यह सभी जानते हैं कि कैंसर एक भयानक बीमारी है। कैंसर का बढ़ना न सिर्फ एक समाज, बल्कि संपूर्ण देश के लिए चिंता का विषय हैं। हाल में आइसीएमआर ने आगाह किया है कि भारत में आने वाले पांच वर्षों में कैंसर के मामले बढ़ जाने की उम्मीद है। अब किसानों में कैंसर के बढ़ते मामले गंभीर होते जा रहे हैं। दरअसल, उर्वरकों के बढ़ते प्रयोग के कारण कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी बताई जा रही है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जो खेती किसानों के साथ संपूर्ण देश को अन्न प्रदान कर जीवन दे रही है, वही किसानों की जान लेने वाली कैसे हो सकती है।

अगर इसके कारणों पर नजर डालें तो पता चलता हैं कि इसके पीछे, उत्पादकता में वृद्धि, फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाना, सिंचाई सुविधा का सुलभ होना, ऊर्वरकों पर सबसिडी, कम श्रम में फसल तैयार करने की आकांक्षा आदि जिम्मेदार हैं। उल्लेखनीय हैं कि उर्वरक फसल उत्पादन बढ़ाने, शीघ्रता से फसल वृद्धि में सहायक है। इसके साथ किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाने के कारण अधिक उत्पादन ही खेती को लाभकारी बनाने का विकल्प रह जाता है।

हालांकि उर्वरकों के प्रयोग से तात्कालिक लाभ मिल जाता है, पर इसके गंभीर परिणाम दीर्घकालिक रूप से भुगतने पड़ते हैं। इनके कारण मृदा की गुणवत्ता काम हो जाती हैं, भूमि में बंजरीकरण की प्रक्रिया को बल मिलता है, किसानों में बीमारियों की वृद्धि होती हैं, जिसमे कैंसर का ऊल्लेख पहले किया जा चुका है। साथ ही उत्पादों में गुणवत्ता का ह्रास भी होता है। इन्हीं वजहों से स्वास्थ्य ढांचे पर भार बढ़ जाता है और फिर एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे चली जाती हैं। इस प्रकार यह एक दुश्चक्र बन जाता है।

ऐसी परिस्थितियों में जैविक कृषि एक राह दिखाती हैं, जो न सिर्फ उर्वरकों के इस प्रकोप से बचाती है, बल्कि आय बढ़ाने में भी मददगार है। जैविक खेती मृदा की गुणवत्ता, उर्वरक रहित प्राकृतिक खेती, उत्पादों की गुणवत्ता में बेहतरी के लिए एक बेहद अच्छा विकल्प है। जैविक खेती शुरुआती तौर पर खर्चीली है, लेकिन दीर्घकाल में इसके लाभ अनगिनत हैं। भारत में जोत का आकार भी छोटा है और एक साथ संपूर्ण देश में इसे नहीं अपनाया जा सकता, क्योंकि श्रीलंका के हालात से हम अच्छी तरह परिचित हैं। इसलिए सरकार को इसके प्रोत्साहन पर बल देना चाहिए। इस वर्ष के बजट में इसके प्रोत्साहन पर बल देने की बात सरहनीय है, पर नागरिक समाज को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए।
कन्हैया सिंह, भरतपुर, राजस्थान।

यादों में रेडियो

आज संचार के कई साधन उपलब्ध हैं, मगर जो बात रेडियो में थी, वह नजर नहीं आती। कहीं भी उठा कर रख लिया जाए, न आंखों को नुकसान, न कोई तकलीफ। फिर उसमें चाहे समाचार हो, फिल्मी गाने हो या फिर कोई और कार्यक्रम, हमेशा एक खास तरह का आनंद देता रहा है रेडियो। ऐसा नहीं है कि रेडियो आज लोगों की जिंदगी से दूर हो गया है। आज भी इसके चाहने वाले हैं।

कई स्तर पर आज भी रेडियो अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है। रेडियो के योगदान और इसकी भूमिका को याद करने के लिए एक दिन विश्व रेडियो दिवस मनाया जाता है। जब भी पुराने दिनों की मधुर यादें आती हैं, तो उसमें रेडियो आंखों के सामने आ जाता है। रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल रेडियो का वह जमाना अब शायद ही लौटकर आए, मगर रेडियो को भुला पाना संभव नहीं है।
साजिद अली, चंदन नगर, मप्र।

न्याय की परिधि

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव देखने को मिल रही है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन पिछले कुछ समय में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने कालेजियम व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। अब हाल ही में मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र भी लिखा, जिसमें कालेजियम प्रणाली में सुधार के साथ-साथ सरकार के भी प्रतिनिधित्व की बात की है। यों तो संविधान में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति की बात कही गई है, लेकिन कालेजियम शब्द का जिक्र कहीं नहीं है।

कालेजियम की प्रक्रिया 1981 से शुरू होकर समय-समय पर कुछ परिवर्तनों के साथ आज तक बनी हुई है। इस प्रणाली पर अक्सर भाई-भतीजवाद और गैर पारदर्शी होने जैसे सवाल उठते रहे हैं। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन करते हुए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) का गठन किया था, लेकिन अक्तूबर 2015 में न्यायपालिका ने इसे संविधान के मूल भावना के विरुद्ध बताते हुए रद्द कर दिया। वर्तमान समय में कालेजियम प्रणाली में सुधार की जरूरत है। सरकार और न्यायपालिका को मिलकर कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए, जिससे न्यायपालिका पर लोगों का विश्वास बना रहे।
राकी राज, इलाहाबाद विवि।

इमरान की बात

तंगहाली और फटेहाली से जूझ रहे पाकिस्तान की नीयत भले ही भारत के खिलाफ हो, मगर वहां के शासक, प्रशासक और नेता भारत की तारीफ करते नहीं अघा रहे हैं। इमरान खान सत्ता में रहते भारत को आंखें दिखाते रहे, लेकिन ताजा हालात में वे भारत के कानून की तरफदारी कर रहे हैं। भारत के विकास को कानून के शासन की देन बता रहे इमरान का कहना है कि भारत की नीतियों पर पाकिस्तान भी चलता तो कंगाली की कगार पर नहीं पहुंचता। पाकिस्तान के लिए यह एक कटु सत्य है।

आज अगर दुनिया हमारी पूछ-परख करती है तो उसकी एक बड़ी वजह हमारा लोकतंत्र भी है, जहां आम आदमी पूरी तरह सुरक्षित है। हमारी धर्मनिरपेक्षता की मिसालें देते विदेशी भी नहीं थकते। भारत की तमाम खूबिया इंसानियत और ईमानदारी की नीति पर टिकी है। इस बात को दुनिया के देशों को आत्मसात करना होगा। तभी वे सुखी और संपन्न हो सकेंगे। दूसरी ओर, हमें भी अपनी इन महान विरासतों को कट्टरपंथियों के हमले और जाल से बचाना होगा।
अमृतलाल मारू ‘रवि’, इंदौर।