प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनएचआरसी के 28वें स्थापना दिवस पर कहा कि हाल के वर्षों में लोग मानव अधिकार की व्याख्या अपने अपने तरीके से कर रहे हैं। एक प्रकार की घटना पर कुछ लोगों को मानवाधिकार का हनन दिखता है और वैसी ही किसी दूसरी घटना पर इन्हीं लोगों को मानव अधिकार का हनन नहीं दिखता। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मानव अधिकारों का हनन तब होता है जब उसे राजनीति के चश्मे से देखा जाता है।
रिटायर्ड आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने उनके इस ट्वीट पर कमेंट करते हुए लिखा, ठीक कहा आपने, किसान मरते हैं तो मानवाधिकार की बात करना ‘सिलेक्टिव व्यवहार’ है। आपको समझ आ गया है कि यूपी से योगी जी का बोरिया बिस्तर बंध चुका है। लखीमपुर ने उत्प्रेरक का काम किया है। इसीलिए आपको ‘सेलेक्टिव मानवाधिकार’ याद आ रहा है। ये राजनैतिक नहीं, एक तानाशाही चश्मा है।
मुकेश कुमार चंदेल (MukeshK53961102) के टि्वटर हैंडल पर लिखा गया कि राजनैतिक चश्मे से.. सर इस चश्मे की शुरुआत क्यों न आपकी पार्टी से हो? आदि नाम के एक ट्विटर यूजर लिखते हैं कि भगवान जीवन में इतना कॉन्फिडेंस दें कि रोज मेरी सरकार में मानव अधिकारों का हनन हो और फिर मैं इस तरह से लेक्चर दे सकूं।
प्रविंद कुमार (@pravin_Kr) ने लिखा, विडंबना भी हज़ार मौत मर गई होगी अब तो….अमित शाह तानाशाही और शिक्षित-अशिक्षित पर ज्ञान बघार रहे हैं और नरेंद्र मोदी मानवाधिकार और अधिकार-कर्तव्य पर भाषण दे रहे हैं। अंकित मान (@AnkitDariyapur) टि्वटर हैंडल से कमेंट आया कि आपको तो किसी भी चश्मे से नहीं दिख रहा है नरेंद्र मोदी जी।
रिचा (@richa_vrikesh) नाम की ट्विटर यूजर लिखती हैं, बिल्कुल सही, गौरक्षा के नाम पर, गौमांस की सिर्फ आशंका होने पर, बच्चा चोर होने की अफवाह पर, धार्मिक पहचान के आधार पर नफरत फैलाने के नाम पर मॉब लिंचिंग जैसे अपराधों पर कुछ नहीं बोलने वाले मानव अधिकार को लेकर सिलेक्टिव होते हैं। कौन हैं वो लोग जो अपना फायदा देख कर ही बोलते हैं?