अलका ‘सोनी’
इस दुनिया में इंसान तो क्या, दूसरे प्राणी भी इस प्रवृत्ति से बच नहीं पाते। हम सभी रुपए-पैसे, गहनों से लेकर अपनी खुशी के क्षण भी संग्रहित कर रखना चाहते हैं। और फिर खुशियों के क्षणों को संग्रहित रखने का सबसे आसान और सरल तरीका है ‘तस्वीरें’। खुशी के क्षण बीत जाने के बाद भी इन तस्वीरों को देख कर हम उन्हीं यादों में लौट आते हैं, जिनसे बरबस ही हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
एक मुस्कराती हुई तस्वीर हमें भी मुस्कराने पर विवश कर देती है। मुस्कराहट की अपनी ही भाषा होती है। मुस्कराते हुए चेहरे अपने मन की बात खोल देते हैं। उनकी खुशी के भाव चेहरे से छलकते प्रतीत होते हैं।
देखा जाए तो तस्वीरों और मुस्कराहट का काफी पुराना रिश्ता है। ये भाव प्रकट करने का इतिहास बहुत पुराना है। मार्टिनेज कहते हैं कि ‘इंसान ने बोलना सीखने से पहले चेहरे से ही भाव प्रकट करना सीखा।’ मगर यह बात भी उतनी ही सच है कि हर मुस्कराते चेहरे के जज्बात समझना किसी चुनौती से कम नहीं है।
कला के इतिहास से लेकर आज रोबोटिक मशीनों के दौर तक मुस्क राहट को सही-सही समझ पाना एक चुनौती है। हममें से बहुतों ने ‘मोनालिसा’ का नाम सुना है। उसके होठों की मुस्कराहट आज भी रहस्य बनी हुई है। कहने वाले कहा करते हैं कि इस कलाकृति की मुस्कान बदलती रहती है।
इस पेंटिंग को इटली के महान दार्शनिक और पेंटर लिओनार्दो दा विंची ने बनाया था। उन्होंने इस पेंटिंग को साल 1503 में बनाना शुरू किया था और 1517 तक बनाना जारी रखा। विंची को सबसे ज्यादा दिक्कत मोनालिसा के होंठों को बनाने में आ रही थी। मोनालिसा के सिर्फ होठों को बनाने में उन्होंने करीब बारह साल लगा दिए।
साल 2000 में हावर्ड के एक स्रायु वैज्ञानिक ने मोनालिसा की इस पेंटिंग पर शोध करने के बाद बताया कि आपके सोचने का जैसा ढांचा रहता है, वैसे ही मोनालिसा की कलाकृति आपको दिखती है। अगर आप खुश हैं, तो आपको मोनालिसा मुस्कराते हुए दिखेगी। वहीं अगर आप दुखी हैं तो मोनालिसा की यह मुस्कान फीकी पड़ जाएगी।
यानी मुस्कान काफी हद तक हमारी सोच पर निर्भर करती है। जितने सकारात्मक हम रहेंगे, उतनी ही सुंदर मुस्कान लगेगी। वहीं शारीरिक तौर पर मुस्कराने की प्रक्रिया एकदम आसान और साफ है। इंसान जो भाव चेहरे से जाहिर करता है, उसे सत्रह मांसपेशियां नियंत्रित करती हैं। कहते हैं कि अगर असली हंसी न आए तो नकली हंसी ही हंसो, एक दिन अपने आप असली हंसी आने लग जाएगी।
शायद इसलिए जगह-जगह ‘लाफ्टर क्लब’ यानी हास्य क्लब खुल गए हैं। मुझे याद आ रहा है कि फेसबुक पर एक नवयुवती ने प्रोफाइल फोटो के लिए अपने मुस्कराते हुए चेहरे की फोटो डाली। सबने उसको पसंद किया, लेकिन एक प्रशंसक ने टिप्पणी लिखी कि ‘इसकी मुस्कराहट पर मत जाइएगा, यह अपनी खुशियों की तलाश कर रही है।’
आजकल सेल्फी खींचते हुए अक्सर लोग एक खास किस्म की मिथ्या मुस्कराहट अपने चेहरे पर ले आते हैं। अक्सर युवा मुंह दबाकर ‘ची’ बोलते हुए इस मुस्कराहट की भंगिमा का सृजन करते हैं। कुछ युवतियां एक खास किस्म से अपने होठों को सिकोड़ती हैं, जिसे ‘पाउट’ करना कहा जाता है। स्मार्ट फोन के प्रचलन के बाद जो प्रवृत्तियां हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हो गई हैं, उनमें एक सेल्फी भी है।
कतिपय लोग यह कहने में भी नहीं हिचकिचाते कि आदमी के अकेलेपन का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसे उत्साह के क्षणों में भी कोई फोटो खिंचवाने वाला साथी नहीं मिलता। जो भी हो, जीवन के महत्त्वपूर्ण क्षणों को कैमरे में कैद कर लेने का सुख शब्दातीत प्रतीत होता है। कहते हैं कि कोई व्यक्ति इतना गरीब नहीं हो सकता कि वह मुस्करा भी न सके और कोई इतना अमीर भी नहीं हो सकता कि मुस्कराहट के बिना रह सके। मुस्कराहट एक उपहार है प्रकृति का। यह जीवंत होने की निशानी है- ‘मरने से पहले, तू मरने की बात न कर/ मौत से पहले तू मौत को याद न कर’।
इसके अलावा, केवल दिखावे के लिए न मुस्कराएं। अगर याद करना पड़ता है कि हम दिल से कब मुस्कराए थे, तो यह क्या बात हुई! जीवन में समस्याएं, तकलीफ, मुसीबतें तो आएंगी ही। जब तक जीवन है, ये चलती ही रहेंगी। एक दूर होगी, दूसरी आ जाएगी। लेकिन कोई भी समस्या हमेशा रहने वाली नहीं है। यह सब अस्थायी हैं। इसलिए मुस्कराते रहना चाहिए, क्योंकि ‘चिंता’ चिता सामान है।
चिता तो एक बार ही जलती है, पर चिंता रूपी चिता बार-बार जलती है। दुख-परेशानी के लिए यह जिंदगी बहुत छोटी है। हमारी एक मुस्कराहट दुश्मन को भी हमारा दोस्त बना देगी। अगर यह हमारी परेशानी को दूर न भी कर पाए, तो उनका सामना करने की शक्ति जरूर दे सकती है।