पिछले दो सालों के दौरान एक ओर कोविड-19 स्वास्थ्य प्रणाली के लिए चुनौती बनकर आया तो वहीं इसने असमानता को भी हवा दे दी। हालांकि यह कहना गलत नहीं होगा कि यह असमानता दुनिया में बहुत पहले ही जन्म ले चुकी थी, लेकिन महामारी ने इसे बढ़ाने में आग में घी की तरह काम किया है। अमीर अमीर होते गए तो गरीब गरीब होते गए। दुनियाभर के 10 अरबपतियों की संपत्ति बढ़कर दोगुनी हो गई और निचले क्रम के 3.1 अरब लोगों की कुल संपत्ति से भी अधिक हो गई है तो वहीं 16 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं। यह सच विश्व आर्थिक मंच की डिजिटल बैठक में आक्सफेम की रिपोर्ट मेें सामने आया है।

निस्संदेह अरबपतियों ने कोरोना रूपी महामारी को अवसर में बदलने की कोई कमी नहीं छोड़ी। मास्क, सैनिटाइजर और कोविड टीकों के उत्पादन से उनकी आय को गति मिली और न जाने कितनी ही चुनौतियों को अवसर में बदलकर वे अपनी संपत्ति को बढ़ाने में सफल हो गए। भारत ने भी इसमें छलांग लगाते हुए अमेरिका और चीन के बाद अरबपतियों की सूची में अपना तीसरा स्थान हासिल कर लिया है। भारत में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई तो दूसरी तरफ 4.6 करोड़ से भी अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने को मजबूर हो गए हैं।

अमीरों और गरीबों के बीच का यह फासला वाकई चिंताजनक है। वह भी तब जब प्रधानमंत्री देश से गरीबी मिटाने की कोशिश का दावा कर रहे हैं। अगर सरकार इन अरबपतियों से एक फीसद भी अत्यधिक कर वसूल ले तो न जाने कितने गरीब बच्चे अच्छी से अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। सवाल है कि देश से गरीबी हटाने का सरकार का प्रयास कैसे सफल होगा? वह भी जब असमानता अपनी चरम पर हो?

  • संध्या मेहरोत्रा, लखनऊ, उप्र

फायदा या नुकसान!

एक बड़ा मुद्दा यह है कि वर्तमान आनलाइन शिक्षा के फायदे, नुकसान और उपलब्धियां सब जानते हैं। जिस प्रकार केवल सपने देखने से सपने पूरे नहीं होते, उसके लिए जुनून और मेहनत लगती है, ठीक उसी तरह केवल फोन में देख-सुनकर अगर पढ़ाई हो पाती तो क्या ही आवश्यकता थी बड़े बड़े शिक्षण संस्थानों की? जैसे आनलाइन कक्षाओं, उससे भी बढ़कर आनलाइन परीक्षाओं के नाम पर फ्री में डिग्री और सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं, उससे बेरोजगारी में इजाफा होने के अलावा कोई फायदा या उम्मीद नजर नहीं आती।

जो विद्यार्थी इस पर अपने पाठ्यक्रम पूर्ण कर रहे हैं, चाहे फिर वे स्नातक हो या स्नातकोत्तर या अन्य कोई पाठ्यक्रम, वे आगे क्या करेंगे? ऐसे डिग्रीधारक किस क्षेत्र के ‘मास्टर’ कहलाएंगे? फिर आनलाइन वाले इंजीनियर आनलाइन पुल बनाने के अलावा कोई पुल बना पाएंगे? आनलाइन बीएड किए शिक्षक क्या जीवन भर आनलाइन ही पढ़ाया करेंगे? बड़े-बड़े नामी विश्वविद्यालय भी कथित भरसक कोशिशों के बाबजूद भी विद्यार्थियों में आनलाइन शिक्षा के लिए आनंद और उपस्थिति दर्ज कराने में असफल साबित हुए हैं। इस समय छात्र वर्ग के तनाव का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा है, जिस पर भविष्य निर्भर है। हमें कोशिश करनी चाहिए उनकी स्थिति को समझने की ओर उनकी मदद करने की। जो लोग छात्र जीवन से पार पा चुके हैं, वे वर्तमान परिदृश्य में खुद को बतौर छात्र रखकर देखें। फिर भविष्य का अंधकार एकदम स्पष्ट रूप में नजर आ जाएगा।

  • रूपेश चौधरी, फरीदाबाद, हरियाणा