देश में जातीय राजनीति का बंधन टूट रहा है। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव इसके उदाहरण हैं। इन दोनों चुनावों में जातीय समीकरण टूट गया था। लोगों ने जातीय बंधन से ऊपर उठ कर वोट किया और भाजपा को सत्ता में बैठाया। पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर विधानसभा के चुनाव निकट हैं। इन चुनावों को लेकर आम जनता में उत्सुकता बनी हुई है और राजनीतिक विश्लेषक अभी से जातीय समीकरण का गणित बैठा रहे हैं। आम जनता को चुनाव से काफी उम्मीदें होती हैं। हर चुनाव उनके दिलों में एक नई आशा की किरण जगाता है। आज देश में जनधन खाते के द्वारा करोड़ों लोगों को सरकारी लाभ सीधे उनके खाते में जा रहा है। आम जनता ने इस बदलाव का स्वागत किया है। राजनीतिक पंडित इस बदलाव को नहीं देख पा रहे हैं, और जातीय समीकरण के जोड़-घटाव में उलझे हुए हैं।

कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, यह आजादी के राष्ट्रीय आंदोलन की उपज है। सत्ता में आने के बाद कांग्रेस जातीय समीकरण के सहारे चुनाव जीतने की रणनीति में उलझ गई और आम जनता की आकांक्षाओं से दूर होती गई। आज उसी का यह परिणाम है कि पार्टी का जनाधार खिसकता जा रहा है। जातीय बंधन का टूटना देश के एकता और अखंडता के लिए जरूरी है। हम सभी को इस बदलाव का स्वागत करना चाहिए और आने वाले चुनाव में जाति और धर्म से ऊपर उठ कर मतदान करना चाहिए।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया

महंगाई पर चुप्पी

आजकल महंगाई इतनी तेजी से बढ़ रही है कि उसकी मार प्रत्येक परिवार पर पड़ रही है। सब्जियों के दामों के साथ-साथ रसोई गैस, पेट्रोल-डीजल के दाम भी बढ़ रहे हैं। अनाज, सब्जियां, रसोई गैस तथा पेट्रोल, डीजल के बढ़ते दामों के कारण एक सामान्य और गरीब परिवार को आज अपना घर चलाना मुश्किल हो रहा है। सवाल है कि आखिरकार सरकार चाहे कितनी भी महंगाई में विभिन्न तरह के दावे पेश करे, लेकिन बाजार में बढ़ते दामों से इस बात का पता चलता है कि यह महंगाई सरकार के काबू से बाहर हो चुकी है। इस प्रकार सब्जियों के बढ़ते दामों के कारण विभिन्न प्रकार की परेशानियां भी खड़ी हो रही हैं। त्योहारों के अवसर पर मिठाइयों के दाम पर भी सरकार को विराम लगाना होगा। जब मौजूदा केंद्र सरकार विपक्ष में थी तो उस समय खुले रूप से महंगाई के विरोध में धरने और प्रदर्शन करती देखी जाती थी। चौराहों पर नेताओं की रैलियां भी नजर आती थीं, लेकिन अब बढ़ती महंगाई पर मौजूदा केंद्र सरकार की तरफ से किसी भी प्रकार का कोई भी स्पष्टीकरण नहीं आता।
’ विजय कुमार धानिया, नई दिल्ली</p>