2014 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाने के लिए जेल भरने को तैयार, आम आदमी के अग्रदूत चेहरा बने केजरीवाल को लेकर अदालत ने कहा कि आम और खास व्यक्ति के खिलाफ जांच अलग-अलग नहीं हो सकती। प्रवर्तन निदेशालय के नौ समन भेजने के बाद भी वे जांच के लिए मौजूद नहीं हुए और दलील दी कि प्रवर्तन निदेशालय वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उनसे पूछताछ करे। 2014 में भ्रष्टाचार के ज्यादातर लगाए आरोपों में केजरीवाल ने तो माफी मांग कर छुटकारा पाया लेकिन उनके खिलाफ लगे आरोप के अदालत तक पहुंचे सबूत इतने मजबूत दिखे कि अदालत ने उन पर शराब घोटाले का मुख्य साजिशकर्ता होने का आरोप लगाया। आम चुनावों के वक्त तक जब आम आदमी पार्टी की समर्थक जनता अपने सितारा नेताओं को खोज रही है तो कोई विदेश की धरती पर महफूज बैठा है तो कोई देश में अंतर्ध्यान है। आप के सांसदों की सक्रियता तो दूर उनके सांस लेने की आवाज नहीं आ रही। भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता से भ्रष्टाचार के कर्ता-धर्ता के आरोप तक पहुंचे अरविंद केजरीवाल के सफर पर प्रस्तुत है बेबाक बोल।
दो मुअज्जिन ने शब-ए-वस्ल अजां पिछले पहर हाए कंबख्त को किस वक्त खुदा याद आया –दाग देहलवी
ने अरविंद केजरीवाल के साथ ही राजनीति में कदम रखा था। उस वक्त उन्होंने कहा था कि राजनीति बदलेगी तो देश भी बदलेगा। आज दुख के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि राजनीति तो नहीं बदली लेकिन राजनेता बदल गए’।आम आदमी पार्टी के नेता राजकुमार आनंद ने अरविंद केजरीवाल पर आम राजनेताओं की तरह बदल जाने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया। हालांकि राजकुमार आनंद खुद ही प्रवर्तन निदेशालय की जांच प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। आम आदमी पार्टी का यही कहना है कि जांच एजंसियों का इस्तेमाल करके उसके नेताओं को तोड़ा जा रहा है, डराया जा रहा है।
हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर स्पष्ट किया कि प्रवर्तन निदेशालय की ओर से एकत्र साक्ष्यों से पता चलता है कि केजरीवाल इस मामले की साजिश रचने और इससे अर्जित धन के उपयोग व उसे छिपाने में सक्रिय रूप से शामिल थे।
देश में आम चुनाव के लिए मतदान के पहले अरविंद केजरीवाल पर अदालत की यह सख्त टिप्पणी उस देश की जनता के लिए विडंबना है जिसने दस साल पहले गाजे-बाजे के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ वार में साथ देते हुए अरविंद केजरीवाल को विकल्प की राजनीति का चेहरा बनाया था। देश के हर आदमी को लगने लगा था कि उसके बच्चों के लिए अच्छे स्कूल नहीं हैं, इलाज के लिए पर्याप्त अस्पताल नहीं है, जीवन में आगे बढ़ने के लिए नौकरी नहीं है तो इसका एकमात्र कारण भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार जनता के मूल अधिकार के खिलाफ होता है। उम्मीद जगी कि आम आदमी पार्टी यह पूरा माहौल बदल देगी।
आज उसी आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से लेकर मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन जेल में हैं। आम चुनावों का वक्त है और आम आदमी पार्टी के सितारा नेता राघव चड्ढा देश की जमीन पर वापसी के लिए तैयार नहीं हैं। इसका कारण मेडिकल दिक्कत बताया जा रहा है। पर, देश की जनता ने वो दिन भी देखा है जब ये लोग हर तरह की दिक्कतों को छोड़ गर्मी, बरसात, सर्दी की परवाह नहीं करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन किया करते थे।
दिल्ली की सड़कों पर आधी रात को निडर घूमने वालीं स्वाति मालीवाल को अब ऐसा क्या ‘डर’ है कि चुनावों के समय मैदान से बाहर हैं। परिवार और सेहत की दलीलों के बीच कभी देश सबसे आगे हुआ करता था। वहीं हरभजन सिंह की रुचि लोकसभा चुनाव नहीं बल्कि क्रिकेट के आइपीएल मैच में ज्यादा दिख रही है।
जनता ‘आप’ के उन नेताओं को खोज रही है जिन्हें उन्होंने सत्ता तक पहुंचाया था। पार्टी का आरोप हो सकता है कि सही साबित हो जाए कि उनके खिलाफ राजनीतिक साजिश हो रही है। लेकिन, देश के नाम पर मर-मिटने का दावा करने वाले नेता जेल से क्यों डरने लगे? जेल तो 2014 के पहले भी था, जिसे भरने के लिए आंदोलन किया जाता था। ‘आप’ के दस में से सात राज्यसभा सांसदों की सक्रियता तो दूर उनके सांस लेने की आवाज तक नहीं सुनी जा रही है।
जेल में दिल्ली के मुख्यमंत्री और चुनाव मैदान से नदारद आम आदमी पार्टी के सात सांसद। 2024 के चुनाव मैदान में पूरे एक दशक का विमर्श है। जनता को 2014 का वह समय अच्छी तरह याद है जब भारतीय राजनीति में दो दलों ने सत्ता हासिल की। इन दो दलों के झंडे पर समान नारा था-भ्रष्टाचार पर वार।
दोनों दलों ने दो लोगों को जेल भेजने का दावा किया था। जो नया दल था, उसने कहा कि हम सोनिया गांधी को जेल भेजेंगे। उनके जेल जाते ही सारे भ्रष्टाचारियों के नामों का खुलासा हो जाएगा। दूसरे दल के हरियणा के नेता अनिल विज शान से जमीन घोटाले में राबर्ट वाड्रा को जेल भेजने की बात किया करते थे।
अब दस साल बाद 2024 में कदम रखिए। रामलीला मैदान के मंच पर सोनिया गांधी बैठी हैं। जेल में बंद अरविंद केजरीवाल के प्रतिनिधि सोनिया गांधी के साथ आवाज उठा कर मुख्यमंत्री को जेल भेजने की मुखालफत कर रहे हैं। कभी वाड्रा को जेल भेजने का वादा करने वाले अनिल विज इन दिनों नेहरुवादी गाना गा रहे हैं-छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी…।
नई कहानी तो ठीक है लेकिन विज जी के पुराने वादे का क्या हुआ? भाजपा जानती थी कि भारत की राजनीति में स्थिर होने के लिए कांग्रेस को बड़ा नुकसान पहुंचाना होगा। चुनावी मैदान में उसने आम आदमी पार्टी को पनपने के पूरे अवसर दिए। भाजपा और ‘आप’ यानी एक और एक मिलकर पूरे ग्यारह की तरह कांग्रेस को नेस्तोनाबूत करने में कामयाब रहे। भाजपा अपने हिस्से के वोट हासिल कर रही थी और ‘आप’ कांग्रेस के हिस्से का वोट हासिल कर भाजपा का रास्ता आसान कर रही थी।
कांग्रेस को कमजोर करने की ‘आप’ की कवायद में मजबूती भाजपा की बनती गई। खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसा मजबूत चेहरा बने जिनके दम पर चुनाव जीता जा सकता है।आम आदमी पार्टी आई थी तो आगे बढ़ना भी था। उसने पूरे देश में प्रसार की सोची, लेकिन अब माहौल बदल चुका था। भाजपा के पास तो ग्यारह वाली शक्ति आ गई लेकिन आम आदमी पार्टी की शक्ति घटती गई।
कांग्रेस का वजूद हिलाने के बाद भाजपा और आम आदमी पार्टी के कांग्रेस की खाली की गई राजनीतिक जमीन के बंटवारे में सबसे बड़ा मुद्दा था भ्रष्टाचार का। एक ही नारे को लेकर दो दल नहीं चल सकते थे। राष्ट्रवाद से लेकर राम मंदिर तक आम आदमी पार्टी कितना भी मैं-मैं कर लेती, लेकिन उस पर एकाधिकार तो भाजपा का हो चुका था। भाजपा ने फैसला कर लिया कि भ्रष्टाचार का झंडा भी अब अपने पास ही रख लेगी।
भाजपा के लिए इतना काफी नहीं था कि वह भ्रष्टाचार पर वार का झंडा सिर्फ अपने हाथ में रखे। भ्रष्टाचार पर नायकत्व के लिए सामने एक खलनायक की भी जरूरत थी। भ्रष्टाचार विरोधी सिनेमा में खलनायक की भूमिका फिर से कांग्रेस को देने से जनता बोर हो जाती। इसलिए, इस बार आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं को भ्रष्टाचार के पर्याय के ताजा चेहरे के रूप में पेश किया गया।
2014 में लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप में कई ऐसे थे जिनमें अरविंद केजरीवाल ने अदालत में माफी मांग कर माफीवीर का दर्जा हासिल किया। अदालतें इंतजार कर रही थी कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता ट्रक भर कर सबूत लाएंगे और भ्रष्टाचार का मामला आगे बढ़ेगा। आज जेल भेजने का खेल इस कदर बदल गया कि जांच एजंसी ने अरविंद केजरीवाल से कहा-पहले आप।
2024 का आलम यह है कि अरविंद केजरीवाल की अर्जी पर अदालत की टिप्पणी थी-हमारा सरोकार संवैधानिक नैतिकता से है, न कि राजनीतिक नैतिकता से। यानी संवैधानिक नैतिकता के दायरे में आम आदमी पार्टी पर अनैतिक होने के आरोप लग चुके हैं। आज भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का झंडा छिन जाने के बाद आम आदमी पार्टी के पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं था कि वह अपनी जमीन वापसी के लिए उसी कांग्रेस से हाथ मिलाए जिसे जमीन से बेदखल करके उसकी राजनीतिक उर्वरता भाजपा को सौंप दी थी।
2024 के आम चुनावों की प्रक्रिया के दौरान ही अरविंद केजरीवाल का जेल जाना, अदालत की साजिशकर्ता वाली टिप्पणी के बाद सवाल उठता है कि इन दस सालों का हासिल क्या हुआ? इस सवाल का जवाब भी आम आदमी पार्टी के सात सांसदों की तरह गुम है।