‘नशे का बाजार’ (संपादकीय, 14 मार्च) पढ़ कर अनुभव हुआ कि किस तरह देश का युवा नशे की दलदल में धंसता जा रहा है और देश का तंत्र असहाय-सा नजर आ रहा है। देश का सबसे समृद्ध राज्य और गुरुओं की धरती पंजाब में जिस तरह से नशे का बाजार गर्म है, वह किसी से छिपाा नहीं है। पंजाब, भारत का एक सीमावर्ती क्षेत्र है और पाकिस्तान की तरफ से ये नशे का हमला पंजाब के युवाओं पर किया जा रहा है।

इस हमले में देश के उस युवा वर्ग को कमजोर और पंगु किया जा रहा है, जो सेना और हमारे सुरक्षा तंत्र का हिस्सा बन कर देश की रक्षा कर सकता है। वह युवा ही नशे का गुलाम बनता जा रहा है। पंजाब से शुरू होकर नशे का व्यापार धीरे-धीरे अपनी सीमाओं से सटे राज्य के युवाओं को भी अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। नशे की लत का एक बार शिकार होने के बाद इस लत को बिना कठोर इच्छाशक्ति के और परिवार के भावात्मक सहयोग के छोड़ पाना बहुत मुश्किल होता है।

प्रश्न उठता है कि आज का युवा नशे का शिकार क्यों बन रहा है? मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इसके कई कारण बताए गए है, पर आज के भौतिकवादी युग में युवा रातोरात सफलता की सीढ़ियां एक ही सांस में चढ़ लेना चाहता है, ताकि वह ऐश्वर्य और एक आरामदायक जीवन व्यतीत कर सके। यह क्षणिक सफलता न मिल पाने के कारण जल्दी ही कुंठाग्रस्त होकर नशे को अपने जीवन का सहारा समझने की भूल कर बैठता है। नशे की लत के शिकार युवा को सुधारने और उनके पुनर्वास के लिए किए जाने के प्रयास अभी तक अपर्याप्त हैं।

नशे का बाजार किस प्रकार फल-फूल रहा है, जबकि सरकारें नशे को रोकना चाहती हैं। क्या नशे के व्यापारियों पर लगाम कसने में सरकार शक्तिहीन हो जाती है और नशाविरोधी बयानबाजी में सबसे आगे रहतीं है? ऐसे में नशे के बाजार पर अंकुश कौन लगाएगा? हमारे खुफिया तंत्र के लिए नशे के व्यापारियों को खोज निकालना कोई मुश्किल काम नहीं है, पर उनको कानूनी प्रक्रिया के द्वारा अंजाम तक पहुंचाना मुश्किल काम है।

पंजाब में अब एक नई सरकार आई है, जिससे राज्य की जनता को बहुत उम्मीदें हैं, खासकर सभी माता-पिता को, जिनके बच्चे नशे के कारण बर्बाद हो रहे हैं। देखना यह है कि केजरीवाल पंजाब की जनता को इस समस्या कितनी राहत दिलवा सकेंगे। हालांकि दिल्ली में शराब की बिक्री को जिस तरह उन्होंने बढ़ावा दिया, उसे देखते हुए उम्मीद करते हुए भी आशंका होती है।
राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी, हरियाणा।

जीवन का पाठ

पढ़ने-लिखने की कोई उम्र नहीं होती है। यह इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। खाली समय में गप्पें मारने से अच्छा है कुछ अच्छी कहानियां, कविताएं पढ़ें। देश दुनिया के इतिहास-भूगोल को जानें। यकीन मानिए, व्यक्तित्व बदल जाएगा। जो भी पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में हैं, चाहे वे शिक्षक, प्रोफेसर, डाक्टर, अभियंता, पत्रकार, साहित्यकार, राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि हों, उनके सोचने, रहने के तरीके आम लोगों से अलग होते हैं। दिन भर काम करने के बाद भी एक-दो घंटे पढ़े जा सकते हैं। मानव के विराट हृदय होना चाहिए और यह विराट तभी होगा, जब पढ़ेंगे। दुनिया में जितने भी क्रांति, बदलाव हुए हैं, वे सभी पढ़े लिखों ने ही किए हैं।

क्रांति का मतलब हिंसा नहीं होता, बल्कि बौद्धिक क्षमता, चेतना, जागृति होता है। अब पढ़ने के लिए इंटरनेट है। किसी भी मनचाहे विषय को खोज कर पढ़ सकते हैं। जब खुद में ज्ञान की ज्योति जलेगी, तो दूसरे भी प्रभावित होते हैं। हम जितना धन और मेहनत बाहरी दिखावट के लिए करते हैं, उसका कुछ अंश भी ज्ञान अर्जन के लिए कर दें तो जीवन धन्य हो जाएगा। बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिला कर अभिवाहक अपने कर्तव्यों को इतिश्री समझ लेते हैं और खुद कहीं और मस्त हो जाते हैं।

खाली समय में गीत-संगीत, कोई वाद्य यंत्र बजाने के लिए भी सीख सकते हैं। जीवन से नीरसता खत्म हो जाएगी। बिना रस का जीवन नीरस हो जाता है और फिर रस के लिए सोम रस आदि का अभ्यस्त हो जाते हैं। इसके नतीजे से लोग भलीभांति परिचित हैं। मानव के अंदर ईर्ष्या, द्वेष, ग्लानि, असंतोष, लोभ लालच, हिंसक प्रवृत्ति बौद्धिक संपदा के बिना आता है। एक अच्छी किताब से अच्छा कोई दोस्त नहीं होता है। कुछ नहीं तो कम से कम पत्र-पत्रिकाओं अखबारों के आलेख और संपादकीय जरूर पढ़ें। फुर्सत के क्षण में समय का सदुपयोग और ज्ञान का अर्जन भी होता है।
प्रसिद्ध यादव, बाबूचक, पटना</p>