तेजी से बदलते सामाजिक परिदृश्य में एक गंभीर चिंता उभर कर सामने आई है कि बच्चों में अच्छे संस्कार धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं। जहां कभी घर-परिवार और विद्यालय मिल कर बच्चों के चरित्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाते थे, वहीं आज यह भूमिका तकनीक, सोशल मीडिया और भौतिकवाद की चकाचौंध ने अपने हाथ में ले ली है। यह स्थिति न केवल बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए, बल्कि संपूर्ण समाज की नैतिक संरचना के लिए भी गंभीर खतरे का संकेत है।

संस्कार केवल कुछ नैतिक नियमों का संकलन नहीं होते, बल्कि यह एक व्यक्ति की आंतरिक चेतना, सामाजिक उत्तरदायित्व और मानवीयता के मूल तत्त्व होते हैं। संस्कार उस अमूल्य विरासत का नाम है, जिसे माता-पिता अपनी संतानों को देते हैं। जब कोई बच्चा अच्छे संस्कारों के साथ बड़ा होता है, तो वह केवल एक अच्छा व्यक्ति नहीं बनता, बल्कि समाज के प्रति संवेदनशील और एक प्रेरणादायक इंसान बनता है।

यह स्वीकार करना होगा कि संस्कारों की नींव सबसे पहले घर में रखी जाती है। माता-पिता का व्यवहार, उनकी वाणी, उनके निर्णय और उनकी प्राथमिकताएं बच्चों के मानस पर गहरी छाप छोड़ते हैं। मगर, आधुनिक युग में माता-पिता की व्यस्तता, आर्थिक प्रतिस्पर्धा और सफलता की अंधी दौड़ ने उन्हें बच्चों के लिए समय देना तो दूर, उनके मानसिक और भावनात्मक विकास की चिंता करने से भी वंचित कर दिया है। परिणामस्वरूप, बच्चों की परवरिश मोबाइल फोन, टेलीविजन, इंटरनेट और सोशल मीडिया के भरोसे होने लगी है।

यह बात अत्यंत चिंताजनक है कि आज के बच्चे अपने माता-पिता या शिक्षकों की बजाय फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सऐप से अधिक प्रभावित होते हैं। इंटरनेट पर उपलब्ध आपत्तिजनक सामग्री, हिंसा से भरे वीडियो गेम और निरंकुश मनोरंजन की संस्कृति ने बच्चों के नैतिक आधार को कमजोर कर दिया है। यह स्वाभाविक है कि जब बाहरी दुनिया संस्कारों को विकृत कर रही हो और घर-परिवार या विद्यालय उनका संतुलन न बना पाएं, तो बच्चों के मानसिक विकास में असंतुलन आना तय है।

माता-पिता भी इस बदलते परिवेश में भ्रमित हैं। कुछ इस भ्रम में जी रहे हैं कि संस्कार देने का उनका अधिकार अब उनसे छिन चुका है। कुछ अपनी कमियों की भरपाई बच्चों की हर मांग पूरी करने की कोशिश करते हैं, चाहे वह मांग उचित हो या अनुचित। ऐसे में बच्चे हर चीज को अधिकार समझ कर मांगते हैं और इनकार को अपमान मानते हैं। यह स्थिति माता-पिता व बच्चों, दोनों के लिए घातक है। बच्चों की अनुचित जिद को मान लेना या उनके हर व्यवहार को ‘स्वाभाविक’ मान कर अनदेखा करना, एक ऐसी गलती है जो भविष्य में बड़े दुष्परिणाम का कारण बन सकती है।

अब यह सवाल उठता है कि संस्कारवान व्यक्ति आखिर होता कौन है? एक ऐसा व्यक्ति जो दूसरों की भावनाओं का सम्मान करता है, सहयोग और सेवा की भावना रखता है तथा अपने लाभ के लिए दूसरों का शोषण नहीं करता- वह संस्कारवान कहलाने योग्य है। उसमें तहजीब, सहनशीलता, विनम्रता, आत्मनियंत्रण और क्षमाशीलता जैसे गुण स्वाभाविक रूप से होते हैं।

आज के समय में कुछ विशिष्ट संस्कारों के विकास की आवश्यकता है। पहला है सामूहिकता का संस्कार- जो व्यक्ति को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए जीने की प्रेरणा देता है। आत्मकेंद्रित जीवनशैली ने इंसान को अपने ही दायरे में सीमित कर दिया है। उसे दूसरों की तकलीफ, संघर्ष और जरूरतों से कोई सरोकार नहीं रह गया है। एक सामूहिक दृष्टिकोण से युक्त व्यक्ति समाज में समानता, शिक्षा का अधिकार, सार्वजनिक संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण और नागरिक उत्तरदायित्व की भावना को महत्त्व देता है।

दूसरा आवश्यक संस्कार है- स्वास्थ्य। आज की पीढ़ी घर के बजाय बाहर के भोजन, नींद की कमी और गतिहीन जीवनशैली का शिकार है। अगर बच्चों में प्रारंभ से ही स्वास्थ्य संबंधी आदतें नहीं डाली जाएं, तो वे भविष्य में न तो अपने लिए, न ही दूसरों के लिए उपयोगी सिद्ध हो पाएंगे। इसी तरह स्वावलंबन का संस्कार भी अत्यंत आवश्यक है। घर के छोटे-छोटे काम करने से लेकर अपनी देखभाल तक- ये वे बुनियादी आदतें हैं जो आत्मनिर्भरता को जन्म देती हैं। इसके अलावा श्रम एवं सेवा का संस्कार भी आज के युग में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो गया है।

सेवा भाव और परिश्रम से कतराना आज एक सामान्य प्रवृत्ति बन गई है। लोग हर काम के लिए पैसे देकर सेवाएं लेना पसंद करते हैं, लेकिन किसी की मदद करना या स्वयं श्रम करना उन्हें ‘छोटा’ लगने लगा है। यह स्थिति न केवल सामाजिक संबंधों को खोखला करती है, बल्कि किसी भी आपदा या संकट के समय मानवीय सहयोग की भावना को भी क्षीण कर देती है।

इन सभी परिस्थितियों में यह स्पष्ट होता है कि बच्चों को अच्छे संस्कार देने के लिए माता-पिता को केवल प्रेमपूर्ण नहीं, बल्कि कठोर और विवेकपूर्ण भी होना पड़ेगा। अत: हमें इस तथ्य को समझना होगा कि अच्छे संस्कार केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय प्रगति के भी आधार हैं।