इन अवधारणाओं से हमारा समाज प्रेरित भी रहा है, लेकिन साथ ही आधुनिक समाज में यह भी देखने को मिल रहा है कि व्यक्ति का ‘मैं’ ‘हम’ पर भारी होता जा रहा है। व्यक्ति का मैं उसे रिश्ते, समाज और संस्कृति से काफी दूर ले जाता है।

व्यक्ति का मैं ही है जो उसे हिटलर, मुसोलिनी जैसे तानाशाह की भूमिका में ले आता है। यही व्यक्ति में राजनीतिक, आर्थिक लालासाएं पैदा करता है जो उसे किसी भी कीमत पर खुद को सर्वोच्च सत्ता के रूप में स्थापित करने के लिए प्रेरित करता है। व्यक्ति जब तक अपने अहम से आसक्त रहता है तब तक वह परोपकार, भक्ति, प्रेम, सहयोग और समर्पण जैसे मूल्यों को धारण ही नहीं कर पाता।

‘मैं’ से प्रेरित व्यक्ति सिर्फ अपनी स्वार्थ सिद्धि और लालच की पूर्ति को ही अपना जीवन समझता है और इसी आसक्ति के चलते अपने अधीन आने वाली सभी चीजों का राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक शोषण करना अपना मूल उद्देश्य समझता है। व्यक्ति का अहम समाज को विभेदीकृत बनाने में भी एक मुख्य कारक है। जब व्यक्ति यह सोचने लगता है कि मैं फलां हूं, तो वह खुद पर जोर देकर अन्य को अपने से निकृष्ट समझता है और यह समाज में अनेक समस्याओं जैसे जातिवाद, लैंगिग असमानताएं, आर्थिक असमानताएं आदि को और मजबूत बनाता है जो एक प्रगतिशील समाज के पैरों में बेड़ियों का काम करती हैं।

सच है कि जब तक व्यक्ति में अहम है, वह समर्पण नहीं कर सकता और जब वह समर्पण कर देता है तो फिर वहां ‘मैं’ का शून्य हो जाना भी निश्चित है। व्यक्ति का मैं उसे भक्ति और प्रेम की जगह सांसारिक चमक-दमक और भौतिक सुखों की ओर आकर्षित करता है। प्रेम व्यक्ति को मैं और तुम जैसी बातों से दूर हटा कर हम की ओर बढ़ने का ही एक रूप है, जहां व्यक्ति अपने प्रेम के प्रति निजी स्वार्थ को त्याग कर समर्पण के साथ आगे बढ़ता है।

जहां अहं हैं, वहां प्रेम जैसी धारणा विद्यमान नहीं होती। व्यक्ति का अहं ही है जो उसे प्रेम की मूल अनुभूति होने ही नहीं देता और वह मात्र भौतिक सुख और वासना की आसक्ति से ही प्रेरित रहता है। इसीलिए व्यक्ति अपने कथित प्रेम का गला रेतने, कुल्हाड़ी से वार करने यहां तक कि उसको बेरहमी से टुकड़ों में काटकर जंगल में फेंकने जैसे वीभत्स कृत्यों को भी अंजाम दे देता है। प्रेम तो समर्पण का भाव है, अंतर्मन की अनुभूति है।

हम उस समाज से आते हैं जो पूरे विश्व को एक कुटुंब के रूप में देखता है। फिर हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमें मैं को पीछे रखते हुए हम के भाव को आगे रखना चाहिए। कहीं इसका कारण समाज में बढ़ती वैयक्तिकता तो नहीं? व्यक्ति जब अपनी स्वार्थ सिद्धि से दूर हट कर सामाजिक हितों और हम की भावना से प्रेरित होकर कार्य करता है तो वह एक बहुत ही सुंदर समाज का निर्माण करता है जो जीवन का असल मूल भी है। एक अच्छा समाज वह है जो हर व्यक्ति को उसकी रुचियों के हिसाब से उस समाज में स्थान प्रदान करता है। असल में यह जीवन ‘मैं’ से ‘हम’ की ओर की गई एक यात्रा ही है।
स्वदेश यादव, दिल्ली विवि

असुविधा की उड़ान

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली हवाई अड्डे पर इस कदर अव्यवस्था फैली हुई है कि कई यात्रियों की रोजाना उड़ानें छूट रही हैं। परेशान यात्री समय-समय पर अपना विरोध भी दर्ज करवा रहे है, जिसके बाद सरकार को आइजीआइ हवाई अड्डे के पर अधिक कर्मचारी लगाकर कामकाज में सुधार करने के वादे के साथ कदम उठाना पड़ा। लेकिन ऐसा लगता है यह कदम बहुत देर से उठाया गया है। यात्रियों का कहना है कि निजी हाथों में सौंपे जाने के बाद हवाई अड्डे की हालत पहले से काफी बदतर हो गई है।

सरकार के कई प्रयासों के बावजूद यात्रियों की बढ़ती शिकायतें यह सवालिया निशान खड़ा करती है कि क्या सरकार और निजी क्षेत्र मौजूदा हवाई अड्डों में नई क्षमताओं को जोड़ने की दिशा में सही रूप से आगे बढ़ रहे हैं। यात्रियों की अधिकतर शिकायतें सुरक्षा जांच में देरी, यात्री पिकअप, इंटर टर्मिनल ट्रांसफर और सामान लेने के बारे में रही हैं।

अधिकतर यात्रियों का कहना है कि सीआइएसएफ के हाथों से छीनकर निजी एजेंसी के हाथों में सुरक्षा जांच की जिम्मेदारी दिए जाने से भी हवाई अड्डे पर हालत बिगड़ी है। अब बहुस्तरीय देरी होने लगी है, जिससे समस्याएं बढ़ी हैं। अधिकतर यात्री अपनी उड़ान से तीन घंटे पहले हवाई अड्डे पर पहुंच जाते हैं। अगर इतनी जल्दी पहुंचने के बाद भी उड़ान छूटेगी तो इसकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा? इसलिए सरकार को चाहिए कि समय रहते उचित कदम उठा कर यात्रियों की यात्रा को सुगम बनाए।
नागेंद्र, मेरठ</p>