दुनिया मेरे आगे: पारस मनुष्य की वह प्रकृति है, जिसमें आत्मा की गहराई प्रतिबिंब है मनुष्य के मन में महत्तम चीजों को पकड़ कर रखने की लालसा हमेशा से ही बलवती रही है। By उमेश प्रसाद सिंहUpdated: September 21, 2023 10:21 IST
ललित प्रसंग: खोए हुए बसंत की पीड़ा हमारी विरासत खोए हुए बसंत की पीड़ा को चैता में गाने की विरासत रही है। मगर अब तो हम अपनी… By उमेश प्रसाद सिंहMay 26, 2019 00:37 IST
ललित प्रसंग: मत का दान भला क्यों! गला फाड़ कर गाते हैं। इसकी महिमा की पूजा करते हैं। आरती उतारते हैं। मत नाम की कोई चीज कायदे… By उमेश प्रसाद सिंहApril 7, 2019 03:11 IST
ललित प्रसंग: मोरा हीरा हेराय गया कचरे में कबीर का बोध विराट का बोध है। उनकी विकलता विराट के बोध से उत्पे्ररित विकलता है। इसीलिए कबीर की वाणी… By उमेश प्रसाद सिंहDecember 9, 2018 06:05 IST
अवसर: जनतंत्र में जागरण की मुनादी भाषा में मुहावरा बन जाना आसान नहीं होता। मुहावरे रोज-रोज नहीं बनते। धूमिल का काव्यबोध अपने समय की व्यवस्था से… By उमेश प्रसाद सिंहNovember 4, 2018 05:51 IST
ललित प्रसंगः सही जवाब की शिनाख्त हम जो कुछ भी देख रहे हैं, देख पा रहे हैं, वह वास्तविकता नहीं है। वास्तविक नहीं है है। वह… By उमेश प्रसाद सिंहAugust 5, 2018 05:26 IST
ललित प्रसंग: बूड़ती हुई विरासत हमारी विरासत बूड़ रही है, बूड़ती जा रही है, हम हैं कि चाय की चुस्कियां लेते अपनी विरासत के बूड़ने… By उमेश प्रसाद सिंहJune 3, 2018 06:36 IST
प्रसंगवश: किससे मिलना है संसार में केवल मैं जो सोचता हूं, वही संपूर्ण नहीं है। लोग क्या सोचते हैं, यह भी जानना जरूरी है।… By उमेश प्रसाद सिंहApril 1, 2018 05:08 IST
ललित प्रसंग – सपने और सवाल हमारी व्यवस्था का दावा है कि आजादी के बाद हमारे देश में शिशुओं की मृत्यु दर में बहुत कमी आई… By उमेश प्रसाद सिंहFebruary 11, 2018 02:45 IST
ललित प्रसंग- गलत पते के कारण बिना विरासत का आदमी कोई आदमी है, क्या? नहीं जिसकी कोई विरासत ही नहीं है, उसका वजूद ही क्या है!… By उमेश प्रसाद सिंहDecember 31, 2017 00:02 IST
प्रसंगवश- यहां तदर्थ सुविधा नहीं है साहित्य का बुनियादी सवाल प्राथमिकता का सवाल है। और यही बस अकेला सवाल है। By उमेश प्रसाद सिंहDecember 10, 2017 05:13 IST
ललित प्रसंग- परदेस को उठे पांव हमारे गांव के जवान बड़े-बड़े शहरों की छोटी-छोटी फैक्टरियों के मजदूर बन कर अपना मुंह छिपाने को बेबस हैं। By उमेश प्रसाद सिंहJune 25, 2017 06:37 IST
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