कहने को किसान देश का अन्नदाता है। लेकिन अगर भारत के किसानों की दयनीय स्थति को देखा जाए तो रूह कांप जाती है। हालत यह है कि देश का पालन-पोषण करने वाला किसान आज अपना पेट नहीं पाल सकता और आत्महत्या तक करने पर मजबूर है। बुंदेलखंड के किसानों की जो स्थिति हो गई, उसके लिए अकेले जिम्मेदार नेता हैं। चुनाव के प्रचार के दौरान किसानों से वादे तमाम दलों ने किए, लेकिन ये भी वही वादे हैं, जो कभी पूरे नहीं होते।

घास को जानवरों का भोजन माना जाता है। लेकिन बुंदेलखंड के किसान गरीबी की वजह से आज घास की रोटी खाने को मजबूर हैं। वहां तमाम ऐसे लोग हैं, जिन्हें भूखे सोना पड़ता है। कहा जाता है कि तकदीर गरीब का मजाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। मगर आज ज्यादा भद्दा मजाक प्रशासन कर रहा है। जो नेता चारदिवारी में सुख-सुविधाओं में जी रहा है, उसे किसानों की फिक्र क्यों होगी! जहां लोग सूखे की चपेट में आकर मर रहे हैं, वहां उन्हें आर्थिक सहायता देने के बजाय अरबों रुपए बांध बनाने में खर्च किए जाते हैं, करोड़ों रुपए धन सब्जी मंडी बनाने में खर्च कर दिए जाते हैं। किसानों की जरूरतें अभाव बन कर रह जाती हैं।

देश में विकास केवल कागजों में पूरा कर लिया जाता है और करोड़ों रुपए पचा लिए जाते हैं। मोदीजी अगर लगातार विदेश यात्रा करने के बजाय गरीब किसानों के गांवों का दौरा करें तो शायद हालात कुछ सुधर सकते हैं। आज देश की स्थिति उस मकान जैसी हो गई है, जिसकी नींव (किसान) ढह रही है और प्रशासन बाहरी दिखावे के लिए उस मकान की रंगाई-पुताई करने में लगा है! किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है, क्योंकि उसकी फसल या तो कीड़ों एवं अतिवृष्टि की वजह से खराब हो जाती है या सूखे की वजह से हो ही नहीं पाती। (नरेंद्र जांगिड़, बीएचयू, वाराणसी)

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स्त्री की जगह
आज के दौर में यह कहना भी दोहराव जैसा ही लगता है कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं, चाहे वह राजनीति हो, सामाजिक, व्यावसायिक, विज्ञान हो या फिर कला आदि। हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपने बूते अपनी अलग पहचान बनाई है। आज जब पहले की तरह महिलाओं को घर की चारदिवारी तक ही सीमित रखने की बात कोई करता है तो वह हंसी का पात्र बन सकता है। लेकिन सच यह है कि इन सबके बावजूद हमारा समाज पुरुष प्रधान है। आज भी स्त्री चाहे कितने ही बड़े मुकाम पर क्यों न पहुंच जाए, उसे दोयम दर्जे पर ही माना जाता है। आधुनिक दिखने वाले लोगों की मानसिकता भी पुरानी मूर्खतापूर्ण रूढ़ियों में जकड़ी हुई है।

विकास के तमाम दावों के बीच आज भी महिलाओं के खिलाफ अत्याचार का ग्राफ गिरा नहीं है। आए दिन अखबार या टीवी में यह देखने, पढ़ने, सुनने को मिल जाता है कि ससुराल वालों ने दहेज की मांग पूरी न होने पर बहु को जिंदा जला दिया या किसी पारिवारिक रंजिश में बदला लेने के लिए किसी महिला का बलात्कार किया गया। शिक्षित परिवारों में भी भ्रूणहत्या के मामले खूब सामने आ रहे हैं। एक स्वतंत्र देश की गरिमा तभी बनी रह सकती है जब यहां के नागरिक स्वतंत्र चेतना से लैस होंगे। और इसमें अगर स्त्री की स्वतंत्रता शर्तों की जंजीरों में जकड़ी हुई होगी तो वह समाज असभ्य और अविकसित ही होगा। (नीलम, दिल्ली विवि)

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यादों का सफर
गुजरे जमाने की मशहूर अभिनेत्री साधना शिवदासानी (नय्यर) के निधन से उनके लाखों चाहने वालों को मायूसी हुई होगी। मधुबाला, मीना कुमारी, नर्गिस, वहिदा रहमान, वैजयंतीमाला, नंदा, माला सिन्हा, नूतन, आशा पारेख, तनुजा, सायरा बानो जैसी खूबसूरत और बढ़िया अभिनय का प्रदर्शन करने वाली अभिनेत्रियों में साधना का स्थान काफी ऊपर था। 1960 में बनी फिल्म ‘लव इन शिमला’ के जरिए उन्होंने फिल्मी दुनिया में बतौर नायिका कदम रखा था। लेकिन उन्हें जिनसे अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त हुई, वे फिल्में थीं- ‘हम दोनों’, ‘एक मुसाफिर एक हसीना’, ‘वक्त’, ‘परख’, ‘आरजू’, ‘मेरे महबूब’, ‘वह कौन थी’, ‘मेरा साया’, ‘असली नकली’ और ‘राजकुमार’। इसके अलावा, ‘नैना बरसे’ (वह कौन थी), ‘तेरा मेरा प्यार’ (असली नकली) और ‘तू जहां जहां चलेगा’ (मेरा साया) लता के उनके लिए गाए हुए गीत श्रोताओं को सबसे ज्यादा पसंद हैं। उनके पति आरके नय्यर ने फिल्म ‘गीता मेरा नाम’ के निर्देशन के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया और साधना ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई। अफसोस की बात यह है कि आंखों की बीमारी की वजह से उन्हें मजबूरन फिल्मों को अलविदा कहना पड़ा। (अनिल रा तोरणे, तलेगांव, पुणे)

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दोस्ती के हाथ
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन पर शुभकामना देने के लिए अचानक पहुंचे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अप्रत्याशित पाकिस्तान यात्रा को सबने सराहा है। उनके इस कदम में दूरदर्शिता दिखाई पड़ती है। दुनिया का हर एक धर्म, मजहब भी यही कहता है कि जो काम प्यार-मोहब्बत से होता है, वह नफरत या लड़ाई-झगड़े से कभी नहीं होता। हकीकत यह है कि दो देशों के बीच अमन से दोनों देशों के बीच दोस्ती, व्यापार और उद्योग काफी बढ़ सकेंगे। इस अचानक यात्रा से पाकिस्तान की युवा पीढ़ी को भी बेशक अनेक प्रकार के फायदे होंगे। अब पाकिस्तान को भी इस दिशा में जल्दी ही मुनासिब कदम उठाने चाहिए। (हंसराज भट, मुंबई)