हिंदी सिनेमा का शायद ही कोई ऐसा प्रेमी होगा, जिसके मन पर चरित्र अभिनेता प्राण के अभिनय का जादू सिर चढ़ कर न बोला हो। हालांकि वे हिंदी फिल्मों के एक प्रमुख चरित्र अभिनेता थे, जिन्हें मुख्य रूप से उनकी खलनायक की भूमिका के लिए जाना जाता है। मगर उन्होंने अनेक ऐसी भूमिकाएं भी निभाईं, जिनसे लोगों के मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनका जन्म दिल्ली में हुआ था। प्राण के पिता लाला केवल कृष्ण सिकंद एक सरकारी ठेकेदार थे, जो आमतौर पर सड़क और पुल का निर्माण करते थे।
देहरादून के पास कलसी पुल उनका ही बनाया हुआ है। उन्हें अपने काम के सिलसिले में विभिन्न शहरों में रहना पड़ता था। इसकी वजह से प्राण की शिक्षा भी किसी एक शहर में नहीं हो पाई। उनकी पढ़ाई-लिखाई कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर आदि अलग-अलग जगहों पर हुई। प्राण को पढ़ाई में बहुत दिलचस्पी थी और उनका पसंदीदा विषय गणित था। उन्होंने रामपुर के ‘हामिद स्कूल’ से अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर दिल्ली की एक कंपनी में फोटोग्राफी सीखने के लिए दाखिला ले लिया था। उस दौरान प्राण ने रामलीला में सीता के किरदार निभाया था।
फिर बतौर फोटोग्राफर लाहौर में उन्होंने अपना करिअर शुरू किया। उसी दौरान 1940 में ‘यमला जट’ नामक पंजाबी फिल्म में पहली बार उन्हें काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में प्राण ने नूरजहां के साथ मुख्य किरदार निभाया था। इसके बाद 1941 में प्राण ने फिल्म ‘चौधरी’ और ‘खजांची’ में भी छोटी-छोटी भूमिकाएं कीं। फिर 1942 में उन्हें फिल्म ‘खानदान’ में अभिनय का मौका मिला। यह प्राण की पहली हिंदी फिल्म थी।
इसमें उन्होंने एक रूमानी नायक का किरदार किया था। उस फिल्म को लोगों ने खूब पसंद किया था। उस फिल्म में भी उनके साथ मुख्य अभिनेत्री के तौर पर ‘नूरजहां’ ने काम किया था। उसके बाद 1945 में ‘कैसा खून’ और 1946 में ‘खामोश निगाहें’ जैसी फिल्मों में प्राण ने अभिनय किया था। 1945 में प्राण भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद अपने परिवार के साथ मुंबई आ गए। मुंबई आने के बाद उन्होंने आठ महीनों तक ‘डेल्मर होटल’ में काम किया। फिर उन्हें हिंदी फिल्मों में काम मिलने शुरू हो गए।
अपने फिल्मी जीवन में उन्होंने लगभग चार सौ फिल्मों में काम किया। एक तरफ उनके नाम ‘राम और श्याम’ के खलनायक की ऐसी तस्वीर रही है, जिससे लोगों ने परदे के बाहर भी उनसे घृणा करनी शुरू कर दी थी, वहीं ‘उपकार’ में मंगल चाचा की भूमिका भी की, जिसे दर्शकों का बेइंतहा प्यार और सम्मान मिला। 1968 में ‘उपकार’, 1970 ‘आंसू बन गए फूल’ और 1973 में प्राण को ‘बेईमान’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।
उन्होंने ‘खानदान’ (1942), ‘पिलपिली साहेब’ (1954) और ‘हलाकू’ (1956) फिल्मों में मुख्य अभिनेता की भूमिका निभाई थी। उनका सर्वश्रेष्ठ अभिनय ‘मधुमती’ (1958), ‘जिस देश में गंगा बहती है’ (1960), ‘उपकार’ (1967), ‘शहीद’ (1965), ‘आंसू बन गए फूल’ (1969), ‘जानी मेरा नाम’ (1970), ‘विक्टोरिया नंबर 203’ (1972), ‘जंजीर’ (1973), ‘डान’ (1978) और ‘दुनिया’ (1984) आदि फिल्मों में यादगार भूमिका निभाई थी।
उनके श्रेष्ठ अभिनय के लिए 2001 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया और भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए 2013 में दादा साहब फाल्के सम्मान से नवाजा गया। 2010 में उन्हें सीएनएन के सर्वश्रेष्ठ पच्चीस सार्वकालिक एशियाई अभिनेताओं में चुना गया।