सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
हिंदी शब्द अपने आप में फारसी का होकर भी कभी हमें फारसी-सा नहीं लगा है। हमने कभी उसे ऐसा लगने भी नहीं दिया है। हिंदी सबको साथ लेकर चलने वाली भाषा है। इसकी उत्पत्ति ‘हिंद’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है भारत। इस प्रकार, हिंदी का अर्थ है ‘भारतीय’। यही कारण है कि अमीर खुसरो के ‘हिंदवी’ शब्द को धारण किए भारत की गोद में झूलने का जो सुख हिंदी को मिला है, वह किसी और भाषा को नहीं मिला। इसका कारण यह है कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीयता की परिचायक है, सच्चे अर्थों में भारतीय भाषा है।
हिंदी हिंदवी के शैशवास्था से होते हुए प्राकृत की अपभ्रंश भाषा के बाल्यकाल में खेलते हुए आगे चलकर कबीर के अक्खड़पन में डूबती है, तो कभी जायसी के प्रेममार्ग पर चलकर ‘पद्मावत’ बन बैठती है। हिंदी को केवल भाषा समझना सबसे बड़ी भूल है। यह भारत की एक अमूल्य धरोहर है, भारत के लोगों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
भाषा विज्ञान में कहा गया है कि हिंदी भाषा खुद विचारों को व्यक्त करने की क्षमता रखती है और इसे अपनी अद्वितीय भूमिका के लिए पहचाना जाता है। अनेक भाषाओं के संक्षिप्त रूपांतरण के बावजूद हिंदी भाषा सुरभि है और भाषा की उदात्तता और मनोहारिता दिखाई देती है। यह भाषा विश्व योगदान के नुकसान को परिहार करने का सामर्थ्य रखती है।
मानवीय पहचान के रूप में महत्त्वपूर्ण है और अपनी विविधता के कारण ऐक्य और भाईचारे को प्रोत्साहित करती है। यह भाषा भारत की भूमि से नहीं, बल्कि उसके नागरिकों की भावनाओं और संस्कृति से जुड़ी हुई है। यह भारत की एकता की मजबूती को प्रतिष्ठित करती है। यह बेवजह नहीं है कि कलात्मक ऊंचाई से लेकर जमीन पर जनभाषा के रूप में हिंदी उतनी ही जीवंत दिखती है। विचार और विमर्श की भाषा के स्तर पर भी यह उतनी गंभीर और व्यापक दायरे में अपना प्रभाव छोड़ती है, तो दूसरी ओर आम जन भी इस भाषा के जरिए अपना जीवन संभालते देखे जाते हैं।
सच यह है कि जिस समाज में हिंदी एक आम भाषा रही है, उसमें हिंदी में अपने विचार अभिव्यक्त करना आसान होता है और इसमें संवेदनशील होने का एक अहम गुण है। इस भाषा को माध्यम के रूप में उपयोग करने से मनोभावना और अभिव्यक्ति में महत्त्वपूर्ण पारितोषिक आत्म-सम्मान की प्राप्ति होती है। यह भाषा हमें स्वतंत्रता और सामरिकता का आनंद देती है, हमें हमारी भावनाओं की सीमाओं से पार जाने का अवसर देती है। हिंदी के शाब्दिक और व्याकरणिक नियम सरल होने के कारण वक्ता रचनात्मकता की सीमाएं चुन सकता है।
साहित्य की दुनिया के तमाम विद्वानों ने हिंदी को इसकी खूबसूरती और असीम व्यापकता में निहित बताया है। इस संबंध में रामचंद्र शुक्ल का कहना है कि हिंदी भाषा का पुनरुत्थान हमारी संस्कृति और नागरिकता का प्रतीक है। ‘मधुशाला’ के लेखक हरिवंश राय बच्चन कहते हैं- ‘हिंदी भाषा में झलकती हुई कविता हमारी अंदरूनी स्वतंत्रता का प्रतीक है’, जबकि ‘ठेले पर हिमालय’ धरने वाले धर्मवीर भारती के शब्दों में- ‘हिंदी भाषा की सुंदरता और अमरता उसके लहरदार अवतरणों में निहित है।’ वहीं अमृता प्रीतम का कहना है कि हिंदी भाषा में कविता मन, शरीर और आत्मा के संगम पर जीवन देती है।
हिंदी भाषा का विकास बहुत संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण अंश है, इसलिए हमें अपनी रोजमर्रा की बातचीत में हिंदी भाषा का उपयोग करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें हिंदी का सदुपयोग करने की आदत डालनी चाहिए और इसे अपने मूल्यों और संस्कृति के साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। हमें शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी को महत्त्व देना चाहिए।
विद्यालयों और महाविद्यालयों में हमें हिंदी भाषा को उच्चतम स्थान देना चाहिए और उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में भी हिंदी के पाठ्यक्रम और शोध को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, हिंदी साहित्यिक और सांस्कृतिक सम्मेलनों का आयोजन करना चाहिए। ये सम्मेलन लेखकों, कवियों, काव्यानुभवों, प्रोफेसरों, विद्यार्थियों और विद्वानों को जोड़ने और हिंदी भाषा के विकास की पुष्टि करते हैं।
हमें तकनीकी और अद्यतन भाषा माध्यमों का सही उपयोग करना चाहिए। इंटरनेट, मोबाइल अनुप्रयोग, सोशल मीडिया और अन्य संचार माध्यमों से हमें हिंदी भाषा को प्रबल करना चाहिए और इसके पठन और पढ़ने में अधिक समय देना चाहिए। हमें हिंदी साहित्य, कहानियों, कविताओं, नाटकों और अन्य लेखों को पढ़ने की रुचि बढ़ानी चाहिए। लेखकों और कवियों की रचनाओं का आनंद लेना चाहिए और हिंदी अनुवादों का समर्थन करना चाहिए।
ये कुछ औपचारिक प्रयास हो सकते हैं, लेकिन इन्हीं सबसे कोई संस्कृति बनती है और उसमें हमारे गर्व के विषय तय होते हैं। यह सच है कि हमें भारतीयता का परिचय कराने वाली हमारी लाड़ली हिंदी ही है। हम सब में जब तक यह भावना नहीं पनपेगी, तब तक यह कहना कि ‘हिंदी हैं हम’ केवल शब्द बनकर रह जाएगा। असली पहचान इस भाषा को गले लगाने से मिलना है।