प्रतापराव कदम

चुप्पा

‘जो मार रहा है, हाथ पकड़ सकते हैं उसका
बोलने वाले का मुंह थोड़े ही’
कितने अनुभव के बाद
इस कहावत ने जन्म लिया होगा
जो अमूमन अब नाकारा।
जिसे पकड़ने का दावा
हो वह कठपुतली हाथ
जिसे मालूम भी न हो, वह क्यों… आखिर
कारण सात तहों में हो
हर तह पर लिखी हो
जिल्लत की इबारत।
असल हाथ हो
सात पर्दे, सात समंदर पार
मजलूमों का इस्तेमाल करता
मजहब, रंग, नस्ल भाषा की मार्फत।
बल्कि बोलने वाला पकड़ा सकता है कि
क्या घुमड़ रहा है भीतर,
खेल रहा किन हाथों में वह
किसकी मंशा को दे रहा अल्फाज
बंधा किस डोर से
डोर किसके हाथ
सहारे उसके पहुंचा जा सकता।

जो चुप-चुप दिखता, चुप्पा
उसे भांपना, पकड़ना मुश्किल
सारे षड्यंत्र, झांसे, डांगे-फांसे
चुप्पी की जद में।
ग्राहक भांपने की चतुर चुप्पी से
उबर भी नहीं पाते कि
कहीं और घेर लेता चुप्पा।

कब्जा

जल ही जीवन है
टैंकर में लदा यह जीवन
जा रहा है ट्रैक्टर के पीछे-पीछे
ट्रैक्टर के ड्राइवर के आजू-बाजू
बैठे हैं लठैत।

इन दिनों ऐसा ही है
जीवन है जो
जैसे हवा, पानी, वाणी
लठैतों के कब्जे में है।

मॉल

भीमकाय
चकित करने वाली विशालता
बिना प्रयास जहां आप ऊपर जा सकते हैं
नीचे भी।
भरसक कोशिश आपको
बरगलाने, ललचाने की
कि आप जरूरत, पसंद की चीजों के अलावा
गैर-जरूरी चीजों को भी रखें धकियाते ट्राली में।
शहर के बड़े होने का अहसास
जुड़ा इस विशालता से
ज्यादा खाने, बे-जरूरत बे-वजह खाने से भी
जुड़ा है बड़े होने का अहसास।
लादे-लादे इसे
घूम रहे हैं जहां-तहां
देख रहे हैं पुतलों को,
सिर नहीं है जिनके
पहने हैं उन्होंने आकर्षक कपड़े

सब आ-जा रहे हैं ऊपर-नीचे
दूसरे तीसरे चौथे माले
सब बे-फिक्र हैं, मस्त हैं, खरीददार हैं
और बेचने वाले आश्वस्त हैं।

ताज्जुब है

ताज्जुब है
गर्मी में लू से जो मरे
बारिश में बाढ़ से
ठंड में मरे जो
बीज बठराने से
मंडी में लुटने से
कर्ज न चुकाने से
ब्याज से मरे जो
मरे जो प्याज से

कारण भले अलग-अलग हों
मरने वाले सदा एक ही होते हैं।