धरती पर बढ़ते प्रदूषण के स्तर को रोकने के लिए कई दशकों से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सफलता अब तक नहीं मिल पाई है। प्रदूषण का स्तर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इससे न सिर्फ धरती पर रह रहे जीवों की परेशानी बढ़ी है, बल्कि समुद्री जीव भी खतरे में हैं। आज पूरे विश्व में बढ़ते जलवायु तापमान या ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बेमौसम बरसात, बाढ़, चक्रवात, तूफान, भीषण गरमी जैसी तमाम तरह की परेशानियों का सामना लोगों को करना पड़ रहा है। बढ़ते तापमान की वजह से बीते कुछ दशकों में तापमान में भी इजाफा हुआ है और इसी के साथ समुद्र के जलस्तर में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो बेहद चिंताजनक है। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि इसे लेकर अब अंतिम लड़ाई लड़नी होगी।

गौरतलब है कि 2015 में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए पेरिस समझौता हुआ था, जिसमें यह कहा गया था कि दुनिया के सभी देश अपने यहां तापमान 1.5 डिग्री से 2 डिग्री तक कम करने की कोशिश करें। पर यह समझौता कागजों पर ही सीमित रह गया। नतीजतन पेरिस समझौता असफल होता नजर आया। लेकिन ‘काप 26’ सम्मेलन से उम्मीदें जगी हैं। जिस तरह कुछ दिनों पहले संपन्न हुए जी-20 सम्मेलन में तमाम देशों ने बढ़ते कार्बन उत्सर्जन पर चिंता जाहिर की है और उन तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्षों का बयान आया है, ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि ग्लास्गो से कोई बड़ी घोषणा होगी। जी-20 सम्मेलन की समाप्ति से ठीक पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने इसे लेकर सभी देशों को चेतावनी जारी कर कहा कि अगर ग्लास्गो सम्मेलन में इसे लेकर निर्णायक युद्ध की तैयारी नहीं की गई, तो सारे प्रयास विफल हो जाएंगे और बाद में इसके गंभीर परिणाम भी भुगतने होंगे।

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ग्लास्गो सम्मेलन में जी-20 के सभी देश कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने को लेकर एक निर्णायक समय-सीमा तय करेंगे। उसी तय सीमा के अंदर तक कार्बन की निर्भरता को शून्य स्तर तक ले जाने का प्रयास होगा। जी-20 देशों ने तापमान में 1.5 डिग्री की कमी को लेकर भी अपनी एकमत राय दी है। हालांकि अब देखना होगा कि सम्मेलन में तो सभी देश हामी भर रहे हैं, लेकिन उसे रोकथाम के लिए वे अपने देशों में किस तरह के कदम उठाते हैं।
’शशांक शेखर, आइएमएस, नोएडा, उप्र

पड़ोस की फिक्र

अफगानिस्तान की दहशतगर्द माने जाने वाले समूह की सरकार ने अमेरिका समेत दुनिया के देशों को खुलेआम धमकी दी है कि वे उनकी सरकार को मान्यता दें अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहें। गौरतलब है कि अब भी तालिबान की सरकार को औपचारिक तौर पर मान्यता मिलने में बड़े सवालों का सामना करना पड़ रहा है। अब देखने और समझने वाली बात यह है कि अगर ऐसी धमकी से किसी सरकार को मान्यता मिलती है तो ये पूरे विश्व के लिए किस हद तक चिंता का विषय बनेगी। इसकी देखादेखी अन्य आतंकी समूह भी प्रेरणा लेकर किसी देश की सरकार को बंधक बना कर मान्यता प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं।

दुनिया के बड़े देश और संयुक्त राष्ट्र अफगानिस्तान संकट को बहुत हल्के में ले रहे हैं। अमेरिका एक ओर दुनिया में शांति दूत बन कर विभिन्न देशों के परमाणु कार्यक्रम पर निगरानी रखता है, लेकिन अपने पाले हुए आतंकियों ने जब उसकी तरफ अपनी बंदूकें कर दी हैं, तो वह मैदान छोड़ कर नौ-दो ग्यारह हो गया। इससे पहले रूस ने भी इस इलाके में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अफगानिस्तान में अपनी फौज उतार दी थी, लेकिन वह भी अब मूकदर्शक बन कर बैठा है। यह मूकदर्शिता सारे संसार को दहशत की आगोश में ले लेगी। अभी भी समय है कि सभी जिम्मेदार देशों को आम राय कायम करके अफगानिस्तान में आतंकविहीन सरकार की स्थापना में सहयोग करना चाहिए।
’सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी, नई दिल्ली</p>