‘जाति और जनाधार’ (संपादकीय, 25 अगस्त) पढ़ा। सच यही है कि नौकरियों से लेकर बहुत तय होने का पैमाना व्यवहार में जातियां हैं। हाल में केंद्रीय मंत्रिपरिषद के गठन के वक्त भी इस बात का जिक्र किया गया। इतने सदस्य अत्यंत पिछड़ी, अनुसूचित, अनुसूचित जनजाति के बनाए गए हैं। उस पर अंदरखाने चुनाव में प्रत्याशी तय करने का आधार यही जातियां हैं। और तो और, सभी दलों में इस बात का विमर्श कभी शायद ही होता हो कि इसकी धार को कैसे कुंद किया जाए। हमदर्द बनने की होड़ जरूर लगी रहती है।

ऐसे में सवाल उठता है कि जब राष्ट्रीय दल इस पचड़े को हवा देंगे, तब क्षेत्रीय दलों का हवा देना लाजिमी है। खासतौर पर वे दल, जिनके गठन का आधार ही जातियां हैं। लिहाजा अगर मर्दमशुमारी होनी है और एक बार जब यह मुद्दा सिरे से परवान चढ़ चुका है तो शायद आगे ही बढ़े। पिछली जनगणना में जाति के आधार पर जो आंकड़े जुटाए गए थे, उका खुलासा नहीं किया गया। यह जो भी हो रहा है, उसकी मूल वजह जातियों की संख्या छिपाने और उनके जरिए नीतियों को प्रभावित होने देने के सिवा और क्या हो सकती है।
’मुकेश कुमार मनन, पटना, बिहार

खतरा है ई-कचरा

‘संकट बनता ई-कचरा’ (लेख, 24 अगस्त) पढ़ा। देश ही नहीं, दुनिया ई-कचरे से पैदा होने वाले संकटों से जूझ रहा है। विकसित देश इस संकट से भली-भांति परिचित है। यही कारण है कि वे यथासंभव अपने यहां का ई-कचरा दूसरे गरीब और विकासशील देशों में भेज रहे हैं। ई-कचरे में भी मोबाइल फोन और कंप्यूटर-लैपटॉप की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। लगभग हर महीने नए मॉडल आने से इस कचरे में बढ़ोतरी हो जाती है। इसके पीछे हमारी तकनीक-प्रिय मानसिकता भी है, जो सही चीज को भी उपयोगहीन बना कर कचरे में बदल देती है।

हमें यह समझना होगा कि ई-कचरे का अगर पुनर्चक्रण नहीं किया जाए तो यह सदियों तक वायु, जल और जमीन को प्रदूषित करता रहता है। आधुनिक समय में पेट्रोल के विकल्प के रूप में बैटरियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन ये बैटरियां भी ई-कचरे के प्रमुख स्रोतों में से एक हैं। इनमें लेड, फास्फोरस, मरकरी जैसे घातक तत्त्व मिले होते हैं। इससे बचने के लिए हमें ऊर्जा के प्राकृतिक स्रोतों, जैसे कि सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा। इसके साथ जल ऊर्जा की नई संभावनाएं तलाशनी होंगी। प्रकृति के साथ सामंजस्य बना कर ही ‘स्वस्थ जीवन, सुखी जीवन’ की हमारी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। उसको नियंत्रण करके नहीं।
’युवराज पल्लव, मेरठ, उप्र