मेजर आशाराम त्य्लफ्फाजियों का गर्म है बाजार किस कदर
दस्ते अमल हमारा मगर सर्द सर्द है।
असद रजा ने इन पंक्तियों में सर्द को जितना सर्द देखा है वह इस वक्त उत्तर प्रदेश में जाकर और सर्द हो जाता है। यह वह प्रदेश है जो हिंदुस्तान की हुकूमत बनाता और बिगाड़ता है। राजनीति के शतरंज की इस जमीन ने देश को सबसे ज्यादा वजीर-ए-आजम दिए हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के जनादेश ने जो तख्ता पलट किया उसने हिंदुस्तान की सियासत को बदल दिया। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में भी उसी केंद्रीय शक्ति पर भरोसा कर प्रचंड बहुमत दिया। लेकिन देश की इस सबसे बड़ी हिंदी पट्टी को मिला क्या? जो प्रदेश देश की संसद की सूरत तय कर सकता है आज उसे मामूली मुखालफत का भी अख्तियार नहीं है। जो उत्तर प्रदेश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ संघर्ष में सबसे आगे रहा आज वहां के लोग अंग्रेजों के जमाने की धारा 144 से जूझ रहे हैं। जहां के अजीम शायरों ने सबसे ज्यादा प्रतिरोध के गीत और नारे दिए आज वहां की जनता उन शायरों की नज्मों के पोस्टर लेकर सड़क पर चलने के कारण जेल भेजी जा रही है।

लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के बाद और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले विमुद्रीकरण हुआ। कृषि प्रधान और कमजोर तबके के इस प्रदेश ने अपनी आंखों में डिजिटल इंडिया का ख्वाब भरना मंजूर किया। विधानसभा में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया। विडंबना है कि यही प्रदेश अब नेटबंदी की मार भी झेल रहा है। लखनऊ से लेकर वाराणसी और मथुरा से लेकर गाजियाबाद तक मोबाइल पर संदेश आ रहे थे कि अगले 24 घंटे तक आपके इलाके में इंटरनेट बंद किया जा रहा है। जिस स्विगी और जोमैटो को नए जमाने में रोजगार का बड़ा माध्यम माना जा रहा है अब वे इस नेटबंदी से कराह उठे। उत्तर प्रदेश से जितनी बार इंटरनेट छीना गया वह वैश्विक दुनिया के उस कोने में भी दर्ज हो रहा है जहां अब इंटरनेट को बुनियादी अधिकार में गिना जाता है। पिछले दिनों एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में भारत का कश्मीर नेटबंदी का सिरमौर रहा तो अब उत्तर प्रदेश भी ऐसी ही किसी सूची में शामिल होने को आगे बढ़ रहा है।

लोग देश की संसद में पास एक कानून से आशंकित हैं और उसके खिलाफ सड़क पर उतरे। दुधमुंही बच्ची के सामाजिक कार्यकर्ता मां-बाप से लेकर पर्यावरणविद दंपति और सैकड़ों साधारण लोग प्रदर्शन करने गए तो फिर आसानी से नहीं लौटे। उन्होंने शांति से पुलिस को अपनी हिरासत दी क्योंकि विरोध का यही तरीका है। लेकिन इन लोगों को क्या पता था कि इस बार प्रदर्शन से घर वापसी इतनी आसान नहीं है। प्रदर्शनकारियों पर गंभीर आपराधिक धारा लगाने की बात कही गई। सत्ता समर्थकों ने गर्व के साथ इंटरनेट पर वायरल किया कि प्रदर्शन के दौरान लाठीचार्ज में जो लाठियां टूटी हैं उसका हर्जाना भी प्रदर्शनकारियों से वसूला जाएगा। थाने में ‘उपद्रवकारियों’ की तस्वीर और प्रदर्शनकारियों के घर वसूली का नोटिस। इस तरह का अहंकार उस जनता पर जिसने लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव तक भारी समर्थन दिया। जनता को अगर आपका कोई फैसला पसंद नहीं आ रहा है तो वह संवाद का कौन सा तरीका अपनाए? आपने संवाद के लिए कौन सा मंच दिया है?

उत्तर प्रदेश पुलिस के रवैए पर लगातार आरोप लग रहे हैं। देश में कई जगहों पर प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन कहीं भी इस तरह की हिंसात्मक और दमनात्मक कार्रवाई नहीं देखी गई है। पुलिस हालात पर नियंत्रण करने के बजाए खास तरह की प्रतिक्रिया दे रही है। आपने 24 घंटे इंटरनेट बंद कर दिया। लेकिन इंटरनेट चलते ही पुलिस अधिकारी का वह बयान वायरल हो गया जिसमें वो खास समुदाय के लोगों को पाकिस्तान जाने की बात कह रहे हैं। पुलिस अधिकारी की यही प्रतिक्रया है जो नागरिकता संशोधन कानून को लेकर लोगों को डरा रही है। आम लोग इस वीडियो के बाद और खौफ में आ जाते हैं कि ऐसी पुलिस के हाथों में ऐसा कानून होगा तो नागरिकों के बीच भेदभाव का आलम क्या होगा।

अभी सरकारें सबसे ज्यादा तकनीक पर बात करती हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश की सरकार भी है। एक तरफ तो तकनीक के मामले में हम इतना आगे बढ़ चुके हैं कि फेसबुक पर कोई किसी की फोटो डालता है तो चेहरा पहचान कर टैग करने का विकल्प आ जाता है। कृत्रिम बौद्धिकता का इस्तेमाल क्या सिर्फ मनोरंजन के लिए है। पुलिस तकनीक का इस्तेमाल कर उपद्रवियों की सही पहचान कर कार्रवाई करे। यह नहीं कि प्रदर्शन के लिए निकले शांतिप्रिय लोगों को भी जेल में ठूस दे।

उत्तर प्रदेश का प्रशासन प्रदर्शनकारी के घर वसूली का नोटिस भिजवाता है और आस-पड़ोस के लोग मिल कर हर्जाना भर रहे हैं। सबसे सुखद यह है कि इस बार जनता बनाम जनता के बीच बंटवारा नहीं है। जनता के गुटों की किसी तरह की टकराहट नहीं है। जहां भी झड़प है वह पुलिस बनाम प्रदर्शनकारी है। उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन को लेकर जनता की एकता सत्ता को बहुत बड़ा संदेश दे रही है। जब आम जन आर्थिक मंदी की मार से त्रस्त है तो उस वक्त ऐसे किसी कानून पर सख्ती नहीं बल्कि संजीदगी से रोजी और रोटी पर संवाद की जरूरत थी।

दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपने हाल के एक बयान में आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश के करीब 300 विधायक योगी सरकार के खिलाफ हो गए थे। अखिलेश के आरोप के आधार पर क्या यह समझा जाए कि अलगाव के मोड़ पर खड़े योगी खुद का चेहरा बचाने के लिए पुलिस को इस तरह की छूट दे रहे हैं। क्या खुद के खिलाफ बड़े विरोध को दबाने के लिए सरकार ने पुलिस को जनता के विरोध में खड़ा कर दिया है? जब सरकार के मुखिया अहंकार के चरम पर पहुंच जाते हैं और जनता को ही खारिज करते हैं तो ऐसा कयास लगना स्वाभाविक होता है।

लोकतांत्रिक सरकारों में जिम्मेदार राजनीति की अहम भूमिका होती है। साथ ही अहम होती है कूटनीति। वैश्विक मंचों पर जनता से संवाद के तौर-तरीकों की आलोचना हो रही है। इसे हम अपना घरेलू मामला कह खारिज नहीं कर सकते हैं, खास कर तब जब पूरी दुनिया में जनता सड़कों पर उतर विरोध प्रदर्शन कर रही हो। उत्तर प्रदेश पुलिस पूरी तरह सवालों के घेरे में है। पहले तो पुलिस कह देती है कि उसकी तरफ से एक भी गोली नहीं चली और बाद में गोलीबारी के वीडियो आ जाते हैं, गोली लगे प्रदर्शनकारी सामने आ जाते हैं। पुलिस के बड़े अधिकारी का एक खास कौम को लेकर ऐसा बयान आ जाता है जो हमें सकते में डाल देता है, हमारे पूरे पुलिस-प्रशासन पर सवाल उठाता है। कूटनीति के स्तर पर यह बहुत नकारात्मक संदेश है।

जब पुलिस अधिकारी नफरत फैलाने वाले बयान देंगे तो आप कितने दिनों तक इंटरनेट बंद कर इसे रोक पाएंगे। देश की बड़ी जनसंख्या वाले प्रदेश की पुलिस की ऐसी छवि बनेगी तो कौन से विदेशी निवेशक यहां बेखौफ आएंगे। अभी तो डंडे बरसाती और आम लोगों को जेल में ठूंसती पुलिस के जरिए योगी सरकार खुद को बहुत मजबूत समझ रही है। लेकिन ऐसी तस्वीरें आगे उसे कितना कमजोर बनाएगी यह तो वक्त के पन्नों पर ही दर्ज होगा।