जनसत्ता (23 जुलाई 2021) में लेख ‘जल जागरण की जरूरत’ पढ़ा। नीति आयोग का आकलन एकदम सटीक है कि आधा भारत स्वच्छ पेयजल से वंचित है। दुख और हैरानी की बात तो यह है कि भारत में बारिश के पानी के संचय के प्रति सरकारें और जनता दोनों ही बेहद लापरवाह हैं! हर खेत में जल संचय और मकानों की छत का पानी जमीन में उतारने के लिए सख्त कानून बनाए जाने की जरूरत है! अन्यथा अगले दस वर्षों में स्वच्छ पेयजल की और भारी कमी हो जाएगी।

हमने तो कभी सोचा ही नहीं था कि हमें खरीद कर पानी पीना पड़ेगा! हमारे पुरखों ने नदियों में पानी देखा, हमने कुएं व तालाबों में पानी देखा। लेकिन आज की पीढ़ी बोतलों में पानी देख रही है! तो भविष्य की पीढ़ी क्या ड्रापर में पानी खरीद कर मुंह में टपकाएगी? अब स्वयंसेवी संस्थाओं और जनता को मिल कर बारिश के पानी की एक-एक बूंद को सहेजने का राष्ट्रव्यापी अभियान चलाना होगा जिसमें सरकार को भी सभी आवश्यक संसाधन निशुल्क उपलब्ध करवाने चाहिए। नदी तालाबों के आसपास भारी अतिक्रमण को हटाना, पानी की चोरी रोकना अब अत्यावश्यक है। साथ ही नदियों में उद्योगों का और शहर के नालों का पानी मिलाया जाना दंडनीय अपराध घोषित किया जाना चाहिए। इसके बाद अगली चरण में दूसरे देशों से समुद्री पानी को पेयजल में बदलने की तकनीक हासिल करके देश में बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया जाना चाहिए। यदि हम अभी नहीं जागे तो फिर बाद में प्यासी धरती और सूखे कंठ सूखे ही रह जाएंगे।
’विभूति बुपक्या, आष्टा (मप्र)

मौतों का सच

दूसरी लहर में आॅक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों के संदर्भ में विस्तृत चचार्एं चल रही हैं। तरह- तरह के प्रश्न पूछे जा रहे हैं। सरकार भी उसी अनुरूप जवाब दे रही है। हम सब अवगत हैं कि राज्यों से मिलने वाले आंकड़ों के आधार पर ही केंद्र सरकार आंकड़े सदन में पेश करती है। हैरानी की बात है कि प्रदेश की सरकारों द्वारा कोरोना संक्रमित मरीजों की आॅक्सीजन की कमी के कारण मौत का विवरण ‘शून्य’ दर्शाया गया है।

केंद्र सरकार कहती है कि देश के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत तो हुई है, परंतु आॅक्सीजन की कमी से मौतों का विवरण शून्य होना यह दशार्ता है कि मौत का अन्य कारण हो सकता है, पर कोरोना नहीं। ऐसे में कोरोना मौत के संदर्भ में आॅक्सीजन की अनुपलब्धता के कारण से हुई मौत की बात करते हुए सरकार को कटघरे में लाने से कुछ नहीं होने वाला। इसलिए विपक्षी दलों द्वारा सरकार के ऊपर इस तरह के आरोपों को लगाकर सरकार को कटघरे में खड़ा करना उचित नहीं है। जो भी हो, मौतों का सच क्या है, इसकी जांच जरूर होनी चाहिए।
’अशोक, पटना