Nitish Kumar Exercise To Unite Opposition Parties for 2024 Loksabha Election: 2024 का लोकसभा चुनाव अभी कैलेंडर में कितना ही दूर दिख रहा हो, लेकिन भाजपा की संगठनात्मक व अन्य स्तर पर तैयारी देख कर लग रहा है कि जैसे आज-कल में मतदान होना है। पक्ष की अति सक्रियता के बीच नीतीश कुमार ने अपनी कवायद से विपक्ष की नींद तोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है। नीतीश कुमार जिस तरह दागी से लेकर बेदागी नेताओं के दर पर दस्तक दे रहे हैं, उससे लगता है कि वे अगले लोकसभा चुनाव में चाणक्य की भूमिका निभा सकते हैं। नीतीश कुमार ने अभी अपना चेहरा भी राजनीतिक गुरु जैसा मुलायम और नि:स्वार्थी बना रखा है ताकि सत्ता पक्ष के खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिए कारवां तैयार किया जा सके। विपक्षी खेमे में जिस तरह से प्रधानमंत्री पद के उम्मीवारों की फौज है व कुछ क्षेत्रीय दलों की कांग्रेस को साथ लेकर चलने की झिझक, उसे देखते हुए आगे की राह मुश्किल दिख रही। विपक्ष की सक्रियता को खबर बनाने वाली इस दस्तक पर बेबाक बोल।
चलिए चलते हैं, अरे यह सब छोड़िए, इनके चक्कर में न पड़िए…पटना में नीतीश कुमार का यह व्यवहार तब दिखा जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर के साथ प्रेस वार्ता में पत्रकार ने केसीआर से सवाल पूछा। पत्रकार का सवाल था-आप मोदी को हराने की बात कर रहे हैं।
भाजपा के पास एक चेहरा है। क्या केसीआर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव प्रधानमंत्री पद के लिए करेंगे? पटना में उठे इस सवाल पर नीतीश कुमार कह गए कि इनके चक्कर (मीडिया) में न पड़िए। लेकिन पटना से लेकर दिल्ली तक की उनकी दौड़, तीन दिनों के अंदर येचुरी से लेकर चौटाला तक से मुलाकात यही बताती है कि उन्होंने अपने कंधे पर विपक्ष के अगुआ का स्वसत्यापित बिल्ला लगा लिया है।
उन्होंने भी कभी सधे हुए वाक्य-विन्यास में नहीं कहा कि मैं प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार हूं। दिल्ली दौरे में साफ तौर पर कहा कि कोई भी बन सकता है उम्मीदवार फिलहाल मैं नहीं हूं। लेकिन, क्या लालू यादव तो क्या सोनिया गांधी और येचुरी वे दागी से लेकर बेदागी हर दर पर दस्तक दे रहे हैं।

राहुल गांधी से मुलाकात करते नीतीश कुमार (फ़ोटो सोर्स: @Utkarshsingh_)
राजनीति के हाशिए पर खड़े शरद यादव के साथ उनकी गले लग कर मुस्कुराती हुई तस्वीर बता रही है कि इस बार नीतीश कुमार के लिए यह लड़ाई भावुकता का भी मसला है। तीन दिन के दिल्ली दौरे में उनके मुंह से विपक्षी नेताओं के लिए जितनी नम्र भाषा निकली है, वह उनकी गंभीरता को दिखाती है। सवाल है कि क्या नीतीश कुमार चाणक्य की भूमिका में आना चाहते हैं?
भारतीय राजनीति में चाणक्य सत्ता के खिलाफ विकल्प खड़ा करने का प्रतीक है। चाणक्य, यानी विपक्ष को अपनी शक्ति का एहसास करवाने वाला, क्षुद्र स्वार्थ को हटाकर बड़े लक्ष्य की ओर ले जाने वाला जिसे आधुनिक विमर्श में ‘किंगमेकर’ का नाम दिया जाता है।
जो खुद एक लक्ष्य रख कर उसके लिए ऐसा लश्कर तैयार करे जिनका मकसद सिर्फ लक्ष्य भेदना हो। क्या नीतीश कुमार सिर्फ सत्ता-परिवर्तन भर चाहते हैं या सत्ता का ताज पहनने के भी ख्वाहिशमंद हैं? नीतीश अपने बारे में खुद नहीं बोल रहे हैं, और विपक्षी खेमे में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की फौज को देखते हुए उनकी यह रणनीति सही भी है। लेकिन, पटना में तो दिल्ली चलो का संदेश देने वाले पोस्टर लग चुके जिन पर जुमला नहीं हकीकत, मन की नहीं काम की, प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा, आगाज हुआ बदलाव होगा जैसे नारे दर्ज हैं।
राहुल गांधी का सियासत में आगमन पीएम उम्मीदवार के तौर पर ही हुआ है
वहीं राहुल गांधी का राजनीतिक पदार्पण ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर हुआ था। इसके लिए राहुल गांधी का नाम तो स्थायी तौर पर घोषित है। कांग्रेस कहती है कि जिसके सबसे ज्यादा सांसद, उसी दल का प्रधानमंत्री बनेगा। कांग्रेस इसलिए यह कह सकती है कि अभी भी वह पचास सीटों का आंकड़ा तो पार कर ही जाती है। इसके अलावा ममता बनर्जी, केसीआर से लेकर सभी अपने क्षेत्रों में सीमित हैं। वहीं, अरविंद केजरीवाल दो राज्यों की सत्ता के बाद खुद को राष्ट्रीय पार्टी का तमगा दे रहे हैं। वे तिरंगा से लेकर शिक्षा तक अपना हर काम राष्ट्रीय स्तर के खाते में डाल दे रहे हैं। विपक्ष का चेहरा कौन के सवाल पर नीतीश कुमार यही कह रहे हैं कि जब मौका आएगा तो देखेंगे, अभी तो एकजुटता जरूरी है। सवाल यही है कि ऐसा मौका आने की उम्मीद कितनी है?
एक यही मुद्दा भाजपा को सबसे मजबूत बना देता है कि उसके पास इस बात को लेकर कोई विवाद ही नहीं है कि प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा। पिछले दो चुनावों में इसी चेहरे के भरोसे भाजपा ने विपक्ष को जबरदस्त मात दी है। 2024 कैलंडर में जितना भी दूर दिख रहा हो, भाजपा ने छह महीने पहले से ही ऐसी तैयारी शुरू कर दी है मानो कुछ हफ्तों के अंदर चुनाव मैदान में उतरना है।
भाजपा इस बार नारों पर नहीं, नीति के सहारे आगे बढ़ेगी
इसकी तुलना में विपक्ष की आमद तो देरी की खता वाले खाते में चली गई है। सांगठनिक तैयारी, रणनीति, एजंडा भाजपा के खेमे में सब तैयार है। रेवड़ियां बांटने वाले विमर्श ने साफ संकेत दे दिए हैं कि भाजपा इस बार लोकलुभावन नारों से परहेज कर अपने नीतिगत फैसले को आगे बढ़ाने पर ही जोर देगी।
सांगठनिक ढांचे और प्रधानमंत्री के घोषित चेहरे की बदौलत वह इतने आत्मविश्वास से भरी है कि मजबूत फैसलों पर बेहिचक आगे बढ़ रही है। भाजपा हिंदुत्व के छाते तले नई आर्थिक नीति व उदारवाद को लेकर आगे बढ़ेगी यह तो अभी से दिख रहा है। पिछले काफी समय के राजनीतिक रूझानों से यह भी दिख रहा है कि गठबंधन सरकारों को लेकर जनता में नकारात्मकता का ही भाव है।
विकल्पहीनता की स्थिति में विपक्ष की हालत यह थी कि पहले वह चेहरे में उलझा हुआ था और आज भी हालत वही है। अभी तो कोई भी चेहरा ऐसा नहीं दिख रहा जो अखिल भारतीय स्तर पर स्वीकार्य हो सकता है। इन सबमें सबसे अनुभवी के रूप में नीतीश अपनी बात रखने में कामयाब हो पा रहे हैं।
हाल के घटनाक्रम में उनकी छवि ऐसी बनी है कि वे भाजपा को उसकी ही भाषा में जवाब दे सकते हैं। इसे लेकर वे फिलहाल अपने चेहरे की बढ़त बनाए हुए हैं। वे विपक्ष के अंदर आत्मविश्वास भरने की कोशिश कर रहे हैं कि एक मेरा चेहरा है जो सभी को एकजुट कर सकता है। आज जो भूमिका नीतीश निभा रहे हैं पहले यह वाम दलों की होती थी। वाम-दल सत्ता के प्रति निर्मोही वाली छवि के साथ विपक्ष को एकजुट करते थे। लेकिन अब वाम-दल यह भूमिका निभाने की शक्ति खो चुके हैं।
ऐसे में नीतीश कुमार का गैर भाजपाई मुख्यमंत्रियों व दलों के नेताओं से मुलाकात का पहला दौर खत्म हो चुका है और वे आगे की मुलाकातों की तैयारी में हैं। नीतीश के इस कदम के बाद कम से कम विपक्ष की प्रक्रियागत शुरुआत तो हुई।
नीतीश और उनकी विपक्षी एकजुटता की कवायद के सामने भारतीय जनता पार्टी है। संगठनात्मक स्तर पर मजबूत, संसाधनों से भरपूर और चुनावी मैदान में आक्रामक। वहीं विपक्ष के पास ममता बनर्जी जैसी नेता हैं जो बंगाल जीतने के बाद एकता के मंच पर ज्यादा देर तक खड़ी ही नहीं रह पाती हैं। अभी तो वह सुखद रूप से सबके साथ चलने की बात कह रही हैं। लेकिन वे कब ‘एकला चलो रे’ का राग अलाप लें कोई नहीं कह सकता है।
केजरीवाल खुद को सबसे अलग दिखाने में जुटे हैं
राष्ट्रपति चुनाव के वक्त ही वे सत्ता पक्ष के उम्मीदवार की तारीफ करने लगीं। अरविंद केजरीवाल भारत को पहले नंबर पर लाने की मुहिम चला कर मैं सबसे अलग वाला अलगाव ले ही आए हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री की चुनावी तैयारी दुरुस्त दिखती है तो उन्हें कांग्रेस का साथ नहीं भाता है। वे अभी भी तीसरे मोर्चे के स्वप्नद्रष्टा हैं जो बगैर भाजपा और कांग्रेस के बने।
ऐसे में नीतीश की अगुआई वाला संभावित विपक्ष सत्ता पक्ष को अपनी तीसरी दावेदारी के लिए कितनी टक्कर दे पाएगा यह दूर की बात है। अभी तो खबर इतनी सी है कि नीतीश की विभिन्न दलों के दर पर दस्तक से विपक्ष अपनी बेखबरी तोड़ते दिख रहा है।
नीतीश कह रहे कि हां, मैदान में विपक्ष भी होगा। हालांकि, नीतीश कुमार ने जितनी बार अपना राजनीतिक चेहरा बदला है उसे देखते हुए और उनके उठाए कदमों का विश्लेषण कर आगे की राजनीतिक सूरत देखने की कोशिश ही कितनी कामयाब होगी अभी यही कहना मुश्किल है। लेकिन राजनीति शै ही ऐसी है कि हर हार के बाद भी राजनीतिक टिप्पणीकारों का हौसला बरकरार है।
विपक्ष का चेहरा चाहे जैसा भी हो फिलवक्त नीतीश ने उसे देखने के लिए एक आईना तो लगा दिया है। नसीम निकहत के शब्दों में कहें तो…
‘अपने चेहरे को बदलना तो बहुत मुश्किल है
दिल बहल जाएगा आईना बदल कर देखो’