विधायकों के इस्तीफे से सरकार गिराना एक तरह से अलोकतांत्रिक है। जिन नेताओं को जनता ने चुन कर भेजा होता है, उनके व्यक्तिगत स्वार्थ से संचालित होकर इस्तीफा देने से सरकार गिराना तकनीकी तौर पर भले मान लिया जाए, लेकिन यह नैतिक रूप से उचित नहीं है। इससे राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होती है और देश हर समय चुनावों और उपचुनावों में ही उलझा रहता है, जिससे विकास का मार्ग अवरुद्ध होता है। पार्टियों ने अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए दसवीं अनुसूची से बचने का तरीका ईजाद कर लिया है। इससे जनता के मन में लोकतंत्र के प्रति अविश्वास का भाव पैदा हो रहा है।

हर पांच साल में चुनाव का अर्थ यही है कि जो जनता के जनादेश का सम्मान न करे, उसे हटा कर किसी और को चुनने का अधिकार जनता के पास हो। लेकिन इस तरह से सरकार गिरा कर जनता के द्वारा अपना नेता स्वयं चुनने के अधिकार का अपमान करना ठीक नहीं। ऐसे तो देश एक पार्टी एक व्यवस्था की राह पर चल पड़ेगा, जिससे मतदान शक्ति के अधिकार को ठेस पहुंचेगी। यह कितना लोकतांत्रिक रह जाएगा। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस पर जरूरी संज्ञान लेने की जरूरत है, जिससे लोकतंत्र के साथ हो रहा खिलवाड़ रोका जा सके।
’मोहित पाण पाटीदार, धामनोद, मप्र

राजनीति के परिसर

आज देखा जाए तो पूरे विश्व में हमारे शिक्षार्थी राजनीति में बहुत ही अहम भूमिका निभाते आए हैं। अपनी पढ़ाई अवस्था में सभी शिक्षार्थी अपने-अपने विश्वविद्यालय में चुनाव प्रक्रिया और निर्वाचन प्रक्रिया में अपना योगदान देते आ रहे हैं। दरअसल, हम सभी लोग राजनीति से दूर होकर भी जुदा नहीं हो सकते और इसीलिए हमारे शिक्षार्थियों की बुद्धि भी इसमें रमती है।

यों राजनीति के क्षेत्र में इन दिनों बहुत ही कड़ा मुकाबला होने लगा है। दिल्ली विश्वविद्यालय हो या फिर जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय- सभी में हमारे शिक्षार्थियों के निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल होना यानी कि देश की राजनीति की दुनिया में नए-नए नेताओं का तैयार होना। लेकिन विश्वविद्यालयों में चुनावों के समय कई बार दो पक्षों के बीच संघर्ष और मारपीट जैसे हालात बुरा प्रभाव भी डालते हैं। राजनीति करना और चुनाव लड़ना बिल्कुल सही है, लेकिन हिंसक टकराव के बजाय शांति बनाए रख कर और देश के गणतंत्र को सम्मान देते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
’चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम</p>