Conflict Between Legislature And Judiciary: पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत (Apex Court) में पांच नए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) की सिफारिश को मंजूरी दे दी है। 13 दिसंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Collegium) ने न्यायमूर्ति पंकज मिथल (राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), न्यायमूर्ति संजय करोल (पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार (मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह (न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय) और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा (न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय) की नियुक्ति को लेकर सिफारिश भेजी थी।

कानून मंत्री बोले- कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता, जनता मालिक है

डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice) का पदभार ग्रहण करते ही जनहित में ताबड़तोड़ फैसले दिए हैं। यही बात केंद्र सरकार के गले के नीचे नहीं उतर रही है। फिर क्या था, कानून मंत्री (Law Minister) ने बयान देना शुरू कर दिया और वर्ष 1993 से लागू कॉलेजियम सिस्टम (Collegium System) को आलोचना का मुद्दा बना दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कड़ी टिप्पणी के बाद अब जब बात अटक गई तो फिर अपने तेवर को सामान्य करते हुए कानून मंत्री रिजिजू ने कहा, ‘मैंने देखा कि मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने (कॉलेजियम पर) चेतावनी दी है। इस देश के मालिक यहां के लोग हैं, हम सिर्फ सेवक हैं। हमारा निर्देशक संविधान है। संविधान के अनुसार देश चलेगा। कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है। हम अपने आप को इस महान देश के सेवक के रूप में देखते हैं, वह अपने आप में बड़ी बात है। लोगों ने हमें मौका दिया है काम करने का। आप सब प्रिविलेज्ड लोग (Privileged People) हैं, जज-वकील बने हैं… पढ़-लिखकर ही बने हैं। हम खुशकिस्मत हैं कि देश के लिए काम करने की जिम्मेदारी मिली है।’

दरअसल, जिस कॉलेजियम पर यह विवाद हो रहा है, वह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर की प्रणाली है। कॉलेजियम के सदस्य जज ही होते हैं। वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को नए जजों की नियुक्ति के लिए नामों का सुझाव भेजते हैं। मंजूरी मिलने के बाद जजों को अप्वाइंट किया जाता है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने कहा कि लोकतंत्र में संसदीय संप्रभुता व स्वायत्तता सर्वोपरि है।

न्यायपालिका या कार्यपालिका (Judiciary or Executive) संसद में कानून बनाने या संविधान में संशोधन करने की शक्ति को अमान्य नहीं कर सकती। न्यायिक नियुक्तियों पर केंद्र सरकार व कॉलेजियम में टकराव के बीच उपराष्ट्रपति ने वर्ष 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) कानून को सुप्रीम कोर्ट से रद्द किए जाने पर फिर नाखुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा कहीं नहीं हुआ है।

Judiciary And Legislature.
एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़। (फोटो- इंडियन एक्सप्रेस)

राज्यसभा के सभापति धनखड़ ने पिछले सप्ताह जयपुर में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस दौरान देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बयानों का हवाला देते हुए सवाल किया कि क्या अब संसद में बने कानून पर कोर्ट की मुहर लगेगी, तभी वह मान्य होगा? उन्होंने कहा कि कोई भी संस्था जनादेश को बेअसर करने के लिए शक्ति या अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकती है।

कानून मंत्री और उपराष्ट्रपति, जो स्वयं वरिष्ठ एडवोकेट रहे हैं, के कॉलेजियम पर सवाल उठाए जाने के परिणाम स्वरूप बॉम्बे हाईकोर्ट में दोनों के विरुद्ध याचिका दायर कर उन्हें उनके पद के अयोग्य घोषित कर आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वाह करने से रोकने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री संवैधानिक पदों पर होने के बावजूद न्यायपालिका और विशेषरूप से सर्वोच्च न्यायालय पर सीधा आक्रमण शुरू कर दिया है। अतः उनका सार्वजनिक आचरण इन संवैधानिक पदों को धारण करने के अयोग्य है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि उपराष्ट्रपति और कानून मंत्री द्वारा सर्वोच्च न्यायालय तथा संविधान पर की गई टिप्पणी के बावजूद उन पर अब तक किसी संवैधानिक संस्था द्वारा कार्रवाई नहीं की गई है, इसलिए उच्च न्यायालय उन्हें पद के अयोग्य घोषित कर उनके आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोके। कानून मंत्री किरण रिजिजू ने पिछले वर्ष नवंबर में कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है, इसलिए जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।

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केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजीजू और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़। (Photo-@RijijuOffice and Express Archive photo by Nirmal Harindran)

उपराष्ट्रपति ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि संसद को कानून बनाने का अधिकार है, इसलिए न्यायपालिका और कार्यपालिका को संसद में बनाए जाने वाले कानून को अमान्य नहीं कर सकती।

विधायिका और न्यायपालिका के बीच यह बवाल तो इसलिए मचा हुआ है, क्योंकि केंद्र सरकार की मंशा यही थी कि जिस प्रकार अन्य सरकारी संस्था उनके इशारों पर चलती है, न्यायपालिका भी सीबीआई, ईडी की तरह उनके इशारों पर काम करे, लेकिन इस मंशा को देश के प्रधान न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने सफल नहीं होने दिया। लिहाजा, कानून मंत्री का कॉलेजियम को मुद्दा बनाना कोई चकित करने वाली स्थिति नहीं है।

विश्व के सभी देशों में न्यायपालिका को एक स्वतंत्र संस्था की मान्यता दी गई है, भारत में भी ऐसा ही है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा न्यायपालिका को भी अपने इशारों पर चलाने का जी-तोड़ प्रयास किया जा रहा है। लेकिन, भारत जैसे विशाल देश में क्या यह संभव है? यदि कभी ऐसा होता है, तो निश्चित मानिए, समझा जाएगा कि हमारा देश अब राजतत्र द्वारा संचालित किया जाएगा, क्योंकि अब यहां लोकतंत्र रहा ही नहीं।

स्वयं की समस्या का समाधान मिल बैठकर संविधान के तहत करना होगा

किसी भी स्थिति में यह बात देशहित में नहीं है कि विधायिका और न्यायपालिका के बीच तनातनी रहे। इससे न तो विधायिका का हित है, न न्यायपालिका का और न ही आमजन का, और अंत में अहित तो देश का ही होगा, हमारा और आपका ही नुकसान होगा। अतः जितनी जल्दी हो सके, समाधान तो किया ही जाना चाहिए। जब आम जनता की समस्या का समाधान ये दोनों संस्थाएं ही करती हैं, तो फिर स्वयं की समस्या का समाधान मिल बैठकर संविधान के तहत करने में इन्हें कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए।

दोनों संस्थाओं से आशा यही की जानी चाहिए कि अब और विवाद न बढ़े और लोकतांत्रिक संस्था का मान-सम्मान भी सामान्य जन के मन से समाप्त न हो, क्योंकि राजधर्म प्रजा-पालन में है, रक्तपात (आरोप-प्रत्यारोप) में नहीं। हमें बल प्रयोग केवल वहीं करना है, जहां संविधान-सम्मत भी हो और पूर्णतः अनिवार्य भी।

Senior Journalist Nishikant Thakur.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)