मनुष्य के मन में महत्तम चीजों को पकड़ कर रखने की लालसा हमेशा से ही बलवती रही है।
मनुष्य के मन में महत्तम चीजों को पकड़ कर रखने की लालसा हमेशा से ही बलवती रही है।
हमारी विरासत खोए हुए बसंत की पीड़ा को चैता में गाने की विरासत रही है। मगर अब तो हम अपनी…
गला फाड़ कर गाते हैं। इसकी महिमा की पूजा करते हैं। आरती उतारते हैं। मत नाम की कोई चीज कायदे…
कबीर का बोध विराट का बोध है। उनकी विकलता विराट के बोध से उत्पे्ररित विकलता है। इसीलिए कबीर की वाणी…
भाषा में मुहावरा बन जाना आसान नहीं होता। मुहावरे रोज-रोज नहीं बनते। धूमिल का काव्यबोध अपने समय की व्यवस्था से…
हम जो कुछ भी देख रहे हैं, देख पा रहे हैं, वह वास्तविकता नहीं है। वास्तविक नहीं है है। वह…
हमारी विरासत बूड़ रही है, बूड़ती जा रही है, हम हैं कि चाय की चुस्कियां लेते अपनी विरासत के बूड़ने…
संसार में केवल मैं जो सोचता हूं, वही संपूर्ण नहीं है। लोग क्या सोचते हैं, यह भी जानना जरूरी है।…
हमारी व्यवस्था का दावा है कि आजादी के बाद हमारे देश में शिशुओं की मृत्यु दर में बहुत कमी आई…
बिना विरासत का आदमी कोई आदमी है, क्या? नहीं जिसकी कोई विरासत ही नहीं है, उसका वजूद ही क्या है!…
साहित्य का बुनियादी सवाल प्राथमिकता का सवाल है। और यही बस अकेला सवाल है।
हमारे गांव के जवान बड़े-बड़े शहरों की छोटी-छोटी फैक्टरियों के मजदूर बन कर अपना मुंह छिपाने को बेबस हैं।