आज देश के विभिन्न हिस्सों मे सरकारी भूमि पर अतिक्रमण का लंबा खेल चल रहा है। छोटे-बड़े सभी गांव-शहरों मे अधिकतर रेलवे स्टेशन और बस अड्डे के आसपास की खुली सरकारी जगहों पर या तो गैरकानूनी रिहाइशी बस्तियों का निर्माण हो जाता है या फिर अवैध रूप से बाजार की बसाहट हो जाती है। आज हालात ऐसे हो गए हैं कि विभिन्न शहरों के बाग-बगीचे, जो आम जनता और उनके बच्चों के लिए मनोरंजन और घूमने फिरने के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा विकसित किए जाते हैं, उनके चारों ओर भी भू-माफियाओं ने अवैध कब्जा कर लिया है। इन स्थानों पर किस तरह के कार्य होते हैं यह किसी से छिपा नहीं हैं। इन गतिविधियों के चलते सामान्य परिस्थितियों मे आमजन सपरिवार इन मनोरंजन स्थलों का आनंद नहीं उठा पा रहे हैं।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कई शहरों में हो रही अतिक्रमण की गंभीर समस्या पर अपनी चिंता जताई है। उनके अनुसार अतिक्रमण के चलते कई बड़े शहर बड़े झुग्गी बस्तियों में बदल गए हैं। यों स्थानीय प्रशासन के साथ सरकार की ओर से समय-समय पर अतिक्रमण हटाने की मुहिम चलाई जाती है। उस दौरान काफी हो-हल्ला भी मचता है, टीवी पर भी खबरें जोर-शोर से दिखाई जाती हैं, पर हफ्ते पंद्रह दिनों के बाद वही ढाक के तीन पात वाला किस्सा बन जाता है। अतिक्रमण हटाओ वाली मुहिम ऐसे लगने लगती है, मानो वे सिर्फ औपचारिकता भर के लिए चलाई गई हो। राजनीतिक संरक्षण और बड़े नेताओं का वरदहस्त पाए भू-माफियाओं पर जब तक कोई ठोस कानूनी कार्रवाई नहीं होती है, तब तक भूमि अतिक्रमण की समस्या सभी देशवासियों को सभी शहरों मे परेशान करती रहेगी।
’नरेश कानूनगो, बंगलुरु, कर्नाटक

संकट के सामने

बदलाव समय की आवश्यकता है, यह बात तो सभी समझते हैं। अगर हम जीवन में बदलाव के साथ आगे बढ़े तो भविष्य के लिए बेहतर बनाया जा सकता है। हम पिछले दो साल से कोविड के प्रकोप का सामना करते हुए अपना रोजमर्रा का जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। कोविड काल में देश ने कई उतार-चढ़ाव का सामना किया, पर सरकार के प्रबंधन ओर जनसहयोग के कारण देश कोरोना महामारी का सामना करने में सक्षम हुआ। रोना ने हमें यह सिखाया कि हालात कैसे भी हों, पर हमे हमारे आत्मविश्वास में कमी नहीं लाना है, बल्कि आपदाओं का डट कर मुकाबला करना है। कोविड ने तो लोगों को केवल संक्रमित किया, लेकिन इसके कारण देश को अप्रिय हालात का सामना करना पड़ा, जो था पूर्णबंदी। देश में इस समय पूणबंदी का ध्यान आते ही एक आम आदमी के मन में डर बैठ जाता है, क्योंकि इस बदलाव का सबसे अधिक प्रभाव एक कामगार आम आदमी पर ही हुआ है। पूर्णबंदी ने अनेक देशवासियों के रोजगार पर ग्रहण लगाया, जिससे अभी तक उभर पाना संभव नहीं हुआ।
’शुभम दुबे, इंदौर, मप्र

सुरक्षा पर सवाल

हाल के कुछ वर्षों में देश के भीतर सीमा पार से होते हुए नशीले पदार्थों की तस्करी देश में एक अलग प्रकार के आतंक को बढ़ाने में सक्रिय भूमिका अदा कर रही है, जिसे हम नार्को आतंकवाद के रूप में जानते हैं। इससे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होने के साथ-साथ युवाओं, समाज और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पूरे देश के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि नशीले पदार्थों की गिरफ्त में युवा वर्ग ज्यादा तेजा आ जाता है। वे युवा जो देश का उज्जवल भविष्य माने जाते हैं।

अगर इस युवा वर्ग का जीवन इस तरह अंधकार में व्यतीत होगा तो देश के विकास के लिए उजाले पर धुंध छा जाएगी। इसको रोकने के लिए समाज को सक्रिय भूमिका अदा करनी पड़ेगी, इसके साथ ही सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए। इससे संबंधित कानूनों को कड़ाई से लागू किया जाए और अगर जरूरत पड़े तो नए अधिनियम बनाए जाएं।
’शैलेश कुमार, वाराणसी, उप्र