जो परिवार कभी कांग्रेस की ताकत हुआ करता था, आज वही परिवार कांग्रेस के पतन का कारण बन चुका है। पिछले तेईस वर्षों से सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में कांग्रेस का पिछले दो लोकसभा चुनाव में बेहद निराशाजनक प्रदर्शन रहा है। कई राज्यों से कांग्रेस की सरकार की विदाई हो चुकी है।

पार्टी के कई युवा नेता पार्टी छोड़ कर दूसरे दलों में शामिल हो चुके हैं। सोनिया गांधी अपने पुत्र मोह से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। इतिहास साक्षी है कि पुत्र मोह के कारण कौरव जैसे शक्तिशाली वंश का विनाश हुआ। हमारे देश के चक्रवर्ती राजा भरत ने अपने अयोग्य पुत्रों को छोड़कर राज्य के एक योग्य नागरिक को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। लोकतंत्र में पार्टी के बनने और समाप्त होने का खेल चलता रहता है। भारत में भी कई पार्टियां बनी हैं और समाप्त हुई है। कांग्रेस को अतीत से सीखना चाहिए, अन्यथा इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया

संकट में ममता

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस एक के बाद एक विधायक और संसद सदस्य पार्टी छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामते जा रहे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस को आए दिन ऐसे झटके लग रहे हैं। जिस बहुमत के साथ तृणमूल कांग्रेस की मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल की अपनी सरकार चला रही थीं, अब उसमें सेंध लगती जा रही है।

जो विधायक लंबे समय से ममता बनर्जी का साथ दे रहे थे, वे भारतीय जनता पार्टी की तरफ जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि आने वाले दिनों में तृणमूल कांग्रेस पार्टी में केवल नए सदस्य ही उम्मीदवार होंगे और ज्यादातर पुराने सदस्य पार्टी छोड़ चुके होंगे। इसका एक बड़ा कारण ममता बनर्जी का अड़ियल रवैया भी है। विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही जिस प्रकार से पार्टी बदलने का अभियान चल रहा है, उससे तो लगता है कि आने वाले दिनों में ममता बनर्जी अकेले ही चुनाव में मैदान में खड़ी नजर आएंगी।
’विजय कुमार धनिया, दिल्ली</p>

बजट से उम्मीदें

कोरोना महामारी काल में देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। सरकार अब बजट पेश करने वाली है। ऐसे में लोगों को सरकार से काफी उम्मीदें हैं। हालांकि सरकार के समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं और हालात को पटरी पर लाने में अभी लंबा वक्त लगेगा। सिर्फ कृषि क्षेत्र में सकारात्मक वृद्धि उम्मीदें बंधाने वाली रही। अभी भी अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र ऐसे हैं जो संकट से उबर नहीं पाए हैं।

ऐसे में बजट में सरकार का केंद्र अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किए जाने वाले उपायों पर रहेगा। इसमें बुनियादी ढांचे और एमएसएमई क्षेत्र प्रमुख हैं जिनमें सबसे ज्यादा निवेश और राहत की जरूरत है। ऐसे में बजट में सरकार का इन दोनों क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान रह सकता है। इसके अलावा सरकार बजट में ढांचागत क्षेत्र की परियोजनाओं पर ज्यादा पैसा खर्च कर सकती हैं।

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) को लेकर भी और कुछ एलान संभव हैं। इससे भी घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही घरेलू इकाइयों से निर्मित उत्पादों से बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन भी मिलेगा। बजट में सरकार का जोर उन क्षेत्रों में निवेश पर हो सकता है जो ज्यादा रोजगार सृजित करने वाले हों।
’रूबी सिंह, गोरखपुर