आजकल देश में हर तरफ महंगाई की चर्चा है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, सब्जियों, दालों और अन्य रोजमर्रा की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। बहुत से लोगों के सामने संकट जैसे हालात पैदा हो गए हैं। खासकर मध्यवर्गीय परिवारों का, जिन्हें सरकार की तरफ से कुछ भी मुफ्त नहीं मिल रहा है, चाहे वह अन्न हो, सबसिडी, बिजली या फिर अन्य दूसरी चीजें। केंद्र और राज्य सरकारें भी महंगाई कम करने के लिए कोई खास रुचि नहीं दिखा रही हैं। मुफ्तखोरी का लालीपाप एक वर्ग को दे रही हैं। हर कोई किसी न किसी रूप में सरकारी खजाने में कर जमा कराता है, लेकिन इनमें से बहुत से महंगाई का दंश झेल रहे हैं। सरकारों को रोजमर्रा इस्तेमाल की वस्तुओं के दाम जल्द से जल्द कम करने के बारे में सोचना चाहिए, ताकि देश के हर वर्ग को महंगाई से राहत मिले और त्योहारों का रंग फीका न हो।
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर

कालिख घुली चमक

कोयले की कमी और राज्य सरकारों के कोयले का भुगतान समय पर न करने से कोयले की आपूर्ति बाधित हुई। इससे देश में हर कहीं कोयले की कमी महसूस की गई। राज्यों ने अघोषित बिजली कटौती शुरू कर दी थी। काला सोना छत्तीसगढ़ राज्य का गहना है। देश के कुल उत्पादन में करीब बाईस प्रतिशत का योगदान देकर यह राज्य पहले नंबर पर है। इसमें कोरबा में पंद्रह और रायगढ़ में करीब तेरह संयंत्र हैं। इसको उर्जाधानी के नाम से भी जाना जाता है। मगर इस बिजली की चमक के पीछे जीवन का घना अंधेरा छिपा है। सच यह है कि उर्जाधानी नामक शहर राख की दीवारों के बीच कैद है। उस कोयले की राख से, जिससे बिजली बन कर राज्य और देश की विभिन्न बस्तियों को रोशन करती है।

राज्य में कोरबा और रायगढ़ सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर हैं। यहां प्रदूषण रोकने के लिए मापदंड तय किए गए हैं, लेकिन उन पर अमल नहीं किया जाता है। राख के ढेर से होने वाले प्रदूषण के चलते लोग ठीक से सांस तक नहीं ले पाते हैं। शहर में टीबी, अस्थमा, दमा जैसी गंभीर बीमारियों से जिंदगियां राख हो जाती हैं। बिजली उत्पादन और उससे मिलने वाले राजस्व से सरकार तो चल रही है, लेकिन वायु प्रदूषण पर नियंत्रण जरूरी उपाय है। कोयले की राख बारिश के पानी से खेतों में पहुंचती है। जो भी राज्य कोयला उत्पादन करता है, उस शहर की आबोहवा में जहर घुलता है। मगर काले सोने के दम पर देश रोशन हो रहा है। बिजली मनुष्य जीवन की पहली प्राथमिकता है। बिजली के अभाव में जिंदगी ठहर-सी जाती है।

देश को विकास के पथ पर ले जाने के वास्ते बिजली प्राणवायु का काम कर रही है। कोई भी बिजली कंपनी राख के निष्पादन का काम नहीं करती है। हवा चलती है तो राख उड़ती है। घरों के अंदर राख की परतें जमी होती हैं। यह राख सांस में घुलती है, जिससे दमा के मरीज बढ़ रहे हैं। देश में सरकारें वायु प्रदूषण को कम करने के लिए पटाखे पर प्रतिबंध लगाती हैं। मगर पटाखे के प्रदूषण से हजारों गुना अधिक प्रदूषण राख का है। इस ओर सरकार कुछ भी कदम उठाने में असमर्थ है। यह दुरंगी चाल है। राख सीमेंट फैक्टरियों में इस्तेमाल होती है। राख से र्इंट बनाने का काम भी होता है। मगर राज्य सरकारों की नजर बिजली और अन्य औद्योगिक उत्पादन से होने वाले लाभ पर ही टिकी रहती है।
’कांतिलाल मांडोत, सूरत