शार्ट सर्किट के चलते आग लगने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। मुंबई के अस्पताल में लगी आग के बाद भोपाल के अस्पताल में आग, चिंताजनक है। आग लगने की घटनाओं की पुनरावृति होना चिंता का सबब होना चाहिए। दरअसल, अस्पतालों और संस्थानों में आग लगना जिम्मेदारों की जिम्मेदारी के प्रति अभाव दर्शाता है। गैर-जिम्मेदारी कितनी भारी पड़ती है, इससे न केवल जनहानि होती है, बल्कि राष्ट्र की संपत्ति का नुकसान भी होता है।

अगर जिम्मेदार पूरी निष्ठा और सतर्कता से अपनी जिम्मेदारी निभाएं तो निश्चित ही इस प्रकार की घटनाओं को रोका जा सकता है। जिम्मेदारी का अभाव ही इस प्रकार की घटनाओं के मूल में है। आखिरकार जो जिस संस्थान और अस्पताल में बिजली से संबंधित जिम्मेदारी निभा रहे हैं, अपनी जिम्मेदारी कब समझेंगे? अब इसके लिए जो भी जिम्मेदार हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए, ताकि जिनके कंधों पर जवाबदेही है, वे पूरी सतर्कता से अपने काम को अंजाम दें!
’हेमा हरि उपाध्याय ‘अक्षत’, उज्जैन

अस्थायी को स्थायी

केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रालयों पर नजर दौड़ाएं तो अक्सर वर्षों से अस्थायी रूप से कार्य करने वाले कर्मचारी मिलेंगे। उनमें कुछ ऐसे भी कर्मचारी होंगे, जो साठ वर्ष की आयु सीमा पार करने वाले हैं और बिना स्थायी हुए ही सेवानिवृत्त भी हो गए होंगे। सवाल है कि जब मंत्रालयों और सरकारी विभागों में खाली पद होते हैं और कर्मचारी अस्थायी रूप से लंबे समय तक कार्य कर रहा है, तो उसको स्थायी करने के लिए प्रशासन और मंत्रालय खुद या फिर राज्य और केंद्र सरकारें कदम क्यों नहीं उठातीं।

समय-समय पर उनकी ट्रेड यूनियनें उनको स्थायी करने की मांग उठाती रही हैं, लेकिन किसी भी राज्य सरकार द्वारा इस तरह का ऐतिहासिक कदम नहीं उठाया जाता, जिस प्रकार पंजाब सरकार ने छत्तीस हजार कर्मचारियों को स्थायी करने का निर्णय लिया है।

हाल ही में पंजाब विधानसभा में रखे गए प्रोटेक्स रेगुलर रोजगार बिल 2021 को पेश कर सभी कर्मचारियों को स्थायी किया गया, जिसमें सफाई कर्मचारी से लेकर विभिन्न विभागों में टाइपिस्ट, क्लर्क तथा उनके साथ-साथ अन्य विभिन्न पदों पर कार्य कर रहे कर्मचारियों को स्थायी करने का निर्णय लिया गया है। राज्य सरकारें इस विषय पर आवश्यक रूप से प्रेरणा लें कि इस तरह के कर्मचारियों का लंबे समय से उनका मानसिक शारीरिक विभिन्न प्रकार से उत्पीड़न भी होता है। वे स्थायी कर्मचारी के बराबर का कार्य करते हैं, लेकिन उनको वेतनमान, छुट्टी, चिकित्सा अन्य सभी मूलभूत सुविधाएं भी प्राप्त नहीं होतीं।
’विजय कुमार धानिया, नई दिल्ली</p>