Economic Slowdown और देश की डंवाडोल अर्थव्यवस्था को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति और जाने-माने अर्थशास्त्री पराकला प्रभाकर ने चुप्पी चोड़ी है। उन्होंने कहा है हर बात पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आलोचना ठीक बात नहीं है। लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए बीजेपी को इसके बजाय नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह द्वारा अमल में लाए गए आर्थिक मॉडल और नीतियों को अपनाना चाहिए।

सोमवार (14 अक्टूबर, 2019) को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘ए लोडस्टार टू स्टीर द इकनॉमी’ (A lodestar to steer the economy) शीर्षक वाले लेख के जरिए उन्होंने ये बातें कहीं। 60 वर्षीय प्रभाकर आंध्र प्रदेश सरकार में संचार मामलों के सलाहकार रह चुके हैं और मौजूदा समय में हैदराबाद स्थित कंपनी RightFOLIO के निदेशक हैं।

उन्होंने लेख की शुरुआत में कहा कि देश में आर्थिक मंदी को लेकर हर ओर चिंता है। सरकार जहां इससे इनकार कर रही है, वहीं सार्वजनिक होता डेटा साफ बता रहा है कि एक के बाद एक क्षेत्र में गंभीर चुनौतियां पैदा हो रही हैं। निजी उपभोग में गिरावट आई है और यह 18वीं तिमाही के निचले स्तर पर आकर 3.1 फीसदी हो गया है।

उन्होंने आगे लिखा कि ग्रामीण उपभोग में शहरों में आई मंदी से दोगुणी कटौती हुई है। कुल निर्यात में भी बेहद या फिर बिल्कुल भी नहीं प्रगति हुई है। वित्त वर्ष 2019-2020 की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर महज पांच फीसदी के साथ छह साल के सबसे कम स्तर पर है। हालांकि, सरकार फिर भी यह संकेत देने की कोशिश में है कि वह चीजों पर पकड़ बना रही है।

वित्त मंत्री के पति ने यह भी दावा किया कि मोदी सरकार के पास आर्थिक मोर्चे पर कोई रोडमैप नहीं है। वह आगे बोले- बीजेपी के कार्यकाल में कुछ ही साल में यह समस्या पनपी है। यह बिल्कुल साफ है कि भारतीय जन संघ के दौर से ही नेहरू का ‘समाजवादी ढांचा’ खारिज किया जा रहा है। बीजेपी की आर्थिक विचारधारा राजनीति के मद्देनजर नेहरूवादी मॉडल की निंदा तक सिमट कर रह गई है।

उन्होंने आर्टिकल में यह भी कहा, “नेहरूवादी आर्थिक ढांचे पर जुबानी हमले महज राजनीतिक वार हैं, पर इनसे कभी भी अर्थव्यवस्था संबंधी समस्याएं नहीं सुलझेंगी। बीजेपी के थिंक टैंक (बुद्धिजीवी नेता) को यह बात समझ में नहीं आई है।” प्रभाकर ने यह भी सुझाया कि बीजेपी के राजनीतिक प्रोजेक्ट में सरदार वल्लभ भाई पटेल जब आदर्श बन सकते हैं, तब राव भी पार्टी के आर्थिक ढांचे के लिए ‘मजबूत चेहरा’ बन सकते हैं।

बकौल प्रभाकर, “ये चीज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को मौजूदा आर्थिक हालात से निपटने में मदद करेगी। अन्यथा, मैक्रोइकनॉमिक विचार वाला नेतृत्व बीजेपी की ओर से टीवी डिबेट्स में चिल्ला-चिल्ला कर विश्लेषण के रूप में और वॉट्सऐप पर आता रहेगा।”