आज कल कई समाचार-पत्रों, वेबसाइट और टीवी चैनल पर पत्रकारों द्वारा यही चर्चा चल रही है कि उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री पद से योगी आदित्यनाथ हटाएंगे जाएंगे कि नहीं, अरविन्द कुमार शर्मा, जो मोदी जी के बहुत क़रीबी माने जाते हैं, को योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में किसी बड़े पद पर आने देंगे कि नहीं, 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में बीजेपी जीतेगी कि हारेगी, आदि?
वास्तव में ऐसे मुद्दे उठाने वाले पत्रकार सतही काम कर रहे हैं। ‘गोदी मीडिया’ की तो बात करना ही फ़िज़ूल है, पर तथाकथित ‘स्वतंत्र’ मीडिया का भी यही हाल है? असल में इनकी ‘स्वतंत्रता’ भी संदिग्ध है, क्योंकि आज खुद को ‘स्वतंत्र मीडिया’ का हिस्सा बताने-जताने वाले कई पत्रकार वर्षों तक ‘गोदी मीडिया’ में काम कर चुके हैं और परिस्थितिवश जब अलग राह चुननी पड़ी तो खुद को ‘स्वतंत्र मीडिया’ का पैरोकार बताने लगे।
हकीकत यह है कि आज भारत के ज्यादातर पत्रकारों का काम है जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाकर नगण्य तुच्छ मुद्दों (जैसे फ़िल्मी कलाकारों का जीवन और उनके घोटाले, क्रिकेट और हमारी घटिया राजनीति आदि) की ओर मोड़ देना, ताकि जनता बेवक़ूफ़ बनी रहे और अपनी वास्तविक आज़ादी (जो आर्थिक सामाजिक आज़ादी होती है) के लिए ऐतिहासिक जनसंघर्ष और जनक्रांति न कर सके। ऐसे पत्रकारों के लिए जनरल वीके सिंह ने सही ही प्रेस्टिट्यूट्स (Presstitutes) कहा था।
हर राजनैतिक व्यवस्था या राजनैतिक कार्य की एक ही परख और कसौटी हैः क्या उससे आम लोगों का जीवन स्तर बढ़ रहा कि नहीं? क्या उससे लोगों को बेहतर ज़िन्दगी मिल रही है कि नहीं? क्या उससे लोगों को ग़रीबी, बेरोज़गारी, कुपोषण, स्वास्थ लाभ और अच्छी शिक्षा के अभाव से निजात मिल रहा है कि नहीं? इस नज़रिये से देखा जाए तो स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी रहे या बिखर जाए का कोई महत्त्व नहीं है, क्योंकि वह रहे या बिखर जाए इससे आम आदमी के जीवन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
इसलिए ऐसे सवाल पूछना ही मूर्खता और फ़िज़ूल है। महत्वपूर्ण सवाल सिर्फ एक ही है कि हम कैसे ऐसी राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्था का निर्माण कर सकते हैं, जिसके अंतर्गत हमारी जनता का जीवन स्तर तेज़ी से बढे़ और लोगों को खुशहाल जीवन मिले? लेकिन, क्या भारतीय मीडिया इस मानसिक स्तर के साथ काम कर रहा है? हमारी मीडिया का मानसिक स्तर इस वीडियो से समझा जा सकता है।
एक और वीडियो देखेंः
सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की या उसका क़त्ल हुआ? इस सब से आम आदमी के जीवन का क्या सरोकार? पर हमारी महान मीडिया इस विषय को रात दिन तरजीह देती है।
हमारी मीडिया आजकल बड़े अटकलें लगा रही है कि फरवरी 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में बीजेपी का क्या हाल होगा? पर इसका क्या महत्त्व?
बीजेपी जीते या हारे, आम आदमी का जीवन स्तर वैसा का वैसा बना रहेगा, चाहे सपा बसपा या कांग्रेस, या उनकी साझा सरकार, सत्ता में आए। यानी ग़ुरबत बेरोज़गारी, कुपोषण आदि में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
अब यह वीडियो देखिये। शीर्षक है- क्या प्रियंका की सक्रियता से खड़ी होगी कांग्रेस? यह सवाल ही पूछने वाले की मूर्खता और निम्न समझ दर्शाता है।
कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में वोट बैंक था दलित + उच्च जाति + मुस्लिम। इनमें से दलित चले गए बसपा में, उच्च जाति वाले चले गए भाजपा में और मुस्लिम चले गए सपा में। यानी कांग्रेस के वोट बैंक का तो सफाया हो गया।
इसके अलावा, अगर कांग्रेस सत्ता में आ भी जाए (जिसकी संभावना नगण्य है) तो भी आम आदमी के जीवन पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा? क्या ग़रीबी, बेरोज़गारी, कुपोषण आदि ख़त्म या काम हो जाएगा? बिलकुल नहीं। कांग्रेस शासनकाल में तो भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर था।
अब यह वीडियो देखिये। इससे जनता के जीवन या जनता की समस्याओं से कोई सरोकार दिखाई देता है?
वास्तव में हमारी अधिकांश मीडिया का जनता की समस्याओं में कोई रुचि नहीं है। लोग ग़रीब रहें, बेरोज़गार और भूखे रहें, इस सब से उनका कोई सरोकार नहीं। उनकी रुचि है- टीआरपी (TRP) बढ़ाना और माल कमाना, जनता जिए या मरे।
