नरगिस दत्त की गिनती हिंदी सिनेमा जगत की सबसे महान अभिनेत्रियों में होती है। लोग उनकी अदाकारी के आज भी दीवाने हैं। नरगिस दत्त लगभग तीन दशक तक अपनी अदाकारी से सिनेमा प्रेमियों के दिलों पर राज करती रहीं। उन्होंने फिल्मों में पांच साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। फिल्म तलाश-ए-हक (1935) के साथ एक छोटी भूमिका से उन्होंने शुरुआत की, हालांकि उनका अभिनय करियर फिल्म तमन्ना (1942) से शुरू हुआ। नरगिस ने पचास से ज्यादा फिल्मों में काम किया। 1957 में फिल्म ‘मदर इंडिया’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया।

बचपन
नरगिस का जन्म पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम फातिमा राशिद था। उनके पिता अब्दुल रशीद थे, जो मूल रूप से पंजाब प्रांत के रावलपिंडी से थे। उनकी माता का नाम जद्दनबाई था, जो उस जमाने की जानी-मानी शास्त्रीय संगीत गायिका और भारतीय सिनेमा के अग्रदूतों में से एक थीं। कहा जाता है कि नरगिस डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन मां की इच्छा और घर में सिनेमा का माहौल होने के कारण उन्हें सिनेमा जगत की ओर अपना रुख करना पड़ा।

सिनेमा जगत
चौदह साल की उम्र में नरगिस फिल्म निर्देशक महबूब खान की फिल्म तकदीर में नजर आई। बस इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखा। उन्होंने 1940 और 1950 के दशक में कई हिंदी फिल्मों में अभिनय किया, जैसे बरसात, अंदाज, आवारा, दीदार, श्री 420, चोरी चोरी आदि। नरगिस और राजकपूर ने दर्जनों फिल्मों में साथ काम किया। बाद में राजकपूर के साथ संबंधों को लेकर वे काफी विवादों में भी रहीं।

मदर इंडिया और एकेडमी अवॉर्ड
महबूब खान द्वारा निर्देशित फिल्म ‘मदर इंडिया’ के लिए नरगिस को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। मदर इंडिया एक फिल्म भर नहीं थी, यह फिल्म हिंदी सिनेमा जगत में खासा स्थान रखती है। नरगिस की अदाकारी ने इस फिल्म को अमर कर दिया। इस फिल्म से हिंदी सिनेमा जगत के दर्शकों के दिलों पर जो छाप छोड़ी है, उसे सालों तक भुलाया नहीं जा सकता है। ‘मदर इंडिया’ फिल्म के लिए उन्हें एकेडमी अवॉर्ड के लिए भी नामांकित किया गया था। साल 1958 में सुनील दत्त से शादी कर नरगिस से नरगिस दत्त बन गर्इं। शादी के बाद उन्होंने फिल्मों में काम करना कम कर दिया था। करीब दस साल बाद उन्होंने फिल्म ‘रात और दिन (1967)’ में काम किया। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पहला मौका था जब किसी अभिनेत्री को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।

अभिनेत्री से संसद तक का सफर
1970 के दशक की शुरुआत में नरगिस दत्त ‘द स्पास्टिक सोसाइटी ऑफ इंडिया’ की पहली संरक्षक बनीं और इसके साथ काम करते हुए उन्होंने एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी अपनी पहचान बनाईं। उन्होंने अभिनेत्री से सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता से 1980 में संसद भवन तक का सफर तय किया। यह सफर नरगिस के लिए बहुत आसान नहीं था। 1981 में अग्नाशय कैंसर से उनका निधन बॉलीवुड के लिए महान क्षति थी।