वर्तमान समाज में पारंपरिक ज्ञान, लोक शिक्षा और परिपक्वता का स्थान अब आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की भेंट चढ़ गया है। इसके कारण आधुनिक समाज कमजोर हुआ है। शिक्षा और साक्षरता की परख अब अलग-अलग पैमाने से होने लगी है। साक्षरता और विकास एक दूसरे के पूरक हैं तो यह भी सत्य है कि स्कूलों में बढ़ रही संख्या का मुख्य कारण साक्षरता आंदोलन है। साक्षरता की समृद्धि से विकास, स्वास्थ्य और खुशहाली को उचित रास्ता मिलता है। इन साक्षरता अभियानों ने चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए अनेक कठिनाइयों और समस्याओं को चीरकर निरक्षरता उन्मूलन करने में धीरे-धीरे सफलता प्राप्त की है।
विकसित राष्ट्रों की बराबरी में खड़ा होना अभियानों का उद्देश्य
आत्म मंथन की प्रक्रिया हमारा मार्ग प्रशस्त करती है। निरक्षरता के अंधकार को मिटाने के लिए आजादी के बाद अनेक परियोजनाओं के माध्यम से देश में साक्षरता अभियानों का संचालन किया गया। 1951 से 2021 तक देश में अलग-अलग नाम से प्रौढ़ शिक्षा आंदोलन का संचालन भारत सरकार के माध्यम से राज्यों की देखरेख में होते रहे हैं। हमारे देश में साक्षरता अभियान लगभग एक अनुष्ठान की तरह संचालित होते रहे हैं। कभी पशुपालन कार्यक्रम, ग्रामीण क्रियात्मक साक्षरता परियोजना, व्यापक साक्षरता कार्यक्रम, अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम, संपूर्ण साक्षरता अभियान, उत्तर साक्षरता कार्यक्रम, सतत शिक्षा कार्यक्रम, साक्षर भारत कार्यक्रम, पढ़ना लिखना अभियान और नवभारत साक्षरता कार्यक्रम आदि। इन अनुष्ठानरूपी अभियानों एवं कार्यक्रमों का उद्देश्य एक जैसा रहा- विकसित राष्ट्रों की बराबरी में खड़ा होना।
अनेक साक्षरता अभियानों की वजह से देश में काफी सोच-विचार के बाद साक्षरता को जरूरी विषय बनाया गया और 5 मई 1988 को साक्षरता अभियान को मिशनरी रूप में संचालित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना की गई। इस मिशन की सोच बनी कि जब तक संपूर्ण साक्षरता नहीं आएगी, तब तक भारत विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में सम्मिलित नहीं हो पाएगा। 1951 से 1991 तक और फिर 2001 से वर्तमान समय में साक्षरता अभियान एक कार्यक्रम बनकर रह गया, जिससे इन दशकों में साक्षरता दर में अधिक वृद्धि नहीं हो पाई। मगर 1991 से 2001 को सुकून भरा दशक कहा जा सकता है, जब देश ने 13.17 फीसद की उल्लेखनीय साक्षरता वृद्धि की थी।
कई तरह के संयुक्त प्रयासों से 127.45 मिलियन लोग साक्षर हुए
यह वह समय था जब राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के अंतर्गत संपूर्ण साक्षरता अभियान संचालित किया जा रहा था। इसके तहत पूरे देश में एक साथ गांव-ढाणी में निरक्षरता उन्मूलन का बड़ा आंदोलन संचालित किया गया। इस कार्यक्रम के तहत 597 जिलों में संपूर्ण साक्षरता अभियान और फिर उत्तर साक्षरता और सतत शिक्षा कार्यक्रम भी संचालित हुए। उस दौरान सरकारी और गैर सरकारी संयुक्त प्रयासों से 127.45 मिलियन लोग साक्षर हुए, जिनमें साठ फीसद साक्षर महिलाएं थीं।
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की उल्लेखनीय सफलताओं के बावजूद साक्षरता आमतौर पर राष्ट्रीय चिंता का विषय नहीं रही। 2011 के बाद 2021 में स्पष्ट आंकड़ों की प्रतीक्षा थी, लेकिन जनगणना नहीं होने के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ। फिर भी राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण यानी एनएसओ के नमूना सर्वेक्षण में भारत में मात्र 77.70 फीसद साक्षरता बताई गई है, जो बहुत अधिक नहीं है। आज भी पुरुष और महिला साक्षरता का अंतर 14.4 फीसद के बड़े अंतर से चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
शेष रहे निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर संपूर्ण साक्षरता अभियान की तर्ज पर पूरे देश में साक्षरता, बुनियादी साक्षरता और कौशल विकास कार्यक्रम का संकल्प फिर दोहराया जाना चाहिए, ताकि एक ऐसे समाज का निर्माण किया जा सके, जिसमें नवसाक्षरों को सतत शिक्षा के लिए सुविधाएं मुहैया करवाई जा सके।
असाक्षरों के लिए वर्तमान में संचालित नवभारत साक्षरता कार्यक्रम सीधे डिजिटल साक्षरता के रूप में संचालित किए जाने के कारण बुनियादी साक्षरता और कौशल विकास कार्य का सपना अधूरा रहेगा। संपूर्ण साक्षरता के बाद डिजिटल साक्षरता, उत्तर साक्षरता और सतत शिक्षा कार्यक्रम में सम्मिलित किया जाना उचित प्रतीत होता है। जनगणना 2011और एनएसओ सर्वे के आंकड़े प्रसारित होने के बाद से अब तक कोई बहुत ज्यादा विचार प्रारंभ नहीं हुआ।
हालांकि मीडिया और सरकार ने इस पर चिंता जरूर जताई, लेकिन साक्षरता की तस्वीर को गंभीरता से देखने की जरूरत है। जब तक सरकार की इच्छाशक्ति और सामाजिक संगठन जात बिरादरी, धार्मिक संस्थाएं और शिक्षित लोग सक्रिय नहीं होंगे, तब तक निरक्षरता का उन्मूलन कैसे हो सकेगा?
देश के विकास में साक्षरता की अहम भूमिका होती है। अब तक के प्रयासों को आगे बढ़ाने में ठोस उपाय करने होंगे। हालांकि शासन में महिलाओं की सहभागिता एवं सक्रियता बढ़ी है, लेकिन इसे आधार बनाकर महिला-पुरुषों के बीच गैरबराबरी को दूर करने के लिए समन्वित प्रयास होंगे तभी देश में साक्षरता बढ़ेगी। बहुत स्पष्ट तस्वीर दिखाई दे रही है कि अब भारत और राज्य में मौजूद असाक्षरों का समूह दरअसल वह ठोस समूह है, जिन्हें ढूंढ़ना और साक्षर बनाना मुश्किल काम है।
हालांकि अब तक के प्रयासों को खारिज बिल्कुल नहीं किया जा सकता और न ही गत सात दशकों के दौरान किए गए निरक्षरता उन्मूलन के प्रयासों पर प्रश्न चिह्न लगाया जा सकता है। गांव-देहात के असाक्षरों को ढूंढ़कर साक्षरता के साथ जोड़ना सबसे अधिक मुश्किल कार्य होगा। देश में अभी भी पुरुषों की साक्षरता 80.70 फीसद और महिलाओं की साक्षरता मात्र 70.30 फीसद ही है। इसे सौ फीसद की संभावना तक लाने की सबसे बड़ी चुनौती हमारे सामने है।