धर्म पूछ कर गोली मारी…पीड़ितों का यह तथ्य कैमरे में दर्ज है। आतंकवादियों की यही रणनीति थी कि हिंदुस्तानी नागरिकों की हत्या करने के बाद यह देश सांप्रदायिक तनाव की आग में भी झुलस जाए। आतंकवादी चाहते हैं कि गोली मारते दृश्य, रोती नव ब्याहता हर हिंदुस्तानी के फोन में पहुंचे। कश्मीर में जिस श्री के लौटने का दावा किया गया था आतंकवादियों ने एक ही झटके में उसका हरण कर लिया। अब देश के नागरिकों की नजर सरकार पर है। इस नाजुक समय में सरकार इसी सलाहियत के साथ चले कि सिर्फ प्रतिशोध का तोप ही पाकिस्तान की तरफ न हो। अमरनाथ यात्रा के पहले पहलगाम में पर्यटकों की इस तरह हत्या हो जाना हमारे पूरे खुफिया तंत्र की नाकामी है। 26 पर्यटकों के साथ आतंकवादियों ने कश्मीर की पूरी अर्थव्यवस्था को लहूलुहान कर दिया है। यह आतंकवादी हमला सिर्फ सीमा और सेना का मामला नहीं रह गया है बल्कि इससे हमारे देश का सांप्रदायिक सद्भाव भी जुड़ा हुआ है। मीडिया में आ रहे भड़काऊ और बिकाऊ बयानों के बीच सरकार के लिए इस फैसले की घड़ी पर बेबाक बोल

श्रीनगर में डल झील के किनारे जी-20 के प्रतिभागी, पंद्रह अगस्त से लेकर छब्बीस जनवरी को लाल चौक पर तिरंगे के साथ जश्न मनाते लोग। श्रीनगर से तस्वीरें आ रही थीं कि कश्मीर का श्री वापस आ गया है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैला पूरा देश कश्मीर के लौटे श्री को देखने पहुंचने लगा था। नब्बे के दशक के पहले शादीशुदा जोड़ों की पहली मंजिल कश्मीर ही होती थी। हर घर की तस्वीरों का संग्रहण कश्मीर की तस्वीरों के बिना अधूरा था। लंबे समय बाद फिर से हाथों में मेहंदी और चूड़ा पहने, नई-नवेली दुल्हन की तस्वीर खींचते जोड़ों की तस्वीरें आने लगी थीं। तभी बैसरन घाटी में आतंकवादियों ने बड़ी मुश्किल से लौटे इस श्री का हरण कर लिया। कश्मीर में आम नागरिकों सह पर्यटकों पर इतने जघन्य हमले के बाद बारी है सरकार की प्रतिक्रिया की। हर जगह से इसका कड़े से कड़ा जवाब देने की मांग हो रही है।

आज की स्थिति में पहली सलाह यह है कि आपके उठाए कदम महज जवाब देना या पलटवार के न हों। दावा किया गया था कि कश्मीर में हर तरफ शांति है। दावा यह भी किया गया कि यह शांति सिर्फ आपकी वजह से ही आ पाई है। इसके पहले सत्तर सालों में कुछ नहीं किया गया था जैसे उद्गार तो होते ही हैं। कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों के लिए इस तरह किए गए दावों को दुश्मन देश चुनौती की तरह लेने लगता है। इसलिए अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए आतंकवादी हमला पहले से बड़ा हो जाता है। उनका मकसद यही संदेश देना है कि सब ठीक नहीं है। यह संदेश इतना बर्बर होता है कि कुछ समय तक तो हर एजंसी के फैसले लेने की क्षमता भी थम जाती है।

आतंकवादियों का मकसद हमारी भावना के साथ खिलवाड़ करना ही है। बैसरन घाटी का रास्ता बहुत सुगम नहीं है तो जाहिर सी बात है कि वहां पर आम जगहों की तरह घूमते-फिरते पत्रकार नहीं थे कि जिन्हें अपनी नौकरी के तहत तस्वीरें खींचनी ही थी। आतंकवादियों ने खास रणनीति के तहत धर्म पूछ कर गोली मारी। उनका यही मकसद था कि गोली मारते, लोगों का यह बताते वीडियो वायरल हो कि धर्म पूछ कर गोली मारी।

कत्ल का कैमरे में कैद किया दृश्य दूर-दूर और लंबे समय तक दहशत फैलाने में कामयाब होता है। आतंकवादियों ने कत्ल के पहले डैनियल पर्ल का वीडियो इसलिए बनाया था कि लोग उनसे डरें। कश्मीर में अमन के दुश्मनों की रणनीति यही थी कि वहां कत्लेआम के बाद पूरे भारत का माहौल बिगड़े। यह सिर्फ 26 नागरिकों की हत्या भर नहीं है। यह कश्मीर के साथ जुड़े पूरे देश के भरोसे की हत्या है।हत्या के बाद धर्म के नाम पर भारत का माहौल बिगाड़ने की सोची-समझी साजिश है। इसलिए हमारे लिए सबसे पहली सतर्कता इसी में है कि हम इस साजिश को समझें और इसके जाल में न फंसे।

आतंकवादियों ने कश्मीर की आत्मा यानी पर्यटन की हत्या की है। सत्तारूढ़ पार्टी, विपक्ष, राजनेताओं से लेकर आम लोगों तक को यह समझना होगा कि यह मौका इसने करवा दिया या उसने करवा दिया जैसे आरोप-प्रत्यारोप का नहीं है। सबसे पहली जिम्मेदारी सरकार की है कि वह इसका कूटनीतिक तरीके से जवाब दे। इसके पहले भी कश्मीर में आतंकवादी हत्याएं कर रहे थे। कभी किसी गोलगप्पे बेचने वाले को मार रहे थे तो कभी हमारी सेना के जवान शहीद हो रहे थे। मगर कश्मीर के बाहर सब ठीक है का संदेश था।

यह अमरनाथ यात्रा शुरू होने का समय है और इसके पहले भी अमरनाथ यात्री आतंकवादियों के निशाने पर आ चुके हैं। अमरनाथ यात्रा के लिए पहलगाम पहला पड़ाव है। कश्मीर में इससे पहले भी जो आतंकवादी घटनाएं हो रही थीं उसे हम कमतर दिखाना चाह रहे थे। शायद इसलिए खुफिया एजंसियों ने भी अपने आंख-कान बंद कर रखे थे। इतनी बड़ी वारदात की कोई भनक तक नहीं लग पाना कश्मीर के संदर्भ में एक ऐसी गैरजिम्मेदारी है जिसके लिए इस बार जिम्मेदारी तय नहीं की गई तो आगे भी ऐसे हालात के लिए आप ही जिम्मेदार ठहराए जाएंगे।

अभी तक आपकी शैली है अपने हर काम के महिमामंडन की। खुफिया विभाग के अगुआ को देसी जेम्स बांड की उपाधि दे दी गई। लेकिन इनके कार्यकाल में खुफिया एजंसी का हाल देसी फिल्मों में दिखाई गई पुलिस की छवि जैसा हो गया है जो वारदात के बाद ही घटनास्थल पर पहुंचती है। उरी से लेकर पहलगाम तक में भारत सरकार को बड़ी जवाबी कार्रवाई करने की नौबत इसलिए आई कि खुफिया एजंसियां नाकाम रहीं। कश्मीर के केंद्र के प्रतिनिधि उपराज्यपाल साहब उत्तर प्रदेश के दौरे पर थे और अब जब उमर अब्दुल्ला आ गए हैं तो उनसे जिम्मेदारी की बात पूछना बेमानी ही होगा।

हमले का जवाब देते वक्त अमेरिका में विश्व व्यापार केंद्र के जुड़वां बहुमंजिला पर हुआ आतंकी हमला याद रखिएगा। क्या आपने उसमें किसी हताहत की तस्वीर का सरकारी इस्तेमाल देखा था? सत्तारूरढ़ पार्टी के एक सोशल मीडिया खाते ने पति के शव के पास बैठी संज्ञाशून्यनव ब्याहता का ‘घिबली’ संस्करण भी जारी कर दिया। दुख और दहशत ने उस नव ब्याहता की संज्ञा खत्म कर दी लेकिन आपकी चेतना कहां चली गई? यहां तो मामला है कि सरकार भी हमारी, व्यवस्था भी हमारी लेकिन जिम्मेदारी किसकी?

जब पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष कश्मीर को लेकर चौंकाने वाले बयान दे रहे थे तब क्या खुफिया एजंसियों को उच्च चौकसी पर लगा दिए जाने का वक्त नहीं था? पाकिस्तान अब भारत अधिकृत कश्मीर का राग अलापने लगा है। पाकिस्तान की अंदरूनी हालात जब-जब बदतर होती है उसके रहनुमा भारत को अशांत कर अपने देश के लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं।

भारत की आम जनता भी यह जानती है कि हम इस हमले का करारा जवाब देने में सक्षम हैं। हम वो देश हैं जिसकी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर उसे कभी न भूलने वाला सबक दिया था। आज फैसले की इस घड़ी में सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि उसकी भाषा सिर्फ प्रतिशोध की नहीं होनी चाहिए। यह सिर्फ ईंट का जवाब पत्थर से देने का समय नहीं है बल्कि आपको सोच-समझ कर ऐसी चारदीवारी खड़ी करनी है कि बजरिए कश्मीर पूरे भारत को अशांत करने की कोशिश आगे भी सफल न हो पाए।

अभी हमारी अर्थव्यवस्था कमजोर हालत में है। पूरी दुनिया में आर्थिक संकट है। ट्रंप की नीतियों ने ना, ना करते हुए भी चीन को एशिया का सर्वशक्तिमान सा दिखा दिया है। श्रीलंका से लेकर नेपाल तक चीन के करीब हो रहे। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने अभी हाल में सिक्किम के सीमाई इलाके को लेकर चिंताजनक बात बोली है।

इस समय आम जनता दुख और दहशत में है। सत्ताधारी अभिभावक के रूप में आपकी जिम्मेदारी दुखी होने और बदलना लेने से कहीं ज्यादा है। आज कश्मीर पूरे देश के साथ है और पूरा देश कश्मीर के साथ है। आपको इस एकता को बनाना और संवारना है तभी इन नागरिकों की शहादत को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकेगी।

सबसे जरूरी बात, मीडिया से जुड़े हर माध्यमों के लिए। किसी भी तरह के दृश्य से लेकर तथ्य दिखाने में संतुलित रहिए। कश्मीर को इससे बड़ा झटका लग नहीं सकता था। इस एक हमले से सभी को दागदार बताना बंद कीजिए। जिस जगह पर सुरक्षाबलों को पहुंचने में वक्त लगा वहां स्थानीय लोग घायलों को अपनी पीठ पर लाद कर अस्पताल ले गए।

कश्मीर की जनता आतंकवाद के खिलाफ सड़कों पर उतर गई। कश्मीर में मौजूद हर स्थानीय लोगों की आंखों में किसी अपने के मरने का गम था। उनकी आंखें बता रही थीं कि गोली पर्यटकों के साथ उनकी आत्मा पर भी लगी है। इस घाव को भरने में वक्त लगेगा, आप कृपया उस पर भेदभाव का नमक छिड़कना बंद करें।