मानस मनोहर
मेथी-बूंदी कढ़ी
मेथी के परांठे और सब्जियां तो आप अक्सर बनाते हैं। पर इसकी कढ़ी कम लोग बनाते होंगे। मेथी की कढ़ी लाजवाब बनती है। इसके गुणों से तो आप परिचित ही हैं। इसे बनाना भी बहुत आसान है। इसमें पकौड़े वगैरह डालने की झंझट नहीं होती। कढ़ी बनाने की प्रमुख रूप से तीन विधियां प्रचलित हैं। राजस्थानी, गुजराती और पंजाबी। मेथी की कढ़ी को आप गुजराती और पंजाबी के मिलेजुले तरीके से बनाएं। इसके लिए दही को खट्टा करने की जरूरत नहीं होती। बेहतर हो कि एक लीटर छाछ ले लें। नहीं तो आधा लीटर दही को अच्छी तरह मथ कर एकसार कर लें। उसमें गुट्ठल न रहने पाए।
अब छाछ या फेंटे हुए दही में दो से तीन खाने के चम्मच बराबर बेसन, आधा छोटा चम्मच कुटी लाल मिर्च, एक छोटा चम्मच धनिया पाउडर, आधा चम्मच गरम मसाला, एक खाने के चम्मच बराबर चीनी, आधा छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, चौथाई चम्मच हींग पाउडर और जरूरत भर का नमक डाल कर मथानी या हैंड ब्लेंडर से अच्छी तरह मथ कर मिला लें। इसे ढंक कर रख दें। इसमें चीनी इसलिए डाला है कि इससे गुजराती स्वाद आ जाएगा।
एक लीटर छाछ की कढ़ी बनाने के लिए आधा किलो मेथी पर्याप्त रहती है।
सबसे पहले मेथी के पत्ते छांट कर डंठल से अलग कर लें। पत्तों को थोड़ी देर पानी में डुबो कर रखें। इससे उसकी मिट्टी नीचे बैठ जाएगी। फिर दो-तीन बार अच्छी तरह धोकर साफ करें और छोटा-छोटा काट लें। एक कड़ाही में दो चम्मच तेल गरम करें। उसमें जीरा, अदरक और बारीक कटी एक हरी मिर्च का तड़का लगाएं और मेथी को छौंक दें। तेज आंच पर तीन से चार मिनट तक चलाते हुए पकाएं। मेथी जब सिकुड़ने लगे, तो आंच बंद कर दें। मेथी को कड़ाही से निकाल कर अलग रख लें।
उसी कड़ाही में दो चम्मच तेल फिर गरम करें। उसमें चौथाई चम्मच राई, आधा चम्मच साबुत धनिया, चौथाई चम्मच जीरा, चौथाई चम्मच हींग पाउडर और एक साबुत लाल मिर्च का तड़का दें। उसमें बेसन-दही का मिश्रण डालें और मध्यम आंच पर चलाते हुए पकाएं। करीब आधा घंटा पकने के बाद उसमें मेथी पत्ता डालें और पांच से सात मिनट तक और पकने दें। फिर एक से डेढ़ मुट्ठी भर बूंदी डालें। वही बूंदी, जो रायते के लिए इस्तेमाल करते हैं। पांच मिनट और पकाएं फिर आंच बंद कर दें। कड़ाही पर ढक्कन लगा कर दस मिनट के लिए छोड़ दें।
अब इसमें तड़के की तैयारी कर लें। इसके तड़के में आधा घी और आधा मक्खन यानी दोनों की एक-एक चम्मच मात्रा लें। तड़का पैन में जब घी गरम हो जाए, तो मक्खन डालें। मक्खन पिघल जाए तो उसमें दो साबुत लाल मिर्चें, दो चुटकी जीरा, चुटकी भर हींग पाउडर और आधा छोटा चम्मच कश्मीरी लाल मिर्च डालें। कश्मीरी मिर्च आंच बंद करने के बाद ही डालें, नहीं तो जल जाएगी।
इस तड़के को कढ़ी के ऊपर डालें और ढक्कन लगा कर छोड़ दें। इस कढ़ी की खासियत यह है कि इसे अकेले भी खा सकते हैं और रोटी-चावल के साथ भी। इसमें तीन बार हींग इसलिए डाला कि इस कढ़ी में हींग का स्वाद अच्छा लगता है। अगर चाहें, तो मेथी की जगह बथुए का भी उपयोग कर सकते हैं।
दलपइता
दलपइता या दलपहिता दरअसल, साग वाली दाल ही है। इसलिए इसे कई लोग सगपहिता भी कहते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में यह सर्दी के मौसम का लोकप्रिय व्यंजन है। इसकी मुख्य सामग्री है चने की दाल और बथुआ। अगर चने की दाल पसंद न हो तो इसकी जगह धुली मूंग की दाल भी ले सकते हैं। फिर बथुए के साथ लहसुन का मेल उसे और स्वादिष्ट बना देता है, इसलिए पांच-छह लहसुन की कलियां भी साफ करके छोटा-छोटा काट लें। इसके अलावा दो इंच अदरक और एक हरी मिर्च भी बारीक-बारीक काट कर अलग रख लें।
सबसे पहले चने की दाल को चार से पांच घंटे के लिए भिगो कर रख दें। बथुए के पत्तों को डंठल से अलग करके अच्छी तरह धोकर काट लें। फिर चने को नमक, हल्दी और हींग के साथ तीन से चार सीटी आने तक कुकर में उबाल लें। जब चने की दाल पक जाए तो, जब तक उसकी भाप शांत होती है, एक कड़ाही में दो चम्मच सरसों का तेल गरम करें। उसमें जीरा, दो साबुत लाल मिर्चें, आधा छोटा चम्मच हींग और कटे हुए अदरक, लहसुन का तड़का लगाएं। कई लोग इसके तड़के में भी प्याज और टमाटर डालते हैं, मगर बथुए में प्याज उसके स्वाद को दबा देता है।
प्याज-टमाटर न डालें, तो अच्छा। लहसुन, अदरक और हरी मिर्च का तड़का इसके लिए पर्याप्त है। तड़का तैयार हो जाए तो उसमें कटे हुए बथुए को छौंक दें। बथुआ पक कर सिकुड़ जाए तो उसमें पकी हुई दाल डालें और मध्यम आंच पर पकने दें। फिर इसमें आधा चम्मच गरम मसाला और इतना ही धनिया पाउडर डाल कर मिलाएं। कड़ाही पर ढक्कन लगा कर पांच मिनट और पकने दें। दलपइता तैयार है।
इसमें ऊपर से भी जीरा, हींग, लाल मिर्च पाउडर का तड़का लगा सकते हैं। तड़का घी और मक्खन में ही लगाएं, तो स्वाद बेहतर आता है। सगपइता को गरमागरम रोटी के साथ परोसें। चावल के साथ भी खा सकते हैं।