संपादकीय ‘बेलगाम महंगाई’ (15 दिसंबर) आज के हालात में प्रासंगिक है। कोरोना काल से ही लोग महंगाई की मार सहते आए हैं। कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के दामों में लगातार बढ़ोतरी से लोगों के घरों के बजट बिगड़ गए हैं। अप्रैल से लगातार थोक महंगाई का दस फीसद से ऊपर रहना मूल्य नियंत्रण पर सरकार की कमजोर इच्छा शक्ति को दर्शाता है। वर्तमान में 14.23 प्रतिशत दर होने से आम जरूरत की चीजों में महंगाई का जबर्दस्त तड़का लगा है। सरकार को इस दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए, क्योंकि लोग पहले ही मंदी की मार झेल रहे हैं। महंगाई का कहर झेलना उनके बूते से बाहर होता जा रहा है।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र
सेहत में बेहतरी
हाल ही में प्रकाशित जनसंख्या, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण आदि से संबंधित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की पांचवीं रिपोर्ट (2019-21) कई मायनों में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस रिपोर्ट में कई नए उभरते विषय भी शामिल किए गए हैं। देखना है कि क्या स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की स्थिति सुधरी है या चिंताजनक है? आंकड़े भविष्य की किन समस्याओं की ओर इशारा करते हैं? सरकार की उचित रणनीति क्या हो सकती है?
एनएफएचएस-5 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन दर 2.0 हो गई है। दूसरे शब्दों में कहें तो मां बनने की उम्र की प्रत्येक महिला दो बच्चों को जन्म दे रही है, जो चौथी रिपोर्ट में 2.2 थी। यानी जनसंख्या नियंत्रण के अच्छे संकेत हैं। गर्भ निरोधकों का प्रयोग, शादी की औसत उम्र बढ़ने समेत कई अन्य बातों का भी प्रमाण है। इस प्रकार मिलते उत्साहजनक परिणाम सरकार के प्रयासों की परिणति हैं, यानी इन उपलब्धियों के लिए सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है।
इस रिपोर्ट में कुछ ऐसे भी बिंदु सामने आए हैं, जो बेहद चिंताजनक हैं। हालांकि बच्चों में पोषण की स्थिति में सुधार देखने को मिला है। बावजूद इसके, भारत की आधे से अधिक आबादी खून की कमी से पीड़ित है, जिसमें महिलाएं, बच्चे और पुरुष तीनों शामिल हैं। यह तब है, जब भारत खाद्यान्न उत्पादन और भंडारण में अग्रणी देश है। तो फिर यह चूक कहां है? इसी तरह स्वस्थ्य जागरूकता और अनेक सरकारी प्रयासों से प्रसव पूर्व देखभाल बढ़ी है तथा संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिला है, जिसके चलते मातृमृत्यु दर में तो गिरावट दिखती है, लेकिन आपरेशन द्वारा प्रसव की बढ़ती दर चिंतित करने वाली है। इससे अन्य कठिनाइयों के साथ स्वास्थ्य पर व्यय बढ़ जाता है।
एनएफएचएस-5 इस मायने में भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कई नई उभरती समस्याओं को भी रिपोर्ट में पहली बार शामिल किया है, जैसे कि गैर-संक्रामक रोगों; स्थिति चिंताजनक है। इन्हें दीर्घकालिक बीमारियों के रूप में भी देखा जाता है। जैसे डायबिटीज, हर्ट अटैक, कैंसर, मोटापा आदि। वर्तमान में गंभीर समस्या बनी हुई है, क्योंकि अगर किसी परिवार में एक भी व्यक्ति ऐसी बीमारी से पीड़ित है, तो उस परिवार की राष्ट्र प्रगति में आर्थिक सहभागिता लगभग शून्य हो जाती है। उसे गरीबी के पाले में धकेल देती है। एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट भारतीय स्वास्थ्य का आईना है, जो उभरते हुए विषयों पर ध्यान आकर्षित कर लोकनीति निर्माण में कारगर साबित हो सकती है।
’मोहम्मद जुबैर, कानपुर</p>