अब समय आ गया है कि हमें न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के साथ-साथ किसानों की आय दुगनी करने के लिए अन्य उपाय खोजने होंगे, जिससे सरकार और किसान दोनों को फायदा हो। हमें पानी की अधिक खपत करने वाली फसलों को त्याग कर ऊंची कीमत वाली फसलों के उत्पादन की तरफ उन्मुख होना होगा। जैसे केरल में काली मिर्च और रबर, कर्नाटक में रेशम, महाराष्ट्र में केला और प्याज, आंध्र में पाम, बिहार में पान, ओड़ीशा में हल्दी और उत्तर प्रदेश में आम आदि फसलें होती हैं। इन्हें और बढ़ाया जा सकता है। सरकार को चाहिए ऐसी महत्त्वपूर्ण योजना बनाए। देश के हर जिले में उसकी जलवायु के हिसाब से उच्च कीमत की खेती की जाए।

हमारे देश जैसी लचीली जलवायु किसी भी देश में नहीं है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बारह महीने अलग-अलग जलवायु रहती है। हमें देश के हर जिले में जलवायु के हिसाब से उच्च कीमत की फसलें बोनी होंगी, ताकि किसानों को उच्च दाम मिल सके और उनकी आमदनी बढ़ सके। फ्रांस के एक कृषि कर्मी को एक दिन का बारह हजार रुपए मिल जाता है।
’चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग, दिल्ली</p>

विषमता की खाई

किसी भी समाज या देश में किसी भी प्रकार की बढ़ती असमानता वहां अराजकता का माहौल पैदा कर सकती है। हाल ही में विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 जारी की गई है, जिसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक असमानता में वृद्धि हुई है और अगर हम रिपोर्ट में भारत के स्थान की बात करें तो भारत को दुनिया के सर्वाधिक असमानता वाले देशों में शामिल किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में भारत में एक फीसद सबसे अमीर लोगों के पास कुल राष्ट्रीय आय का बाईस फीसद हिस्सा है। इसके अलावा, उदारीकरण और आर्थिक सुधारों से शीर्ष वर्ग को ही अधिक लाभ हुआ है। एक तथ्य यह भी है कि भारत में मध्यम वर्ग अपेक्षाकृत कम धनी है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में हर चार में से एक व्यक्ति बहुआयामी गरीब है।

यह सवाल फिर उठता है कि इतने वर्षों के प्रयास के बाद भी हमारे बीच आर्थिक असमानता की खाई बढ़ने के क्या कारण हैं। भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता के पीछे वैसे तो कई कारण हो सकते हैं जैसे जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव। कौशल युक्त शिक्षा की कमी भी एक बड़ा कारण है। इन सबके बावजूद कुछ प्रमुख कारण हैं। गलत आर्थिक नीतियों का निर्माण एवं उनके क्रियान्वयन में कई त्रुटियों के अलावा वर्तमान महामारी भी वजह है, जिसकी दो लहरों के चलते की गई पूर्णबंदी ने भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुंचाई। इसी वजह से लघु-मध्यम उद्योगों पर विपरीत प्रभाव पड़ा।

देश में बढ़ते राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के चलते भी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी तक इसका उचित लाभ नहीं पहुंच पाता है। फिर हमारे देश की आबादी का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है और इस क्षेत्र में कार्यरत आबादी के लिए सरकारों की ओर से कोई ठोस और जवाबदेह कानूनों को नहीं बनाया जाता है। आर्थिक भागीदारी में महिलाओं की हिस्सेदारी काफी कम होने के साथ-साथ देश में लगातार बढ़ती बेरोजगारी और मुद्रास्फीति सबसे बड़े कारणों में से एक है। हमने पिछले कुछ सालों में देखा है कि देश में लगातार कर चोरी में वृद्धि हुई है। हाल में सामने आया पंडोरा नामक पेपर में देश के नामचीन लोगों का नाम शामिल था।
’सौरव बुंदेला, भोपाल, मप्र