नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू ने 2017 में भाकपा (माओवादी) के पूर्व महासचिव मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति से कमान संभाली थी। सुरक्षा प्रतिष्ठान में कुछ लोगों का मानना है कि उसकी हत्या भारत में नक्सली हिंसक संघर्ष के अंत की शुरुआत हो सकती है। माना जा रहा है कि बसवराजू की मौत नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में महत्त्वपूर्ण क्षण हो सकता है और सुरक्षा बल अगले वर्ष मार्च तक माओवादी उग्रवाद को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित समय सीमा को पूरा करने में सक्षम हो सकते हैं।
आंदोलन के पूर्व सैन्य कमांडर बसवराजू ने 2017 में पूर्व महासचिव मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति की खराब सेहत के कारण उनकी जगह ली थी। हालांकि, भाकपा (माओवादी) ने इस बदलाव की घोषणा 2018 में जाकर की। 10 नवंबर, 2018 को एक प्रेस बयान में, माओवादियों ने घोषणा की थी कि मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति ने अपनी जिम्मेदारियों से हाथ खींच लिया है और अगला महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू है। यह आंदोलन के नेतृत्व में 14 वर्षों में पहला बदलाव था।
1992 में गणपति सीतारामैया को पद से हटाकर महासचिव चुना गया था।
गणपति के पास 25 वर्षों तक सर्वोच्च नेता की कमान रही। 12 वर्ष भाकपा (माले) पीपुल्स वार के प्रमुख के रूप में और 13 वर्ष पीपुल्स वार ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के विलय के बाद भाकपा (माओवादी) के प्रमुख के रूप में। माओवादी आंदोलन में शामिल होने से पहले गणपति एक शिक्षक था। वह भाकपा (माओवादी) का वैचारिक स्रोत और राजनीतिक दिमाग रहा है। स्थापना के बाद से ही उसने पार्टी की व्यापक नीतियों को दिशा दी है। गणपति को एक व्यावहारिक नेता माना जाता है, जिसकी वामपंथी उग्रवादी पार्टियों में भी स्वीकार्यता है। गणपति पीपुल्स वार के संस्थापक कोंडापल्ली सीतारामैया के अधीन काम करता था। 1992 में गणपति ने सीतारामैया को पद से हटा दिया और महासचिव चुना गया था।
बसवराजू कौन था?
पार्टी प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने से पहले तक बसवराजू व्यावहारिक रूप से नंबर दो था। वह माओवादियों के केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) का प्रमुख कमांडर था और पिछले डेढ़ दशक में सुरक्षा बलों पर हुए सभी हमलों और घात लगाकर हमलों के लिए जिम्मेदार था। उसने खुफिया और आपरेशन दोनों का काम देखा और अतीत में दंडकारण्य के वन प्रभाग का प्रमुख भी रहा। वह भाकपा (माओवादी) पोलित ब्यूरो (पार्टी का शीर्ष वैचारिक सोच समूह) का सदस्य, स्थायी समिति का सदस्य, केंद्रीय समिति का हिस्सा और पार्टी प्रकाशन अवाम-ए-जंग के संपादकीय बोर्ड का सदस्य भी था।
सुरक्षा एजंसियों के पास बसवराजू के बारे में उसके छात्र जीवन से परे बहुत ही अस्पष्ट जानकारी थी। 10 जुलाई 1955 को आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम के जियानापेटा में एक साधारण परिवार में जन्मा बसवराजू वारंगल के क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक था। प्रशिक्षित इंजीनियर खेलकूद में भी बहुत अच्छा था और वालीबाल में राष्ट्रीय स्तर पर आंध्र प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुका था। इसी दौरान बसवराजू वामपंथी छात्र राजनीति में शामिल हो गया था और 1980 में एबीवीपी सदस्यों के साथ हाथापाई के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया था।
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यह एकमात्र ऐसा मौका था जब उसे गिरफ्तार किया गया था। इसके तुरंत बाद, बसवराजू पीपुल्स वार ग्रुप में शामिल हो गया। वामपंथी उग्रवाद के साथ उसका यह जुड़ाव अगले 35 सालों तक जारी रहा। बसवराजू के सिर पर 2.02 करोड़ रुपए का इनाम था, जबकि गणपति के सिर पर तीन करोड़ रुपए से अधिक का इनाम था।
बसवराजू ने पहले सीएमसी प्रमुख और बाद में भाकपा (माओवादी) के महासचिव के रूप में जिम्मेदारी संभाली। बसवराजू आपरेशन की योजना बनाने, सुरक्षा बलों को निशाना बनाने और ‘दलम कैडर’ की भर्ती करने के लिए जिम्मेदार था। जब उसे पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी का नेतृत्व करने के लिए चुना गया तो उसे गणपति का आशीर्वाद प्राप्त था।
बसवराजू को एक आक्रामक कमांडर के रूप में जाना जाता था, जिसने माओवादी आंदोलन के इतिहास में कुछ सबसे दुस्साहसी और क्रूर हमलों का नेतृत्व किया था। उसे आइईडी का विशेषज्ञ माना जाता था और वह एक कुशल रणनीतिकार था। ऐसा कहा जाता है कि 2013 में झारखंड के लातेहार में हुए हमले के पीछे उसका ही दिमाग था, जब एक मृत सीआरपीएफ जवान के पेट में एक ‘फोटोसेंसिटिव आइईडी’ को लगाया गया था, इस उम्मीद के साथ कि इससे बचाव दल और डाक्टर हताहत होंगे।
बसवराजू को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता था जो सुरक्षा बलों के खिलाफ बड़ी सफलता पाने के लिए नागरिकों की जान के मामले में कुछ अतिरिक्त क्षति को बर्दाश्त कर सकता था।
बसवराजू के नेतृत्व में हुए कुछ प्रमुख हमले
2018 सुकमा आइईडी हमला : माओवादियों ने सीआरपीएफ जवानों को ले जा रहे एक सुरंग संरक्षित वाहन को निशाना बनाकर आइईडी विस्फोट किया। नौ सीआरपीएफ जवान शहीद हुए और छह घायल हो गए।
2019 गढ़चिरौली बारूदी सुरंग विस्फोट : महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में सड़क निर्माण स्थल पर माओवादियों द्वारा वाहनों को आग लगाने के कुछ घंटों बाद एक पुलिस वाहन को निशाना बनाकर बारूदी सुरंग विस्फोट किया गया। इस विस्फोट में 15 पुलिसकर्मी और एक ड्राइवर की मौत हो गई।
2021 सुकमा-बीजापुर घात : माओवादी विरोधी अभियान के दौरान सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला किया गया, जिसके बाद काफी देर तक गोलीबारी हुई। इसमें 22 सुरक्षाकर्मी मारे गए और 32 घायल हो गए।
2023 दंतेवाड़ा आइईडी विस्फोट : माओवादी विरोधी अभियान से लौट रहे वाहन को निशाना बनाकर आइईडी विस्फोट किया गया। एक चालक समेत 10 डीआरजी जवान मारे गए।
2025 बीजापुर आइईडी हमला : माओवादी विरोधी अभियान से लौट रहे वाहन को निशाना बनाकर किया गया शक्तिशाली आइईडी विस्फोट। आठ डीआरजी जवान, एक चालक की मौत हो गई।
बसवराजू की अगुआई में नाकामी
2024 कांकेर मुठभेड़ : सुरक्षा बलों ने माओवादियों के साथ बड़ी मुठभेड़ की, नतीजतन बड़ी संख्या में विद्रोही हताहत हुए। इस मुठभेड़ में 29 माओवादी मारे गए, तीन सुरक्षाकर्मी घायल हुए।
2024 अबूझमाड़ मुठभेड़ : यह माओवादियों के लिए सबसे घातक मुठभेड़ों में से एक थी, जिसने इस क्षेत्र में उनकी उपस्थिति को काफी कमजोर कर दिया। इसमें 38 माओवादी मारे गए थे और एक सुरक्षाकर्मी घायल हुआ था।