इसमें यह भी सिफारिश की कि सरकार को सभी तंबाकू उत्पादों पर करों में वृद्धि करनी चाहिए और अर्जित राजस्व का उपयोग कैंसर की रोकथाम और जागरूकता के लिए करना चाहिए।
सवाल यह है कि ‘सिंगल स्टिक सिगरेट’ पर ध्यान देने की जरूरत क्यों पड़ी? पूरे डिब्बे की तुलना में अधिक किफायती इस तरह लिए गए सिगरेट विशेष रूप से वैसे किशोरों और युवाओं के लिए अपील कर सकते हैं, जिनके हाथ में सीमित पैसा हो सकता है। यह उन लोगों द्वारा पसंद किया जाता है जो उन्हें प्रयोग के लिए ले जाना चाहते हैं और उन्होंने नियमित आधार पर धूम्रपान शुरू नहीं किया है। एक संभावित उपभोक्ता को पूरा पैक खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इस प्रकार संभावित प्रयोग और नियमित सेवन की गुंजाइश पर अंकुश लगाए जा सकते हैं। ‘सिंगल स्टिक सिगरेट’ बिक्री आसानी से सुलभ है।
तंबाकू उत्पादकों की खपत और पहुंच पर अंकुश लगाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी है कि सरकार तंबाकू उत्पादों की बिक्री को रोकने के लिए प्रभावी उपाय करे। हवाई अड्डों, होटलों और रेस्तरां में भी सभी निर्दिष्ट धूम्रपान क्षेत्रों को समाप्त करने का भी सुझाव दिया जाता है। स्वयंसेवी संगठनों में धूम्रपान मुक्त नीति को प्रोत्साहित करने के लिए कवायद शुरू करने की जरूरत है। इसके साथ ही गुटखा और पान मसालों और इनके विज्ञापनों पर भी रोक लगाने की जरूरत है।
आज सच यह है कि युवा पीढ़ी एक गलत रास्ते को पकड़ कर अपना जीवन बर्बाद करती जा रही हैं। सेहत के लिए जागरूकता कार्यक्रम के समांतर यहां धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत है, ताकि लोगों को इससे निजात मिल सके। एक स्वस्थ और संतुलित व्यक्ति के लिए धूम्रपान कहीं से भी सही नहीं है।
एस कुमार, लालगंज, वैशाली
सियासी बिसात
जम्मू-कश्मीर में पूर्व उपमुख्यमंत्री ताराचंद सहित सत्रह जनाधार वाले नेताओं के द्वारा कांग्रेस में वापसी ने सभी विपक्षी नेताओं की नींद उड़ा दी है। ये सभी कांग्रेस के दिग्गज नेता और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद की पार्टी में शामिल हुए थे। जम्मू-कश्मीर की राजनीति में यह घटना कांग्रेस को संजीवनी देने का काम कर सकती है।
गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने के बाद यह लगने लगा था कि कांग्रेस नाममात्र की रह गई है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में जीत हासिल करने करने के बाद ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मिल रहे अपार समर्थन के कारण पहाड़ों की राजनीति में कांग्रेस की प्रासंगिकता और भूमिका एक बार फिर बढ़ गई है।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भाजपा को लगने लगा था कि इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के विरोधी दलों और नेताओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करके अपनी सरकार बनाई जा सकती है। परिसीमन के दौरान जम्मू क्षेत्र की विधानसभा की संख्या को बढ़ाया जाना भी भाजपा के लिए फायदे का सौदा था।
लेकिन इन सत्रह नेताओं की कांग्रेस वापसी से इस बात की संभावना बढ़ गई है कि फारूक अब्दुल्ला कांग्रेस के साथ समझौता करेंगे। आने वाले दिनों में कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में मजबूत हो सकती है। इसके बाद गुलाम नबी आजाद पर भी राजनीतिक दबाव बढ़ सकता है कि वे कोई स्पष्ट दिशा जनता को बताएं।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली</p>
नशे का सफर
एक नशे के लती यात्री ने उड़ते विमान में ही एक महिला यात्री पर पेशाब कर दिया। जब महिला यात्री के साथ अन्य यात्रियों ने विरोध किया तो वह गाली-गलौज और मारपीट पर उतर आया। इसी तरह की एक और घटना हुई। आखिर ऐसे लोगों ने विमान को क्या समझ लिया है? देशभर में जिन प्रदेशों में शराबबंदी नहीं है, वहां शराबबंदी की मांग की जा रही है।
उधर दिल्ली में नई शराब नीति की तैयारी चल रही है, जहां व्यापारी सुझाव दे रहे हैं कि पीने की उम्र पच्चीस से घटाकर इक्कीस कर दी जाए और ग्राहकों को अच्छा अनुभव देने के लिए बड़े बाजारों और निजी शराब दुकान खोलने की अनुमति दे दी जाए। मतलब कि शराब का कारोबार बढ़ाने की कवायद की जा रही है, ताकि निजी शराब दुकान वालों की आमदनी भी बढ़ सके और सरकारी राजस्व भी। सवाल है कि पूरे देश में कैसे शराबबंदी हो पाएगी और कैसे सरकार का नशामुक्ति का आंदोलन सफल होगा?
महेश नेनावा, इंदौर, मप्र
विकास की कीमत
जोशीमठ में हो रहे भूस्खलन के लिए भू-वैज्ञानिकों की रिपोर्ट और पर्यावरणविदों की चेतावनी तथा आंदोलनों के बाद भी सरकारों के समय रहते नहीं जागने का दुष्परिणाम आज स्थानीय लोग भुगत रहे हैं, जो अपने घर, जमीन, खेती-बाड़ी को अपने सामने समाप्त होते देख रहे हैं। प्राकृतिक कम, बल्कि अधिकांश इस मानव निर्मित आपदा के संकेत लगभग एक वर्ष पहले से मिलने प्रारंभ हो गए थे, लेकिन समय रहते स्थानीय प्रशासन और जिम्मेदारों की नींद नहीं खुली।
अब जब सब कुछ तबाह होने की कगार पर है, तब प्रशासन ने हेलंग बाइपास और एनटीपीसी की तपोवन जल विद्युत परियोजना सुरंग निर्माण सहित सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगाया है। जोशीमठ से सबक लेकर अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में किए जा रहे अनियंत्रित विकास कार्यों की विभिन्न स्तरों पर समीक्षा की जानी चाहिए, जिससे इस प्रकार की पुनरावृत्ति से बचा जा सके। विकास होना चाहिए, लेकिन अस्तित्व ही समाप्त होने की कीमत पर नहीं।
रामबाबू सोनी, कसेरा बाजार, इंदौर
कानून के बावजूद
यह अब कोई नई बात नहीं रह गई है कि दहेज एक सामाजिक बुराई है और इसके लिए बहुत ही जघन्य अपराध होते हैं इस समाज में। विवाहों में दहेज को भेंट के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसकी वजह से बहुत से घर बिखर जाते हैं। परंपरा के इस पहलू ने गरीब परिवारों का बहुत कुछ उजाड़ा है। समाज में बहुत से परिवार ऐसे भी होते हैं, जो पहले दहेज तो नहीं लेते हैं, लेकिन शादी हो जाने के बाद लड़की को बहुत ही परेशान करते हैं दहेज के लिए।
दहेज प्रथा महिलाओं के खिलाफ अपराध को भी जन्म देती हैं। इसमें भावनात्मक शोषण और चोट से लेकर मौत तक शामिल है। सरकार ने दहेज प्रथा को हटाने के लिए कानून लागू तो कर दिया फिर दहेज लेना बंद नहीं हुआ है। क्या सरकार को इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत कभी लगती है? दहेज को समाप्त करना है तो लोगों की सामाजिक और नैतिक चेतना को प्रभावी बनाना होगा, महिलाओं को शिक्षा तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना होगा और दहेज प्रथा के खिलाफ कानून को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा।
शैली आर्या, रांची