मानस मनोहर
शहरी खानपान की आदतों ने बहुत सारी देसी चीजों के बनाने और खाने का तरीका बदल दिया है। पर अब भी कई चीजें ऐसी हैं, जो देसी तरीके से बनाई जाएं, तभी उनका असल स्वाद पता चलता है। वैसे भी खानपान में देसी अंदाज का जिक्र भर होने से मन पुलक उठता है कि भोजन नैसर्गिक स्वाद वाला होगा। सो इस बार कुछ देसी व्यंजन।
पुई बजका
बजका यानी चावल-दाल के साथ खाया जाने वाला पकौड़ा। बिहार में बजका खूब खाया जाता है। बजका किसी भी सब्जी को बेसन में लपेट कर बना लिया जाता है। यह प्याज का भी हो सकता है, लौकी, बैगन वगैरह का भी। ऐसा ही बजका पुई का बनता है, जिसका स्वाद लाजवाब होता है। शहरों में बहुत सारे लोग पुई के बारे में नहीं जानते होंगे। पर बता दें कि पुई साग सेहत के लिए बहुत गुणकारी माना जाता है। जिनमें खून की कमी है, खासकर रक्ताल्पता यानी एनीमिया की शिकार महिलाओं के लिए तो यह बहुत फायदेमंद होता है। इसे खून बनाने की मशीन भी कहते हैं। मगर शहरों में साग का अर्थ आमतौर पर पालक मान लिया जाता है। ज्यादा से ज्यादा चौलाई। जबकि साग की बहुत सारी किस्में हैं। पुई भी उनमें एक है। पान के पत्ते जैसे आकार और गहरे हरे रंग के चमकीले पत्तों वाला होता है यह साग। यह एक प्रकार का जंगली साग है। पहले इसकी खेती नहीं होती थी, पर अब कुछ किसान इसे खेत में भी उगाने लगे हैं। इस तरह शहरी इलाकों में भी सब्जी की दुकानों पर यह साग मिल जाता है।
सब्जियां तो तरह-तरह की आप खाते होंगे, पर हफ्ते में कम से कम एक दिन कोई न कोई साग अवश्य खाने की आदत डालें। साग में रेशे बहुत होते हैं, साथ ही इनमें अनेक खनिज और लवण होते हैं, जो पेट संबंधी विकारों को दूर करते हैं। पुई कई लोग इसलिए नहीं खाते कि उसे बनाने का तरीका उन्हें नहीं पता होता। यों पुई का साग बनाने के कई तरीके हैं। कुछ लोग इसे आलू के साथ पकाते हैं, कुछ लोग चना, उड़द आदि की दाल के साथ पकाते हैं, कुछ टमाटर-प्याज डाल कर पकाते हैं। मगर इसका बजका लाजवाब बनता है। बजका बनाना बहुत आसान है। इसमें समय भी बहुत कम लगता है।
पुई के पत्तों को डंठल से अलग करके अच्छी तरह धो लें। फिर छोटा-छोटा काट लें। अब इसी में मात्रा के हिसाब से मसाले और बेसन डालें। अगर दो कटोरी पुई के कटे पत्ते लिए हैं, तो उसमें आधा चम्मच से कुछ कम मात्रा में नमक, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर और गरम मसाला डालें। फिर चुटकी भर हींग और चौथाई चम्मच अजवाइन, चौथाई चम्मच हल्दी पाउडर और दो खाने के चम्मच बराबर बेसन डालें और हल्का-सा पानी डाल कर सारी चीजों को अच्छी तरह मिला लें। पानी अधिक न डालें, नहीं तो बेसन बहना शुरू कर देगा।
अब तवा या कोई भी पैन गरम करें। उस पर एक चम्मच सरसों तेल डालें। तेल गरम हो जाए, तो उस पर मनचाहे पकौड़ों के आकार में पुई पत्ते का मिश्रण डालते जाएं। आंच को मध्यम रखें। जब ऊपर की परत सख्त हो जाए, तो बजका को पलट कर दूसरी तरफ से सेंक लें। बेसन में हल्का सुनहरा रंग आ जाए, तो समझें कि बजका पक कर तैयार हो गया है। इसे दाल-चावल के साथ परोसें। चाहें तो इसे नाश्ते के रूप में चाय के साथ भी खा सकते हैं। पर खाएं जरूर, सेहत के लिए।
करमी साग
यह एक तरह का जंगली साग है। इसकी भी खेती नहीं होती। यह एक प्रकार का जंगली साग है। पानी वाले इलाकों में, खासकर धान के खेतों के असपास अपने आप उग आता है और बेल की बढ़ता है। इसकी पत्तियां मध्यम आकार की लंबी होती हैं। इसका स्वाद अनोखा होता है। कई जगहों पर व्रत उपवास के बाद अन्नाहार के समय करमी का साग खाना पवित्र माना जाता है। कहते हैं कि जब भगवान कृष्ण विदुर से मिलने पहुंचे थे, तो उन्होंने उन्हें भात और करमी का साग ही खिलाया था। आयुर्वेद में इसके कई गुण गिनाए गए हैं।
यह पेट संबंधी विकारों को दूर करता और खून तो बढ़ाता ही है। इसमें आयरन, आयोडीन और बहुत सारे खनिज-लवण पाए जाते हैं। आजकल बड़े शहरों के साप्ताहिक बाजारों में भी यह आसानी से मिल जाता है। इसे भी लोग अलग-अलग तरीके से बनाते हैं। कुछ आलू के साथ मिलाकर बनाते हैं, तो कुछ सिर्फ इसी का साग बनाते हैं। वैसे चना दाल के साथ इसका स्वाद लाजवाब होता है।
इसे बनाने के लिए पहले चने की दाल को रात भर के लिए भिगो कर रखें। करमी के डंठल से पत्तों को अलग करके तीन-चार बार अच्छी तरह धो लें। फिर इन्हें काट लें। मात्रा के हिसाब से सामग्री का अनुपात यह है कि अगर चार कटोरी करमी के कटे पत्ते लिए हैं, तो चौथाई कटोरी चने की दाल पर्याप्त होती है। इसमें तड़के के लिए चार-पांच कलियां लहसुन की और दो हरी मिर्चें भी काट कर रख लें। कड़ाही में एक-दो चम्मच सरसों का तेल गरम करें। उसमें जीरा, अजवाइन और लहसुन, हरी मिर्च का तड़का लगाएं। फिर भिगोई हुई चने की दाल और कटे हुए करमी के पत्ते एक साथ छौंक दें।
एक बार चलाने के बाद उसमें जरूरत भर नमक, आधा छोटा चम्मच गरम मसाला और चौथाई चम्मच हल्दी पाउडर डालें। सारी चीजों को अच्छी तरह चलाने के बाद कड़ाही पर ढक्कन लगा दें। पांच मिनट बाद उसमें अधा गिलास पानी डालें और चला कर ढक्कन लगा कर मध्यम आंच पर दस से पंद्रह मिनट तक पकने दें। चने की दाल पक कर नरम हो जाए और पानी सूख जाए, तो आंच बंद कर दें। चने की दाल को गलाने की जरूरत नहीं होती, सिर्फ नरम हो जाने तक पकाना होता है। करमी-चना दाल का साग तैयार है। इसे रोटी या चावल-दाल या फिर चावल के साथ खा सकते हैं। ल्ल