अमेरिकी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फेसबुक (Facebook) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं को फैक्ट चेक से छूट दी, जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के नेताओं को बढ़ावा दिया। साथ ही मुस्लिम विरोधी पोस्ट पर अंकुश भी नहीं लगाया। ये हैरान करने वाले खुलासे कंपनी के एक पूर्व स्टाफ ने किए हैं। यूएस अखबार ‘न्यू यॉर्क टाइम्स’ के लिए लिखी गई शीरा फ्रेंकेल और डावे अल्बा की रिपोर्ट में बताया गया है कि जो चीजें सामने आई हैं, वे फ्रांसेस हॉगन द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों पर आधारित हैं। वह 37 वर्षीय इंजीनियर हैं और फेसबुक में लगभग दो साल तक काम कर चुकी हैं। वहां उनका काम गलत खबरों को ट्रैक करना और यह सुनिश्चित करना था कि प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल लोकतंत्र को अस्थिर करने के लिए न किया जाए।
उनके दस्तावेजों में ऐसी रिपोर्ट्स शामिल हैं कि कैसे देश की सत्ताधारी पार्टी से जुड़े बॉट और फर्जी खाते और विपक्षी आंकड़े राष्ट्रीय चुनावों पर कहर बरपा रहे थे। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे एफबी सीईओ मार्क जकरबर्ग की “सार्थक सामाजिक बातचीत” या दोस्तों और परिवार के बीच आदान-प्रदान पर ध्यान केंद्रित करने की योजना, खासतौर से कोरोना वायरस महामारी के वक्त भारत में अधिक गलत सूचना का कारण बन रही थी।
डॉक्यूमेंट्स की मानें तो फेसबुक के पास भारत में पर्याप्त संसाधन नहीं थे और वह उन समस्याओं से निपटने में असमर्थ था जो उसने वहां पेश की थीं, जिनमें मुस्लिम विरोधी पोस्ट भी थे। फेसबुक के संसाधनों के आवंटन के बारे में बताने वाले एक दस्तावेज के अनुसार, गलत सूचनाओं को वर्गीकृत करने पर खर्च किए गए समय के लिए कंपनी के वैश्विक बजट का 87% अमेरिका के लिए निर्धारित किया गया है, जबकि बाकी दुनिया के लिए सिर्फ 13 प्रतिशत अलग रखा गया है। वैसे, एफबी प्रवक्ता एंडी स्टोन ने कहा कि आंकड़े अधूरे हैं और इसमें कंपनी के थर्ड पार्टी के फैक्ट चेकिंग पार्टनर नहीं हैं, जिनमें से अधिकांश अमेरिका से बाहर हैं।
इंडियन इलेक्शन केस स्टडी (आंतरिक दस्तावेज) के मुताबिक, भारत में आम चुनाव शुरू होने के दो महीने बाद एफबी ने देश में गलत सूचना और अभद्र भाषा के प्रवाह को रोकने के लिए कई कदम उठाए थे। चुनाव के दौरान एफबी ने विभिन्न सियासी ग्रुप्स से जुड़े बॉट्स या नकली खातों में बढ़ोतरी देखी। साथ ही गलत सूचना फैलाने के प्रयास भी पाए जो मतदान प्रक्रिया के बारे में लोगों की समझ को प्रभावित कर सकते थे।
‘एडवर्सियल हार्मफुल नेटवर्कः इंडियन केस स्टडी’ नाम के एक इंटरनल डॉक्यूमेंट में फेसबुक के रिसर्चर्स ने लिखा था कि फेसबुक पर “भड़काऊ और भ्रामक मुस्लिम विरोधी सामग्री से भरे” ग्रुप और पेज थे। रिपोर्ट में कहा गया कि मुसलमानों की तुलना “सूअर” और “कुत्तों” से करने वाले कई अमानवीय पोस्ट थे और गलत सूचना का दावा था कि कुरान (इस्लाम की पवित्र पुस्तक) पुरुषों को अपने परिवार की महिला सदस्यों का रेप करने के लिए कहती है।
अधिकांश सामग्री उन फेसबुक ग्रुप्स के इर्द-गिर्द घूमी, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को बढ़ावा देने वाले थे। इन ग्रुप्स ने बंगाल और पाकिस्तानी सीमा के पास मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी के विस्तार के साथ मुद्दा उठाया। साथ ही भारत से मुस्लिम आबादी को हटाने और मुस्लिम जनसंख्या नियंत्रण कानून को बढ़ावा देने के लिए फेसबुक पर पोस्ट किए थे।
रिपोर्ट ने संकेत दिया कि फेसबुक जानता था कि ऐसे हानिकारक पोस्ट उसके प्लेटफॉर्म पर फैल रहे हैं और उसे अपने “क्लासिफायर” में सुधार करने की जरूरत है, जो ऑटोमेटेड सिस्टम हैं। यह एक तरह से हिंसक और उकसाने वाली भाषा वाले पोस्ट का पता लगा सकते हैं और उन्हें हटा भी सकते हैं। फेसबुक ने “सियासी संवेदनशीलता” के कारण आरएसएस को एक खतरनाक संगठन के रूप में नामित करने में भी संकोच किया, जो देश में सोशल नेटवर्क के संचालन को प्रभावित कर सकता है।
फेसबुक रिपोर्ट के मुताबिक, एफबी कहता है कि भारत की 22 मान्यता प्राप्त आधिकारिक भाषाओं में पांच पर उसने अपने एआई को ट्रेन किया है। पर हिंदी और बंगाली में कंटेंट को पर्याप्त रूप से जांचने-परखने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं था और मुसलमानों को टारगेट करने वाली अधिकांश सामग्री को “कभी भी चिह्नित नहीं किया जा सकता है या उस पर कार्रवाई नहीं की जाती है।”