डॉ. वरुण वीर

आधुनिक युग में विकसित देशों में शाकाहार बढ़ा है, तो भारत जैसे विकासशील देशों में घटा है। दुर्भाग्य है कि भारत जैसे आध्यात्मिक कहलाने वाले देश में मांसाहारी लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। योग की इस धरा से संपूर्ण विश्व को अहिंसा और शांति का संदेश दिया जाता था। वही भारत आज विश्व का सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश बन चुका है। करोड़ों निर्दोष मूक प्राणियों को प्रतिदिन सूर्य उदय होने से पहले ही हजारों बूचड़खानों में मार दिया जाता है और अगर समाज तथा सरकार से पूछा जाए कि क्या कुछ धन और जीभ के स्वाद के कारण इन निर्दोष प्राणियों को मार देना ठीक है? तो उत्तर मिलता है कि इससे देश को विदेशी मुद्रा मिलती है। आम समाज मूक प्राणियों की निर्मम हत्या मूक होकर देखता रहता है। समाज और राष्ट्र दोनों अपने स्वार्थ के कारण इस जघन्य कृत्य के विरुद्ध कुछ भी नहीं बोलना और करना चाहते हैं। फिल्मों में अगर जानवर का उपयोग और दृश्य उस पर अत्याचार दिखाते हैं, तो सरकार उसे सेंसर बोर्ड द्वारा प्रतिबंधित कर देती है, लेकिन उसी जानवर का मांस खाते हुए दिखाया जाए तो कुछ नहीं बोलती है। इस दोहरेपन के विषय में सभी मौन दिखाई देते हैं। अहिंसा और योग का संदेश देने वाली यह भूमि आज मानवता का मार्ग भटक गई है। एक समय था जब हमारा भारत देश विश्व को धर्म, संस्कृति और नैतिक मूल्यों की शिक्षा दिया करता था। अहिंसा शांति का संदेश देने वाला राष्ट्र अपने मूल स्वभाव को छोड़ अमानवीय संस्कृति से ग्रस्त दिखाई दे रहा है।

मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है। मांस खाने वाले तर्क देने में पीछे नहीं हटते हैं और कहते हैं कि शक्तिशाली कमजोर को मार कर खा जाता है। यही सर्वाइवल का सिद्धांत है। तो मैं पूछता हूं कि क्या शक्तिशाली मनुष्य भी कमजोर मनुष्य को मार कर खा सकता है? भोजन के लिए मांस तब मिलता है, जब शरीर से प्राण निकल जाते हैं। जब उस जीव की हत्या कर दी जाती है। शरीर से प्राण निकलते ही शरीर मुर्दा हो जाता है। देखा जाए तो मांसाहारी मुर्दा खाते हैं। योग में भोजन की शुचिता परम आवश्यक है। मांसाहारी का योग सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष और परोक्ष वह हिंसा से जुड़ जाता है।
अष्टांग योग में यम का प्रथम अंग अहिंसा है। योग का मूल अहिंसा है। हिंसक तरीके से अपनाया भोजन शरीर में रोग और हिंसा को ही जन्म देता है। गीता में योगीराज श्री कृष्ण बताते हैं कि भोजन कैसा होना चाहिए।
आयु: सत्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धना:।
रस्या:स्निग्धा स्थिरा हृद्या आहारा:सात्विकप्रिया:॥

भोजन आयु, आरोग्य, सुख तथा रसास्वादन की शक्ति बढ़ाने वाला होना चाहिए। रसयुक्त चिकने, स्थिरता प्रदान करने वाले, शक्ति वर्धक आहार सात्विक लोगों को प्यारे होते हैं। मांस तामसिक भोजन है। जब किसी पशु की हत्या मांस खाने के लिए की जाती है, तब उसकी हत्या के समय उसके शरीर में अनेक प्रकार के विष पैदा हो जाते हैं और वही घृणा तथा भय से उत्पन्न विष मनुष्य अपने भोजन के रूप में खा जाता है। जो कि अनेक प्रकार की भावनात्मक बीमारियों के साथ-साथ शारीरिक बीमारियों का शिकार होता है। मनुष्य का भोजन शुद्ध सात्विक शाकाहारी ही होना चाहिए। यह मैं नहीं कहता, बल्कि विश्व की अनेक महान हस्तियों ने शाकाहार का समर्थन किया है। अल्बर्ट आइंस्टीइन ने अपने अंतिम दिनों में शाकाहार का समर्थन किया। महावीर, दयानंद, अरविंद घोष तथा गांधी आदि अनेक भारतीय हस्तियों ने शाकाहार को मोक्ष मार्ग में साधक बताया है और मांसाहार को बाधक। आज भी अगर विश्व के अन्य देशों से शाकाहारी लोगों की संख्या की तुलना की जाए, तो भारत में अन्य देशों से अधिक है। लेकिन वह संख्या दिन-प्रतिदिन गिर रही है। भारत ने जिस प्रकार समूचे विश्व में योग को फैलाने का कार्य किया है उसी प्रकार शाकाहार को भी विश्व में फैलाने का कार्य करना चाहिए। वैज्ञानिक आधार पर यह बताना कि शाकाहार ही मनुष्य का भोजन है, मांसाहार नहीं।
प्रेदग्ने ज्योर्तिष्मान याहि शिवेभिरर्चिभिष्टवम्।
बृहद्दिभभानुभिर्भासन्मा हिंसीस्तन्वा प्रजा:॥

हे ज्ञानवान मनुष्य, महान ज्ञान प्रकाशों से चमकता हुआ, कल्याणकारी किरणो, ज्वालाओ, उपासना से ज्योतिर्गमय होता हुआ उत्तम गति प्राप्त कर। और अन्य को शरीर से मत मार। मनुष्य वही है, जो सभी को समान समझे, समानता का व्यवहार ही मनुष्य को शोभा देता है। किसी ने कहा भी है- ‘आत्मवत् सर्व भूतेषु य: पश्यति स पश्यति’ अर्थात जो सभी पशुओं को अपने सामान जानता है वही ज्ञानी है। जब सभी को अपने सामान जानता और पहचानता है तो वह दूसरों की हत्या कैसे कर सकेगा? जैसी आत्मा मनुष्य में है वैसी ही आत्मा अन्य पशु-पक्षियों, जीवों में भी है। तो प्रत्यक्ष या परोक्ष उन पशुओं की हत्या अपने स्वार्थ के लिए करना या करवाना मनुष्य धर्म के विरुद्ध कर्म है। वैदिक जन व्यर्थ की हिंसा कर ही नहीं सकता है। मित्रस्याहं चषुणा सर्वाणि भूतानि समीक्षे अर्थात मैं सब प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखता हूं। क्या कोई मित्र किसी मित्र की हत्या कर सकता है? मैं अकेला ही नहीं, हम सब एक दूसरे को मित्र की दृष्टि से देखें। पशु जगत में हिंसा देख कर कई लोग हिंसा को प्राकृतिक नियम मानते हैं। वे भूल जाते हैं कि मनुष्य पशु से भिन्न है। मनुष्य के पास ज्ञान के लिए बुद्धि है। पशु का अनुकरण करने से मनुष्य में पशुपन बढ़ेगा। पशुओं में संतान को खा जाने की प्रवृत्ति है। क्या मनुष्य ऐसा कुकृत्य करेगा? कदापि नहीं। शाकाहारी भोजन को अपनाने से शरीर स्वस्थ और दीघार्यु रहता है। त्वचा की बीमारियों मांसाहारी में अत्यधिक पाई जाती हैं। शाकाहारी भोजन में रफेज, विटामिन सी, फोलिक एसिड आदि होने से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम तथा मानसिक प्रतिघात की संभावना कम रहती है। शाकाहारी शुद्ध सात्विक भोजन शरीर को अधिक लंबे समय तक स्वस्थ रखने में सहायक होता है। मांसाहारी भोजन में कोई तत्त्व अधिक या अलग नहीं होता, जो कि शाकाहारी भोजन में उपलब्ध न हो। आज विश्व में जीवों पर जो हिंसा दिखाई देती है, वह बंद होनी चाहिए।

मनुष्य ने अपने आप को सबसे अधिक शक्तिशाली मानकर अपने स्वभाव में अहंकार को स्थान दिया है। इस कारण वह अपने को अन्य जीवों से श्रेष्ठ मानता है। उन पर अपना अधिपत्य जमा कर अत्याचार करना और अज्ञानतावश अपना अधिकार जमाना बंद करना चाहिए। अपने भोजन के लिए दूसरे पशुओं की निर्मम हत्या उनकी चीख-पुकार, उनकी तड़प को अपने शरीर या अपने परिवार पर होती हुई सोच कर देखना चाहिए कि कितना दर्द, कितनी भयंकर तड़पन होती है जब पशुओं को मारा जाता है। आज विश्व की सरकारों को भी इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। डब्ल्यूएचओ विश्व स्वास्थ्य का संरक्षण करता है। क्या उसे इन पशुओं के दर्द का कोई एहसास नहीं होता? संपूर्ण विश्व मांस को त्याग कर शाकाहारी भोजन अपना कर योग के मार्ग यानी मनुष्यता के मार्ग पर चलें, तभी विश्व में सुख की अनुभूति होगी।