पिछले कुछ दिनों के दौरान मध्य प्रदेश में दो दिल दहलाने वाले मामले सामने आए हैं। पहली घटना अलीराजपुर जिले के बोरी थाने के बड़े फुटतालाब गांव की है, जहां एक आदिवासी लड़की को परिवार वालों ने बेरहमी से पीटा। इस घटना का वीडियो इतना भयावह है कि जिसने भी देखा, उसकी रूप कांप गई। लड़की रोती रही, चिल्लाती रही, पर किसी को तरस नहीं आई। हैरानी की बात यह है कि लड़की पर यह जुल्म गैरों ने नहीं, अपनों ने ही किया। आरोपियों में लड़की के पिता और चचेरे भाई शामिल हैं। पीड़िता का कसूर सिर्फ इतना था कि वह बिना बताए रिश्तेदार के यहां चली गई थी।

यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि धार जिले के टांडा थाना के तहत ग्राम पीपलवा के परिवारजनों की क्रूरता का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस घटना में दो युवतियों को परिवार वाले लाठी-डंडों से पीटते और उनके साथ जानवरों सा बर्ताव करते नजर आ रहे हैं। लड़कियां चिल्लाती रहीं, लेकिन इंसानों से हैवान बने लोगों का दिल रत्ती भर नहीं पसीजा। रोती-बिलखती लड़कियां उनसे रहम की भीख मांगती रहीं, लेकिन वहां रहम नहीं लाठी डंडों से पिटाई मिली। लड़कियों का कसूर बस इतना था कि दोनों अपने मामा के लड़कों से बात करती थीं।

हैरान कर देने वाली बात यह है कि वहां मौजूद लोग लड़कियों को बचाने की बजाय इस घटना का वीडियो बना रहे थे। इन दोनों ही घटनाओं का वीडियो सोशल मीडिया पर फैलने के बाद पुलिस हरकत में आई और आननझ्रफानन में आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तारी की गई है। जरूरी है कि ऐसी घटनाओं में शामिल तमाम आरोपियों पर कठोर कारवाई और सजा दी जाए। साथ ही समाज के लोगों की भी यह जिम्मेदारी है कि इस तरह की घटनाओं का वीडियो बनाने की बजाय पीड़ितों की मदद करें और तुरंत पुलिस को सूचना दें। आखिर सवाल तो यही उठता हैं कि कब रुकेंगे बेटियों पर अत्याचार! कोई समाज कब तक इस तरह के अंधेरे में डूबा रहेगा, जिसमें स्त्रियों को गुलामी में अपना जीवन काटना पड़ता है? स्त्रियों पर जुल्म ढाने वाले मानवीयता से वंचित ऐसे लोगों को कब सभ्य होने का मौका मिलेगा?
’गौतम एसआर, भोपाल, मप्र

पर्यावरण के लिए

कोरोना संक्रमण के चलते पिछले बरस जब हर ओर पूर्णबंदी लगी हुई थी तो लोगों का बाहर निकलना बंद-सा हो गया था। दो और चार पहिया वाहनों के पहिये थम-से गए थे। वातावरण के साथ पर्यावरण में भी आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिलने लगे थे। कोरोना महामारी के डर से घरों मे कैद हुए लोगों और वाहनों की आवाजाही न होने से शहरों-गांवों की फिजां में न शोर था और न वायु का प्रदूषण। बाजारों-चौराहों मे उमड़ने वाली भीड़ गायब थी। प्रकृति भी हर ओर अजब-सा आकर्षण लिए, नए रूप रंग के साथ सज-संवर गई थी। जंगलों के वन्यजीव भी अपने जीवन में मनुष्य के दखल न होने से, बढ़ी हुई हरियाली से कुछ अनोखा अनुभव कर रहे थे।

अब धीरे-धीरे पूरी तरह की छूट मिलने लगी है। कई दिनों से घरों मे बंद लोग वातावरण के इन बदले हुए स्वरूपों का आनंद उठाने मे कोई कोर-कसर नहीं रखना चाहते हैं। होड़ लगाते लोगों में महामारी का भय कम होता जा रहा है। लोग काम पर जाने के लिए, खरीदारी के लिए, मौजमस्ती के लिए बेखौफ घरों से निकलने लगे हैं। हर जगह लगती भीड़, यातायात के जाम मे फंसे परेशान लोग, वातावरण मे बढ़ता प्रदूषण जैसी पुरानी समस्याएं फिर शुरू हो गई हैं। हमेशा से ही वातावरण और पर्यावरण को दूषित करने में मनुष्य का ही पहले भी योगदान रहा है। कोरोना विषाणु का संकट अभी खत्म नहीं हुआ है, पर महामारी की बदौलत वातावरण मे जो सुधार हुए हैं, उन्हें बरकरार रखने की कोशिशों के साथ अपनी ‘नियंत्रित दैनिक गतिविधियों’ को सभी लोगों को अपनाना होगा, तभी आगे इस स्वस्थ वातावरण को बनाए रखने में कामयाब होंगे।
’नरेश कानूनगो, गुंजुर, बंगलुरु, कर्नाटक