आज के दौर में जब रिश्तों की डोर कमजोर पड़ रही हो, भाई-भाई का सगा नहीं, भाई-बहन में प्यार नहीं।…
आज के दौर में जब रिश्तों की डोर कमजोर पड़ रही हो, भाई-भाई का सगा नहीं, भाई-बहन में प्यार नहीं।…
सैकड़ों यात्रियों को लादे हुए यह मेट्रो अभी विश्वविद्यालय स्टेशन पहुंची है। भीड़ के चक्रव्यूह को भेदते हुए कालेज के…
अपराजिता जैसी ज्यादा उम्र की युवतियां शादी न कर के भी कितनी खुश हैं। वे अपने जीवन के फैसले खुद…
यह महिला सशक्तीकरण का दौर है। शारीरिक संरचना और बल में वह पुरुषों से बेशक कमतर हो, लेकिन मानसिक धरातल…
खुशी की तलाश में हम सभी भटकते हैं। फिर भी कितना इतराते हैं। झूठ ही सही, मगर जब लोग पूछते…
स्त्री नदी की तरह होती है। वह चलती है तो कई जिंदगियां चलती हैं। वह हंसती हैं तो फूल झरते…
बाल श्रम ने एक नया रूप ले लिया है। सड़कों पर बच्चे भीख मांग रहे हैं। कभी पेन बेचते हैं…
मैं इस वक्त लास्ट कोच में सफर कर रहा हूं। यह कहानी है मेरी मित्र डॉ. उज्ज्वला की सहेली सुनंदा…
मैं प्लेटफार्म नंबर तीन के अंतिम छोर पर पहुंच गया हूं। यहां एक युगल ने बरबस ध्यान खींच लिया है।…
उस दिन ठिठुरती दोपहर थी। बादलों में लुकाछिपी करता सूरज अपनी रश्मियों से प्रेम की कोपलें सहला रहा था। रेस्तरां…
पढ़ें संजय स्वतंत्र की कविता “मैं पिता हो जाना चाहता हूं”
पढ़ें संजय स्वतंत्र की कविता तुम्हारी हथेलियों में सुगंध