रोहित कुमार
एक युवक इस बात से बहुत आहत था कि किसी व्यक्ति ने कई लोगों के सामने यह कह दिया कि अरे, इसकी औकात ही क्या है। युवक उन सज्जन का बहुत सम्मान करता था, मगर उनकी इस बात ने इस कदर उसे आहत किया कि वह अपमान से भर उठा था। हालांकि ऐसी बातें हर किसी के जीवन में घटित होती रहती हैं और आमतौर पर लोग अपमानित महसूस कर रहे व्यक्ति को सुझाव देते हैं कि भूल जाओ। ताने-तिशने किसे नहीं सुनने को मिलते। मगर हर ताने-तिशने को दिल से लगाए बैठे रहें तो जीना दूभर हो जाए।

अपमान तभी ज्यादा तकलीफ देता है, जब हम उसे मन में बिठा लेते हैं। अगर अपमान को झटक कर दूर फेंक दें, तो अपमानित करने वाला खुद अपमानित महसूस करने लगता है। इस दुनिया में जितने बड़े लोग हुए, उन्होंने जीवन को इसी तरह जिया। अपमान को गले से नहीं लगाया, उसे झटक कर दूर कर दिया और अपने ढंग से काम करते रहे।

मगर ताने भी अलग-अलग होते हैं। हर ताने झटक कर फेंक देने वाले नहीं होते। कुछ ताने जिद के साथ पकड़ लेने के होते हैं। उन्हें पकड़ कर पलटने का प्रयास करें, तो जीवन की चमकदार राह फूट पड़ती है। तुलसीदास के जीवन की कथा तो सब जानते हैं कि किस तरह उनकी पत्नी ने उन्हें ताना मारा था कि वे भोग में लिप्त हैं। उस ताने को उन्होंने जिद करके पकड़ लिया और फिर अपने जीवन को ही पलट दिया। उन्होंने अपने को साबित किया कि वे भोग में नहीं लिप्त। ताने तो आइंस्टीन को भी स्कूली जीवन में अपने सहपाठियों, अध्यापकों से कम नहीं मिले होंगे, मगर उन्होंने अपनी प्रतिभा से साबित किया कि वे जो कर सकते हैं, दूसरे प्रतिभाशाली माने जाने वाले लोग नहीं कर सकते।

दरअसल, कुछ ताने लोग अपनी श्रेष्ठता साबित करने और दूसरों को अपने से कमतर दिखाने के लिए मारते हैं। हमारे आसपास ऐसे लोग बहुत हैं, जो दूसरों को कमतर साबित करके खुद को श्रेष्ठ साबित करने का प्रयास करते हैं। अगर ऐसे लोग कोई ऊंचा ओहदा पा जाएं, तो उन्हें अपने से योग्य लोग सदा खटकते रहते हैं। वे उनकी किसी कमी को पकड़ कर जब-तब ताने मारते रहते हैं। उनके किसी काम को उदाहरण बना लेते हैं और उसके आधार पर उन्हें अयोग्य ठहराने की कोशिश करते हैं। ऐसे तानों की क्या परवाह।

जब आप जानते हैं कि आपसे कहां क्या गलती हुई और खुद ही खुद को दुरुस्त भी कर लिया, तो उसकी तरफ कोई अंगुली उठाए भी तो फर्क नहीं पड़ेगा। उसे आप सहज भाव से ही लेंगे। अगर आप जानते हैं कि आप क्या कर सकते हैं, आपको अपनी प्रतिभा, अपनी क्षमता पर भरोसा है, तो ऐसे ताने मारने वालों पर हंसने के अलावा आपके पास बचता भी क्या है। उसे क्या गले लगाना, उससे क्या आहत होना। मगर व्यक्ति सदा आहत उन्हीं लोगों के तानों से होता है, जो उनके करीबी होते हैं, बहुत घनिष्ठ, सबसे प्यारे होते हैं। जैसे तुलसीदास आहत हुए अपनी पत्नी के ताने से।

जो करीबी होते हैं, घनिष्ठ और आत्मीय होते हैं, अक्सर उनके ताने, उनके उलाहने, उनकी कड़वी बातें किसी दुर्भावना से उपजी नहीं होतीं। वे आपसे कुछ बेहतर चाहते हैं, आपको कुछ श्रेष्ठ करता देखना चाहते हैं। आपकी कुछ गलत आदतों को वे दूर करना चाहते हैं, आपकी कमजोरियों को खत्म करना चाहते हैं। शायद वे अनेक बार इस बारे में प्यार से कह कर थक भी चुके हैं, पर आप सुधरते ही नहीं तो उनकी बातों का लहजा बदल कर ताने में परिवर्तित हो जाता है।

वे फिर आपको ताने मारने लगते हैं। उन्हें कई बार ध्यान ही नहीं रहता कि सामने ऐसे लोग भी बैठे हैं, जिनके सामने ऐसा ताना नहीं मारना चाहिए। वैसे, लोग ताना अक्सर चार-छह लोगों के बीच ही मार कर सुख पाते हैं। मगर जिस पर ताने पड़ते हैं, ऐसे वातावरण में उन्हें चोट पहुंचा जाते हैं। कोई नहीं चाहता कि कोई उसकी कमजोरी बताए, उसकी गलतियों पर अंगुली रखे। फिर, कोई भरी सभा में किसी की गलती उजागर कर दे, तो वह सीधे दिल पर तीर की तरह चुभता है।

मगर हमें खुद यह विवेक पैदा करना होता है कि किस ताने को अपनी ताकत में तब्दील करना है और किस ताने को नजरअंदाज करना है। हर ताने को नजरअंदाज करना भी ठीक नहीं। कुछ ताने ताकत बन सकते हैं। मसलन, शुरू में जिस युवक के बारे में बात कर रहे थे कि उसे किसी ने ताना मारा कि उसकी औकात क्या है। अगर वह इस ताने को जिद करके पकड़ ले और खुद को इस लायक बनाने का प्रयास करे कि वह एक दिन दिखा कर रहेगा कि उसकी औकात क्या है, तो वह ताना उसकी ताकत साबित हो सकता है।

मगर वही अगर उस ताने को दुर्भावना समझ कर दिल से लगा ले और उस व्यक्ति के प्रति गांठ बना ले, तो हर समय उसमें एक प्रकार की दुश्मनी सुलगती रहेगी। उसके भीतर सदा एक दुर्भावना बनी रहेगी। ताने-तिशने तो जीवन में मिलते ही रहते हैं, पर तय खुद करना होता है कि ताने-तिशने कितने सहने हैं।