भारत में बेरोजगारी का बादल दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है। आज के समय में भारत के लिए बेरोजगारी एक बहुत बड़ी ज्वलंत समस्या के रुप में अपनी जड़ें जमा चुकी है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का बेरोजगारी दर अत्यंत दयनीय स्थिति में पहुंच गई है। यह दर 2017-18 में 4.7 फीसद और 2018-19 में 6.3 फीसद थी जो दिसंबर 2021 में बढ़कर 7.91 प्रतिशत हो गई। इस स्थिति के लिए केवल कोरोना महामारी को ही उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। सरकार का उत्तरदायित्व पूर्ण रूप से बनता है। शहरी क्षेत्रों में, जहां यह जनवरी 2021 के 8.09 फीसद से बढ़कर दिसंबर 2021 में 9.30 फीसद हो गया है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह जानकारी 2021 के 5.81 फीसद के सापेक्ष दिसंबर 2021 में 7.28 फीसद हो गया है।

इससे स्पष्ट होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी अधिक है। इस पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए। अनौपचारिक क्षेत्र में भी रोजगार की कमी हो रही है यानी समान समयांतराल में 2019-20 से दिसंबर 2021 के बीच अनौपचारिक क्षेत्र का कुल नियोजन 408.9 मिलियन लोगों से घटकर 406 मिलियन हो गया, जबकि इसी समय लगभग दस मिलियन युवा भारतीय रोजगार के लिए उपलब्ध थे। गौरतलब है कि कि 2014 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है, जहां 35.6 करोड़ आबादी युवाओं की है।

किसी भी देश की तरक्की काफी हद तक युवाओं को मिलने वाले रोजगार पर निर्भर करता है, लेकिन अगर युवाओं को पर्याप्त रोजगार न मिले तो उनके न सिर्फ सपने टूटते हैं, बल्कि अवसाद के कारण गलत तरीके से प्रतिक्रिया चुनना भी खोज लेते हैं। यह स्थिति कई बार अपराध और अन्याय को जन्म देता है। हालांकि वर्तमान समय में सर्वाधिक आवश्यक यह है कि महामारी से बुरी तरह प्रभावित मांग-पक्ष को सुव्यवस्थित किया जाए। इसके साथ ही त्वरित अवसंरचनागत निवेश की भी आवश्यकता है। समस्या के निस्तारण के लिए अनिवार्य है कि पूंजीवाद, उद्यमशीलता को बढ़ावा देकर उद्यमिता में सरकार की भागीदारी को कम की जाए।

उद्यमिता देश में रोजगार सृजन करता है, इसलिए सरकार को चाहिए कि वह युवाओं में उद्यमिता को अत्यधिक बढ़ावा दें। उन्हें प्रोत्साहित एवं प्रेरित करें। इसके साथ ही महिलाओं में रोजगार को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक बाधाओं को दूर करने और रोजगार में उनकी निरंतर भागीदारी के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। भारत में बेरोजगारी की समस्या निर्विवाद रुप से गंभीर है तथा यह आर्थिक सुधार की गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्न आरोपित करती है।

  • समराज चौहान, कार्बी आंग्लांग, असम</li>

आत्मनिर्भर बने भारत

‘वार्ता से उम्मीद’ (संपादकीय, 14 जनवरी) पढ़ा। भारत और चीन के उच्च सैनिक अधिकारियों द्वारा एलएसी पर लद्दाख के विवादित क्षेत्रों से चीनी सेना की वापसी को लेकर 14 असफल बैठकों के दौर हो चुके हैं! हर बार दोनों देश अगली बार फिर बातचीत करने के लिए फैसला करते हैं और इस बीच चीन भारत में सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ करता है, अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि करता है या फिर लद्दाख में पैंगांग झील पर पुल बनाने का काम करता है। भारत के विरोध की अनदेखी करता है। इतना ही नहीं, वह अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम देने के लिए श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान आदि देशों को भी भारत के खिलाफ करता है और वहां पर अपने अड्डे जमाता है!

चीन भारत की बढ़ती सैनिक शक्ति से भी परेशान हो रहा है। वह नहीं चाहता कि अमेरिका, रूस या इजराइल के साथ भारत के सैनिक संबंध अच्छे हों और यह भी उससे सहन नहीं होता कि भारत विश्व बाजार में वहां अपना माल बेचे, जहां पहले चीन का वर्चस्व था! इसलिए चीन भारत को सीमा विवाद में उलझा कर हमारा ध्यान आर्थिक विकास और विश्व के अन्य देशों के साथ संंबंध सुधारने से हटाना चाहता है। भारत के लिए सबसे बड़ी परेशानी की बात यह है कि एक तरफ चीन ने हमें सीमा विवाद में उलझा रखा है और दूसरी तरफ हम विदेशी व्यापार को लेकर उस पर बहुत ज्यादा निर्भर करते है,ं जिसका विकल्प अभी दिखाई नहीं देता। वरना भारत चीन को करारा जवाब देने में सक्षम है! इसलिए सरकार को सबसे पहले देश को आत्मनिर्भर बनाना होगा!

  • शाम लाल कौशल, रोहतक, हरियाणा