रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने उचित ही रेखांकित किया कि कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई महामारी ने विश्व व्यवस्था, वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति तथा पूंजी और श्रम के आवागमन पर गंभीर असर डाला है। छह माह से अधिक समय से दुनिया कोरोना संक्रमण के व्यापक प्रसार से हुई तमाम मौतों और बीमारी के संकट से जूझ रही है। इसकी रोकथाम के लिए बड़े पैमाने पर लॉकडाउन, आर्थिक गतिविधियों को सीमित या बंद करने तथा आवाजाही रोकने जैसे कदम उठाने पड़े हैं, जिससे जीवन का हर पक्ष प्रभावित हुआ है। ऐसे में अर्थव्यवस्था में वृद्धि की बात तो दूर, उसे गतिशील रख पाना भी बड़ी चुनौती है।

इस चुनौती ने भारत जैसे विकासशील देश को भी परेशानी में डाल दिया है। प्रधानमंत्री मोदी इस आपदा के प्रांरभिक चरण से ही देश को आश्वस्त करते रहे हैं कि वंचित वर्ग और कामगार तबके को राहत और रोजगार मुहैया कराने के साथ उद्योग व कारोबारी जगत की भी मदद के लिए मुस्तैद बताए गए हैं। विभिन्न सरकारी योजनाओं और राहत पैकजों के साथ रिजर्व बैंक भी अपने स्तर पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने जैसे उपाय कर रहा है। लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत निराशा पैदा कर रहा है।

यह हम सहज ही अनुभव कर सकते हैं कि महामारी ने आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बदल कर रख दिया है। स्वास्थ्य और आर्थिकी को संकटग्रस्त करने वाली ऐसी आपदा विश्व ने सौ साल के बाद देखी है। इस समस्या के समाधान में पूंजी से संबधित नियमन और प्रबंधन की प्रमुख भूमिका है।

रिजर्व बैंक के निर्देश से ब्याज दरों में कमी और नकदी की आपूर्ति से आम जनता के साथ साथ उद्योगों और व्यवसायों को भी राहत मिली है। फरवरी से केंद्रीय बैंक ने साढ़े नौ लाख करोड़ रुपए से अधिक पूंजी के बाजार को सुगम किया है। देश ने अब तक धीरज के साथ मौजूदा संकट का सामना किया है। लेकिन सवाल है कि संकट और पूर्णबंदी के बीच देश का ढांचा कब तक इसका सामना कर सकेगा!
’भूपेंद्र सिंह रंगा, हरियाणा