युवा मामले एवं खेल राज्य मंत्री रक्षा निखिल खडसे का मानना है कि खेल ऐसा क्षेत्र है, जिसमें राजनीति नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि नई खेल नीति में खेल संगठनों की निगरानी से लेकर इनमें राजनीतिक हस्तक्षेप पर भी नजर रहेगी। साथ ही कोच के प्रशिक्षण से लेकर खेल संगठनों में किसी भी तरह के उत्पीड़न व अन्य शिकायतों की निगरानी की जाएगी। उन्होंने कहा कि हमें अपने खेल को इतना मजबूत बनाना है कि 2036 में ओलंपिक की मेजबानी कर सकें। उनका दावा है कि ‘माय भारत’ पोर्टल के जरिए पूरा देश खेल से जुड़ रहा है। खडसे ‘खेलो इंडिया’ को सरकार का सफल अभियान मानती हैं, जिसके जरिए नए खिलाड़ी तैयार हो रहे हैं। नई दिल्ली में कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की रक्षा खडसे के साथ बातचीत के चुनिंदा अंश।
युवा मामले एवं खेल राज्य मंत्री…। युवाओं से संबंधित मंत्रालय की कमान एक युवा को दी गई। इस जिम्मेदारी भरे पद के साथ एक साल पूरे हुए। कैसा रहा यह समय?
रक्षा निखिल खडसे: मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत बहुत कम उम्र में हो गई थी। तेईस साल की उम्र में मैं सरपंच बनी और उसके बाद जिला पंचायत में ढाई साल काम किया। छब्बीस साल की उम्र में मैं लोकसभा के लिए चुनी गई। युवाओं से जुड़े मंत्रालय में अवसर देने के लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की शुक्रगुजार हूं। पिछले एक साल में मैंने जितना इस मंत्रालय को समझा है उस हिसाब से यही कह सकती हूं कि हमारा देश युवाओं का देश है। अगर युवाओं के लिए कुछ करने का मौका मिला है तो आपको देश को मजबूत करने का मौका मिला है।
आपने कहा कि भारत युवाओं का देश है और आपका मंत्रालय युवाओं को काफी कुछ दे सकता है। खेल मंत्रालय के द्वारा उठाए गए उन कदमों की जानकारी दीजिए जो प्रभावी हुए हों।
रक्षा निखिल खडसे: युवा एवं खेल मंत्रालय की तरफ से कई ऐसी योजनाएं शुरू की गई हैं जो युवाओं को देश के साथ जोड़ कर आगे बढ़ने का रास्ता तैयार करेगी। मोदी जी का मानना है कि शासन-प्रशासन की सभी व्यवस्थाओं में युवाओं की भागीदारी हो ताकि उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास हो। सबसे पहले तो हमें भावना के स्तर पर सबको एकजुट करना है। पहले ‘नेहरू युवा केंद्र संगठन’ नामक योजना थी। इसके साथ दिक्कत थी कि इसे खास राजनीतिक दल के साथ जोड़ दिया जाता था। एक बड़े तबके को इसके साथ जुड़ने में दिक्कत होती थी। इसलिए जब मंत्रालय ने खेल को लेकर पोर्टल शुरू किया तो उसका नाम ‘माय भारत’ यानी मेरा देश रखा। इस योजना का मकसद युवाओं को खेल से जोड़ना था। आज इसके जरिए लगभग 1.75 लाख युवा हमसे जुड़ चुके हैं। सारी योजनाएं, स्वयंसेवा के सभी कार्यक्रम हम इस पोर्टल पर ला रहे हैं। यह युवाओं को रोजगार के अवसर भी दे रहा है। कालेजों से लेकर अंतरिक्ष तक में जो अच्छा काम हो रहा है उससे युवाओं को जोड़ रहे हैं। पहले आम युवा सरकार से दूरी बरतते थे। हमने युवाओं की इस उदासीनता को तोड़ा है।
मैं आपके विभाग को इसलिए अहम मानता हूं क्योंकि वर्तमान में जो देश की सबसे बड़ी समस्या है, उसका हल आपके पास है। वो समस्या है बेरोजगारी की। विपक्ष का आरोप है कि सरकार का वादा था दो करोड़ नौकरियां देने का। यह वादा हकीकत से दूर लग रहा है। रोजगार सृजन पर आपका विभाग क्या कर रहा है?
रक्षा निखिल खडसे: ‘माय भारत’ पोर्टल के जरिए हम सभी मंत्रालयों को एक-दूसरे के साथ भागीदार बना रहे हैं। अब कोई भी युवा जब अपने लिए संभावनाओं की तलाश करता है तो उसे जानकारी मिलती है कि फलां क्षेत्र में उसका शिक्षण-प्रशिक्षण हुआ है तो उसके लिए क्या-क्या संभावनाएं हैं। उसकी योग्यता के अनुसार कहां पर रोजगार मिल सकता है। खास कर, हमारे लिए सबसे अहम हमारा प्रशिक्षण कार्यक्रम है। युवाओं के सामने नए क्षेत्रों में रोजगार के अवसर खुलते हैं। मोदी सरकार में ‘स्टार्टअप’ ने युवाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में बहुत योगदान दिया है। कौशल प्रशिक्षण के हमारे कार्यक्रमों से भी युवाओं को काफी फायदा मिला है। खेल मंत्रालय ऐसे बहुत से कदम उठा रहा है जिससे रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। ‘स्पोर्ट्स साइंस सेक्टर’ को ही लीजिए। खेल को विज्ञान के साथ जोड़ते ही रोजगार के क्षेत्र खुलते हैं। अब ‘कोच’ बनने के अवसर बढ़ गए हैं। 2036 में हमें ओलंपिक की मेजबानी करनी है तो हमें खेल के हर क्षेत्र को मजबूत करना होगा।
माय भारत’ योजना के तहत नौकरियों में कितना इजाफा हुआ है? इसका कोई आंकड़ा है?
रक्षा निखिल खडसे: इसका उद्देश्य रोजगार सृजन को सहयोग देना है। देश का हर युवा सरकार के साथ जुड़े और उसके अंदर देश के लिए कुछ करने की भावना जगे। हर किसी के अंदर इच्छा जगे कि वह अपने जीवन के कुछ घंटे देश के लिए दे। जब इंसान युवा रहता है तभी इस तरह की भावनाएं उसके अंदर पैदा होती हैं। हम वैसी स्थिति में हैं कि हर कोई अपनी दुनिया में जी रहा है। अगर बच्चों को स्कूल और कालेज से ही देश व सामुदायिकता से जोड़ें तो सरकार और नागरिकों के बीच एक रिश्ता कायम हो जाएगा।
हमारे यहां के खेल और उससे जुड़ी व्यवस्था अक्सर विवादों में और सवालों में आ जाते हैं। खास कर खेलों में यौन उत्पीड़न के आरोप भी लगते हैं। इस स्थिति को आप कैसे देखती हैं?
रक्षा निखिल खडसे: हम खेल के क्षेत्र में नई नीति ला रहे हैं और हमारी कोशिश है कि हर युवा को साफ-सुथरा माहौल मिले। स्वस्थ माहौल मिलेगा तभी ज्यादा से ज्यादा युवा खेलों की तरफ आकर्षित होंगे। जल्द ही खेल और इससे जुड़ी संस्थाओं को लेकर लोगों के नजरिए में सकारात्मक परिवर्तन होगा। आज खेल प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देने की जरूरत है। दुनिया में कई तरह के बदलाव हुए हैं, जिनके हिसाब से उन्हें ढालना जरूरी है। हमने आनलाइन से लेकर भौतिक प्रशिक्षण कार्यशालाएं शुरू की हैं, जिनमें कोच को भी नए समय के हिसाब से अद्यतन किया जा सके। खेल के साथ हम कारपोरेट को भी जोड़ रहे हैं, ताकि किसी खेल केंद्र की जिम्मेदारी लेकर उसे आगे बढ़ाए। कारपोरेट अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के तहत खिलाड़ियों का सहयोग कर उन्हें आगे बढ़ा सकते हैं। खेलों को जमीन से जोड़ने के लिए, देश के हर तबके की इसमें भागीदारी बढ़ाने के लिए हमने ‘खेलो इंडिया’ शुरू किया। ‘खेलो इंडिया’ एक बहुआयामी परियोजना है, जिसमें विश्वविद्यालयों तक को जोड़ा गया है। खेल सिर्फ इसलिए नहीं खेलना है कि पदक या नौकरी मिले। शारीरिक व मानसिक रूप से तंदुरुस्त रहने के लिए भी खेल जरूरी हैं। आज लोग जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं। युवाओं के पास धैर्य की कमी दिखती है। इन सबका इलाज खेल के मैदान में है। खेल से युवा समय प्रबंधन सीखते हैं। हमारा मंत्रालय कई क्षेत्रों में सक्रिय है।
अभी का माहौल ऐसा है कि अगर किसी कोच या अधिकारी पर किसी तरह के उत्पीड़न या भेदभाव का आरोप लगता है तो वह न्यायिक प्रक्रिया से ज्यादा राजनीतिक विवाद का हिस्सा हो जाता है। शिकायत व निवारण की प्रक्रिया कहीं पीछे रह जाती है।
रक्षा निखिल खडसे: मैंने पहले भी बताया कि अभी जो खेल पर नई नीति आ रही है, उसमें खेल संगठनों पर भी ध्यान दिया जाएगा। इसका मकसद खेल संगठनों पर नियंत्रण रखना नहीं है। इसका मकसद सिर्फ निगरानी करना है कि सब कुछ सही दिशा में चले। खेल प्रशिक्षकों पर हम ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा महिला खेल प्रशिक्षक आएं। इससे खेल की जगहों का माहौल बेहतर होगा, ज्यादा से ज्यादा महिला खिलाड़ी आएंगी। साथ ही उत्पीड़न की समस्या का हम ज्यादा न्यायपूर्ण तरीके से समाधान कर पाएंगे।
पिछले दिनों महिला पहलवानों द्वारा बड़ा प्रदर्शन किया गया। एक खेल संगठन के अध्यक्ष व सांसद पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे थे। अगर उस समय आप मंत्रालय की अगुआ रहतीं तो आपकी क्या भूमिका होती?
रक्षा निखिल खडसे: ये सब चीजें तो उस समय क्या स्थिति थी उस पर निर्भर करता है। आज उस विषय पर बोलना मेरे लिए ठीक नहीं होगा। उस वक्त क्या मुद्दे थे उनको अच्छे से जाने बिना उन पर टिप्पणी नहीं कर सकती।
क्या आप यह आश्वासन दे सकती हैं कि आगे ऐसी स्थिति पैदा नहीं होगी?
रक्षा निखिल खडसे: जी बिल्कुल। हम पूरी सजगता और सतर्कता बरतेंगे कि भविष्य में ऐसा कोई मामला हमारे सामने नहीं आए। सबसे अहम बात यह है कि हमें खेल के माहौल को साफ-सुथरा रखना है। हम ऐसी नीतियों को लाएंगे जिससे किसी खिलाड़ी को उत्पीड़न या भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े।
कई तरह की खेल संस्थाएं व संगठन हैं, जो निजी ‘क्लब’ की तरह काम करती हैं, जैसे कि बीसीसीआइ। जब ये अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जाते हैं तो भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखते हैं। शीर्ष नेतृत्व से लेकर पूरी सरकार इनके साथ तस्वीरें खिंचवाती है। इन पर सरकार का किसी तरह का नियंत्रण नहीं होता है। ऐसी संस्थाओं में जब भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है।
रक्षा निखिल खडसे: वही मैं पहले भी बोल चुकी हूं कि अभी जो नई नीति आई है उसमें इस मुद्दे का भी ध्यान रखा जाएगा।
खेलो इंडिया’ पर भी बहुत विवाद है। क्या आपको लगता है कि यह योजना सफल हुई है?
रक्षा निखिल खडसे: पहली बात तो यह है कि खेल राज्य का विषय है। बहुत कम राज्य ऐसे हैं जो खेल को गंभीरता से लेते हैं और इससे जुड़े आयोजन करते हैं। इसलिए ‘खेलो इंडिया’ शुरू किया गया। आज आप देश में कहीं पर भी जाएंगे तो पाएंगे कि हर किसी को पता है कि ‘खेलो इंडिया’ क्या है। इसके कारण देश के हर कोने के लोग खेलों का महत्त्व समझ रहे हैं। पेरिस ओलंपिक में कई खिलाड़ी ‘खेलो इंडिया’ से ही गए हैं। पैरा ओलंपिक के खिलाड़ियों को इसके जरिए इतना बड़ा मंच मिला जो पहले नहीं था। ‘खेलो इंडिया’ हमारी सरकार की काफी प्रभावशाली योजना रही है।
कुछ राज्यों की केंद्र के रवैए से नाराजगी भी रहती है। वे भेदभाव का आरोप लगाते हैं।
रक्षा निखिल खडसे: खेल के क्षेत्र में तो राजनीति की ही नहीं जा सकती है। करना भी नहीं चाहिए। खेल तो सबका है। जब कोई खिलाड़ी बाहर जाता है तो किसी राज्य या पार्टी का नहीं बल्कि पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है कि इस बात पर कोई भेदभाव नहीं हो कि कहां किसकी सत्ता है। हम सबको मिल कर खेल को आगे ले जाना है।
आप भारतीय राजनीति में युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इन दिनों राजनीति में हिंदू-मुसलिम का विभाजन आम हो गया है। आप इसे कैसे देखती हैं?
रक्षा निखिल खडसे: हिंदू-मुसलिम का मुद्दा ऐसा है जो चुनावों के वक्त गढ़ा जाता है। हमारी सरकार के सामने सब देश के नागरिक हैं। जब भी कोई सरकारी नीति आती है तो वह सबके लिए आती है। आज आवास योजना का लाभ उठाने वाले सबसे ज्यादा मुसलिम समुदाय के लोग हैं। हम किसी भी नीतिगत मुद्दे पर भेदभाव नहीं कर सकते हैं। देश के सभी नागरिकों का देश की सभी योजनाओं पर समान अधिकार है।
महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे एक राष्ट्रीय प्रतीक बन गए हैं, चुनाव के पहले कुछ और बाद में कुछ और होने का। कहा जा रहा है कि बिहार में नीतीश कुमार भी एकनाथ शिंदे हो सकते हैं।
रक्षा निखिल खडसे: जिसको ज्यादा सीटें मिलेंगी उसी का मुख्यमंत्री बनेगा, यह एक तय समीकरण है। जहां तक बिहार की बात है, तो अभी तक मैं इतना ही जानती हूं कि राजग वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में ही विधानसभा चुनाव लड़ेगा।
भाजपा राहुल गांधी पर वंशवाद के लिए हमला करती रही है। वंशवाद पर आपकी क्या राय है?
रक्षा निखिल खडसे: इस पर सबकी अलग राय हो सकती है, इसलिए मैं ज्यादा टिप्पणी नहीं करना चाहती हूं। मेरी भी राजनीतिक पृष्ठभूमि है। मैं भी सारी जमीनी प्रक्रिया से गुजरी और अपनी शुरुआत ग्राम पंचायत से की। भाजपा के जितने अध्यक्ष बने सब नीचे से ऊपर आए। कांग्रेस में आपने देखा कि वे तुरंत अध्यक्ष बन गए। कांग्रेस में अभी स्थिति थोड़ी सुधरी दिखती है, पहले तो वहां बुरा हाल था।
विपक्ष ने भाजपा पर संविधान को बदलने का इरादा रखने के आरोप लगाए थे। अभी दत्तात्रेय होसबाले से लेकर शिवराज सिंह चौहान तक संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्दों को हटाने की जरूरत बता रहे हैं। आपकी राय?
रक्षा निखिल खडसे: कोई भी संविधान को नहीं बदल सकता है। डाक्टर भीमराव आंबेडकर साहेब के साथ कांग्रेस के रिश्ते का इतिहास सब जानते हैं। संविधान बदलने की बात विपक्ष का चुनावी ‘स्टंट’ था।
क्या भाजपा चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री के चेहरे पर ज्यादा निर्भर है?
रक्षा निखिल खडसे: भाजपा का संगठन सबसे मजबूत है और प्रधानमंत्री हमारे नेता हैं तो स्वाभाविक रूप से चुनावी अभियान की अगुआई वही करेंगे। कांग्रेस में भी राहुल गांधी जाते हैं चुनाव प्रचार करने के लिए।
आरोप है कि भाजपा की अगुआई वाली सरकार के काम में संघ का दखल बढ़ा है।
रक्षा निखिल खडसे: सरकार के काम में संघ का कोई दखल नहीं है। राम मंदिर और अनुच्छेद 370 का खात्मा जैसे कुछ एजंडे भाजपा व संघ के एक मत रहे हैं, इसलिए समानता दिख जाती है। लेकिन दोनों का काम बिल्कुल अलग है।
आपरेशन सिंदूर को सफल मानती हैं?
रक्षा निखिल खडसे: जी, यह अभियान पूरी तरह सफल रहा।
प्रस्तुति : मृणाल वल्लरी
विशेष सहयोग: हिमांशु अग्निहोत्री/राजीव रंजन तिवारी