सुरक्षा और अभिनव विकास की संकल्पना के साथ संपन्न बैठक अपने आप में वैश्विक रंगमंच पर काफी व्यापक प्रभाव छोड़ता है। कहने को तो यह अन्य संगठन की तरह आर्थिक, राजनीतिक, क्षेत्रीय और सहकारी संगठन के रूप में ही है, पर जनसंख्या के अनुपात में पूरी दुनिया की बयालीस फीसद आबादी से जुड़ा है।

सकल घरेलू उत्पाद का तेईस फीसद और वैश्विक व्यापार की दृष्टि से सत्रह फीसद हिस्सा ब्रिक्स देशों के अंतर्गत है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बैठक में उठाए गए मुद्दे वर्तमान समय में काफी समीचीन हैं। विशेषकर इस मायने में कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की काफी अधिक आवश्यकता है।

अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से निपटना पूरे वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी होनी चाहिए। पीड़ित भारत बार-बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस संदर्भ में अपनी बात कहता रहा है, पर भारत की बातों की हमेशा अनदेखी की जा रही थी। इसका खामियाजा आज अन्य देश भी उठा रहे हैं। ब्रिक्स देशों के अंतर्गत भारत और चीन के बीच उभरे मतभेद भी अगर समाप्त हो जाएं तो न केवल दक्षिण एशिया के लिए, बल्कि पूरे विश्व की विशाल आबादी के लिए राहत भरी बात होगी। अंतरराष्ट्रीय समाज को साम्राज्यवादी देशों द्वारा बरती जाने वाली आक्रामकता को भी समझने की जरूरत है।
’मिथिलेश कुमार, भागलपुर, बिहार