सुब्रमण्यम स्वामी भाजा सरकार के लिए- खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी समस्याएं पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। जिस तरह से वे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन, मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और वित्त मंत्रालय के अन्य नौकरशाहों के पीछे पड़ गए, उससे यह बात साफ हो जाती है। सिर्फ यही नहीं, मोदी जब से सत्ता में आए हैं, गाहे-बगाहे स्वामी संवेदनशील, सांप्रदायिक मुद्दों पर विवादित बयान दे ही जाते हैं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में राम मंदिर बनाने की जरूरत बताने के लिए एक सेमिनार आयोजित किया था, यह जानते हुए कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है। हालांकि वे उत्तर प्रदेश में एक और विवादित नेता साक्षी महाराज की तरह कभी मशहूर नहीं रहे, मगर राज्य में आते-जाते रहे हैं।
वह ऐसी जनहित याचिकाओं के लिए जाने जाते हैं जो ग्रामीण जनता, आदिवासियों या दलित को फायदा नहीं पहुंचाती। लेकिन वह व्यक्त्यिों और राजनैतिक विरोधियों पर हमला करते हैं, जिन्हें वे दुश्मन समझते हैं। डीएमके के सपोर्ट वाले एक मामले के जरिए जे. जयललिता को जेल भिजवाने के बाद स्वामी ने थोड़ी साख बनाई। हाल ही में स्वामी ने नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों के संबंध में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। RSS और BJP ने इस मामले का समर्थन किया, लेकिन राजनैतिक परिपक्ता के बगैर।
स्वामी को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से इसलिए निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने जुलाई 2011 में एक अखबार में इस्लाम, खासतौर से मुस्लिमों पर एक लेख लिखा था। जिसका शीर्षक था ‘इस्लामी आतंकवाद को कैसे खत्म करें।’ उन्हें सेवा से हटाते हुए यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज ने स्वामी को ‘कपटी’ और ‘मामूली’ जनता पार्टी का अध्यक्ष बताया। उन्हें पार्टी में शामिल कर भाजपा ने एक झटके में ही स्वामी की पार्टी का कद मामूली से ‘बहुसंख्यक’ कर दिया।
अब प्रधानमंत्री ने यह कहते हुए उन्हें चेताया है कि ‘पब्लिसिटी स्टंट्स’ से देश को फायदा नहीं होगा। प्रधानमंत्री को यह पता होना चाहिए कि स्वामी ना सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट मास्टर हैं, बल्कि एक एेसे शिकारी हैं जो उन्हीं के कैंप में रहकर उन्हीं के खिलाफ काम कर रहे हैं। पीएम को पूछना चाहिए कि स्वामी ऐसे मुद्दे क्यों उठा रहे हैं कि जिनका चुनावी प्रचार में देश से किए गए उनके वादों से कोई लेना-देना नहीं है। मोदी को बहुमत विकास के लिए मिला था। स्वामी ने मोदी को पांच वोट दिलाने में भी मदद नहीं की। मोदी की पार्टी में, जिनका अपना खुद का वोट आधार है, स्वामी को ‘सिस्टम से बड़ा व्यक्ति’ मानते हैं। स्वामी का यह ‘बड़ा’ व्यक्तित्व कहां से आया?
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स्वामी को जानने के बावजूद, मोदी ने कैसे उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनने दिया? देश पहले दिन से जानता है कि स्वामी राज्य सभा में सरकार को असहज करना शुरू करेंगे। स्वामी के पास ऐसी कौन सी उपलब्धियां हैं जिसकी वजह से उन्हें नामित सदस्य के रूप में राज्यसभा भेजा गया? RSS ने उन्हें क्यों सपोर्ट किया? अगर वह एक दलित या पिछड़ी जाति से होते, तो भी क्या आरएसए उन्हें समर्थन देता? ऐसा कोई प्रमाण हमारे सामने नहीं है।
स्वामी कमाल के लेखक नहीं है, लेकिन ब्राह्मणवादी मीडिया उन्हें बुद्धिजीवी मानता है। यहां तक कि मोदी को भी उन्हें बड़ा व्यक्ति मानना पड़ा क्योंकि उन्हें दोहरा समर्थन मिलता है- मोहन भागवत के नेटवर्क से और मीडिया से। वह जो भी बोलते हैं उसे फ्रंट पेज कवेरज मिलता है, क्यों? क्योंकि मीडिया सोचता है कि ऐसे लाेग काम आ सकते हैं अगर वे कुछ ताकतों के खिलाफ जाते हैं।
स्वामी ने जयललिता और सोनिया गांधी को निशाना क्यों बनाया? कौटिल्य परंपरा से आने के चलते, उन्हें दलित-बहुजन और महिलाओं से लड़ना चाहिए। अपने ही राज्य में, एक पार्टी एक निचली जाति के तर्कवादी के हाथ में है और दूसरी एक महिला के- जो कि ब्राह्मण भी है। सोनिया गांधी के लिए उनकी नफरत एक से ज्यादा मनुवादी कारणों की वजह से है। सोनिया जन्म से इटैलियन हैं और पैदाइशी ईसाई। लेकिन स्वामी का असल निशाना मोदी हैं। मुझे नहीं लगता कि इस योजना में वह पार्टी में अकेले हैं। कई महत्वूपर्ण पार्टी सदस्यों ने स्वामी की राज्यसभा उम्मीदवारी का समर्थन किया। मोदी उनकी उम्मीदवारी को खारिज नहीं कर सकते थे। पार्टी के एंटी मोदी नेता स्वामी को अच्छा इस्तेमाल करते हैं।
मेरे विचार से, स्वामी अपनी पार्टी की कौटिल्य परंपरा के सार्वजनिक चेहरे हैं। यह तबका तबसे नाराज है जबसे माेदी यह चुनाव प्रचार के दौरान यह दावा किया था कि वह एक OBC हैं ताकि इससे उन्हें ज्यादा वोट्स मिलें। इस पहचान ने उनकी मदद की है। भाजपा के भीतर स्वामी का धड़ा यह मानता है कि मोदी की इसकी कीमत चुकानी चाहिए। इसलिए स्वामी का असली निशाना राजन या सुब्रमण्यम नहीं हैं।
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कई ऐसे मुद्दे हैं जिनपर मैं मोदी से सहमत नहीं हूं और मैंने उनके बारे में 2002 गुजरात दंगों के बादसे लिखा है। लेकिन अगर कौटिल्यवादी-मनुवादी-स्वामी तबका मोदी को ओवरथ्रो करने में कामयाब हो जाता है तो कोई OBC पीएम की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाएगा।
लेखक हैदराबाद स्थित मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल एक्सक्लूजन एंड इनक्लूजिव पॉलिसी के निदेशक हैं।