जब बिना किसी ठोस वजह और ठोस तैयारी के कोई धमकी बार-बार दी जाती है तो उसे भभकी कहा जाता है। पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने पिछले दिनों अमेरिका के अपने दूसरे दौरे के दौरान एक कार्यक्रम में धमकी दी कि अगर भारत के साथ भविष्य की जंग में पाकिस्तान केअस्तित्व को खतरा हुआ तो वह पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देगा। मुनीर ने कहा कि पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति है। अगर उसे लगा कि वह खत्म हो रहा है, तो वह आधी दुनिया को भी अपने साथ ले डूबेगा। पाक सेना प्रमुख की इस धमकी पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। मंत्रालय ने कहा कि परमाणु हमले की धमकी देना पाकिस्तान की आदत में शुमार है।

आपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की इन धमकियों पर भारत कई बार कह चुका है कि वह परमाणु हमले के भयादोहन में नहीं आने वाला है। अगर भारतीय सरजमीं पर फिर आतंकी हमला होता है तो वह कड़ा जवाब देगा। स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि पाकिस्तान की ‘परमाणु भभकी’ से भारत डरने वाला नहीं है। धमकी से भभकी बन चुकी पाकिस्तान की इस प्रवृत्ति पर सरोकार।

पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा और नियंत्रण पर भरोसा नहीं

आसिम मुनीर की ‘परमाणु भभकी’ पर विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘हमारा ध्यान उन बयानों की ओर गया है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने अमेरिका की यात्रा के दौरान दिए हैं। परमाणु हमले की धमकी देना पाकिस्तान की आदत में शामिल है’। विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय आसानी से समझ सकता है कि ऐसे बयान कितने गैर-जिम्मेदाराना हैं। ये बयान इस शक को और बढ़ाते हैं कि जिस देश की सेना का आतंकवादियों से गठजोड़ है, वहां परमाणु हथियारों की सुरक्षा और नियंत्रण पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘अफसोस की बात है कि यह बयान दोस्त देश की सरजमीं से दिए गए। भारत पहले ही साफ कर चुका है कि वह परमाणु धमकी के आगे नहीं झुकेगा। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाता रहेगा।’

आसिम मुनीर का एक और बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि मई में भारत के साथ हुए संघर्ष में पाकिस्तान को सफलता मिली थी। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरु बनने का दावा करता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। पिछले दिनों मुनीर ने भारत को जिस अंदाज में अमेरिका से धमकी दी, यह उनके अतिआत्मविश्वास को दर्शाता है कि उन्होंने ट्रंप को अपनी तरफ कर लिया है और अमेरिका की सरजमीं से कुछ भी कह सकते हैं।

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जानकारों का कहना है कि अभी स्थिति यह है कि ट्रंप जो कह रहे हैं और भारत जो कह रहा है, उसमें काफी अंतर है। वहीं, पाकिस्तान ट्रंप की हां में हां मिला रहा है। इससे उसमें यह दुस्साहस पैदा हुआ कि वह अमेरिकी धरती से भारत को परमाणु धमकी देने लगा। विशेषज्ञों का कहना है कि चार ऐसी बातें हैं जिनके कारण पाक परमाणु हमले की धमकी देता है और वह ऐसा करके द्विपक्षीय विवाद में तीसरे पक्ष को शामिल करने का दबाव बना रहा है।

पहला, पाकिस्तान ने अपने अस्तित्व और नीतिगत पहल को भारत आधारित अस्तित्वगत सुरक्षा खतरों के प्रति अपनी भावनाओं से जोड़ा है। पाकिस्तानी सेना की बातें उसके राजनीतिक नेतृत्व के मुकाबले ज्यादा वजन रखती हैं। इसलिए, मुनीर के शब्द मायने रखते हैं, क्योंकि वे घरेलू परिवेश में सेना की एक संस्था के रूप में छवि और राज्य की संप्रभुता की रक्षा के लिए उसकी तत्परता को पुनर्स्थापित करने के लिए विमर्श को आकार देते हैं।
दूसरा, पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठतम अधिकारी के रूप में मुनीर का विदेशी धरती, वह भी अमेरिका में, भाषण खतरे पर फिर से जोर देने का एक कदम है। यह पाकिस्तानी परमाणु सिद्धांत का एक अंतर्निहित हिस्सा है।

अंतर्निहित उद्देश्य मुनीर के धार्मिक सैद्धांतिक झुकाव से जुड़ा है। इस संबंध में, परमाणु हथियारों पर जोर भारत के साथ रणनीतिक स्थिरता के तत्त्व को पुन: संतुलित और बहाल करने के लिए है। 1998 में अपने खुले परमाणुकरण के बाद से, पाकिस्तान नई दिल्ली के खिलाफ अपने छद्म युद्ध को आगे बढ़ाने के लिए शर्तें थोपने का प्रयास कर रहा है। इसकी विशेषता आतंकवाद को संरक्षण देना है। जवाब में, भारत परमाणु माहौल में प्रतिरोध की खातिर जोखिम भरा दृष्टिकोण अपना रहा है।

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भारत पर दबाव बनाने के लिए पाक अस्थिरता के तत्त्व को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश कर रहा है। उसका इरादा है कि यदि भारत भविष्य में आपरेशन सिंदूर 2.0 या कोई अन्य सैन्य पहल करता है, तो पाकिस्तान (रणनीतिक) परमाणु हथियारों का उपयोग करने के लिए मजबूर होगा। हालांकि, भारत की ओर से निश्चित जवाबी कार्रवाई के साथ परमाणु हमले का जोखिम उठाना पाकिस्तान के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
तीसरा, मुनीर के बयानों का उद्देश्य भारत को पारंपरिक स्तर पर प्रतिक्रिया देने की गुंजाइश से वंचित करना है। हालांकि, आपरेशन सिंदूर के जरिए भारतीय प्रतिक्रिया ने पाक की भभकी भरी अवधारणा को कुछ हद तक खंडित किया है।

चौथा, पाकिस्तानी सेना अपनी वैचारिक स्थिति की संरक्षक होने के नाते, रणनीतिक क्षेत्र में भारत की श्रेष्ठता के विरुद्ध एक असमान परमाणु रुख अपनाती रही है। पाकिस्तान के पास भारत की आक्रामकता के खिलाफ सामरिक परमाणु हथियारों को लेकर एक स्पष्ट रवैया है। हालांकि भारत ने उरी लक्षित हमले, बालाकोट हवाई हमलों और नवीनतम आपरेशन सिंदूर के रूप में आतंकी हमलों पर अपनी प्रतिक्रिया के जरिए इस दबाव को चुनौती देने में कामयाबी हासिल की।

मुनीर की भारत के विरुद्ध धमकियां और पारस्परिक विनाश की आशंका बढ़ाने का लक्ष्य यह है कि भारत-पाकिस्तान परमाणु द्वंद्व में तीसरे पक्ष को शामिल किया जा सके। परमाणु खतरे पर जोर देने का मकसद अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका को भारत की प्रतिक्रिया में हस्तक्षेप करने के लिए शामिल करना है। पाकिस्तान का परमाणु भयादोहन वाला बयान भारत के खिलाफ उसका एक तरह का सुरक्षा कवच है। दरअसल भारत कई बार कह चुका है कि उसकी धरती पर किसी भी हमले को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा और जवाब दिया जाएगा।

जानकारों का कहना है कि इन घटनाक्रमों के बावजूद, भारत को अपने बढ़ते शस्त्रागार और समग्र आधार के हिस्से के रूप में परमाणु और सामरिक गैर-परमाणु क्षमताएं जुटाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। भारतीय नीति-नियंताओं को शांति से इस रणनीति का जवाब देना होगा, अन्यथा इससे पाकिस्तान, अमेरिका की दखंलदाजी कराने में कामयाब होगा। हालांकि अमेरिका मुनीर के बयान के बाद कह चुका है कि भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ उसके संबंध अपरिवर्तित हैं। ऐसे में भारत को अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह रणनीति अपनाकर पाकिस्तान की करतूतों से सावधान रहना चाहिए।

ट्रंप की नजरों में बढ़ाई कद्र

पाकिस्तान में सेना हमेशा से ही सर्वशक्तिमान रही है, लेकिन आसिम मुनीर के उत्थान में उसकी कमजोर नागरिक सरकार, खराब आर्थिक स्थिति और इस तथ्य का योगदान रहा है कि वह ट्रंप की नजरों में चढ़ गए हैं। मुनीर ने पिछले सप्ताह दो महीने से भी कम समय में अमेरिका की अपनी दूसरी उच्चस्तरीय यात्रा की। अमेरिकी सेना के बयान के अनुसार, आठ अगस्त को मुनीर ने सर्वोच्च वरीयता वाले अमेरिकी सैन्य अधिकारी, संयुक्त ‘चीफ आफ स्टाफ’ के अध्यक्ष जनरल डैन केन से मुलाकात की और क्षेत्र में सफल आतंकवाद-रोधी सहयोग प्रयासों पर चर्चा की।

18 जून को अमेरिका की पांच दिवसीय यात्रा के दौरान मुनीर ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से दोपहर के भोजन पर मुलाकात की थी। यह पहली बार था जब किसी पाकिस्तानी सेना प्रमुख की ‘वाहट हाउस’ में मेजबानी की गई थी। तब ट्रंप ने कहा कि मुनीर से मिलकर वे सम्मानित महसूस कर रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका-पाक संबंधों में अप्रत्याशित सुधार हुआ है और मुनीर मई में आपरेशन सिंदूर के बाद से एक मजबूत व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं।

मुनीर ने चुनी हुई सरकार पर अपनी शक्ति को मजबूत किया है, खासकर आपरेशन सिंदूर के बाद से। युद्धविराम के कुछ ही दिनों के भीतर पाकिस्तानी सरकार ने मुनीर को फील्ड मार्शल बना दिया। वे इस पद पर पदोन्नत होने वाले पाक सेना के दूसरे प्रमुख हैं।

मुनीर का ‘वाइट हाउस’ में स्वागत किया जाना अभूतपूर्व है। इससे पहले जितने भी पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख अमेरिका आए थे, वे देश के राष्ट्रपति थे। इसका एक अपवाद जनरल कयानी थे, जिन्होंने 2010 में ‘वाइट हाउस’ के ‘रूजवेल्ट रूम’ में अधिकारियों से मुलाकात की थी। भारत के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पाक में रिमोट कंट्रोल रावलपिंडी के हाथ में आ गया है। विश्लेषकों को हैरानी है कि मुनीर किस तरह राष्ट्रपति ट्रंप की नजरों में चढ़ गए हैं। पाक की ओर से ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सिफारिश करने वाले पत्र और भारत के साथ युद्धविराम कराने में उनकी भूमिका की सराहना ने इसमें मदद की है।

पाकिस्तान में सेना हमेशा से ही सर्वशक्तिमान रही है, लेकिन आसिम मुनीर के उत्थान में उसकी कमजोर नागरिक सरकार, खराब आर्थिक स्थिति और इस तथ्य का योगदान रहा है कि वह ट्रंप की नजरों में चढ़ गए हैं। मुनीर ने पिछले सप्ताह दो महीने से भी कम समय में अमेरिका की अपनी दूसरी उच्चस्तरीय यात्रा की। अमेरिकी सेना के बयान के अनुसार, आठ अगस्त को मुनीर ने सर्वोच्च वरीयता वाले अमेरिकी सैन्य अधिकारी, संयुक्त ‘चीफ आफ स्टाफ’ के अध्यक्ष जनरल डैन केन से मुलाकात की और क्षेत्र में सफल आतंकवाद-रोधी सहयोग प्रयासों पर चर्चा की।

18 जून को अमेरिका की पांच दिवसीय यात्रा के दौरान मुनीर ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से दोपहर के भोजन पर मुलाकात की थी। यह पहली बार था जब किसी पाकिस्तानी सेना प्रमुख की ‘वाहट हाउस’ में मेजबानी की गई थी। तब ट्रंप ने कहा कि मुनीर से मिलकर वे सम्मानित महसूस कर रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका-पाक संबंधों में अप्रत्याशित सुधार हुआ है और मुनीर मई में आपरेशन सिंदूर के बाद से एक मजबूत व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं।

मुनीर ने चुनी हुई सरकार पर अपनी शक्ति को मजबूत किया है, खासकर आपरेशन सिंदूर के बाद से। युद्धविराम के कुछ ही दिनों के भीतर पाकिस्तानी सरकार ने मुनीर को फील्ड मार्शल बना दिया। वे इस पद पर पदोन्नत होने वाले पाक सेना के दूसरे प्रमुख हैं।

मुनीर का ‘वाइट हाउस’ में स्वागत किया जाना अभूतपूर्व है। इससे पहले जितने भी पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख अमेरिका आए थे, वे देश के राष्ट्रपति थे। इसका एक अपवाद जनरल कयानी थे, जिन्होंने 2010 में ‘वाइट हाउस’ के ‘रूजवेल्ट रूम’ में अधिकारियों से मुलाकात की थी। भारत के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पाक में रिमोट कंट्रोल रावलपिंडी के हाथ में आ गया है। विश्लेषकों को हैरानी है कि मुनीर किस तरह राष्ट्रपति ट्रंप की नजरों में चढ़ गए हैं। पाक की ओर से ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सिफारिश करने वाले पत्र और भारत के साथ युद्धविराम कराने में उनकी भूमिका की सराहना ने इसमें मदद की है।

शांति की दरकार और बुद्ध की मुस्कान

भारत ने 11 से 13 मई 1998 के दरमियान अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया था। परमाणु शक्ति का यह प्रदर्शन तब दुनिया को चौंकाने के लिए काफी था और तमाम मुल्कों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। जवाब में पाकिस्तान ने भी कुछ ही दिनों के अंतराल में परमाणु विस्फोट किया। दक्षिण पूर्व एशिया के दो परस्पर प्रतिद्वंद्वी देशों में परमाणु शक्ति की होड़ को देख संयुक्त राष्ट्र तक को हस्तक्षेप करना पड़ा और सुरक्षा परिषद में इसके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। हालांकि भारत ने स्पष्ट कहा कि उसका परमाणु परीक्षण शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है और वह इसके जरिए नाभिकीय हथियार बनाने का इरादा नहीं रखता है।

परमाणु परीक्षण का है लंबा सफर

भारत के परमाणु शक्ति संपन्न होने की दिशा में काम तो वर्ष 1945 में ही शुरू हो गया था, जब होमी जहांगीर भाभा ने इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च की नींव रखी। लेकिन सही मायनों में इस दिशा में भारत की सक्रियता 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बढ़ी। इस युद्ध में भारत को अपने कई इलाके गंवाने पड़े थे। इसके बाद 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण कर महाद्वीप में अपनी धौंसपट्टी और तेज कर दी। लिहाजा सरकार के निर्देश पर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने प्लूटोनियम व अन्य बम उपकरण विकसित करने की दिशा में सोचना शुरू किया। इसी बीच दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में दो बड़ी घटनाएं और हो गईं।

1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और इसी दौरान चीन ने थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस विकसित कर परमाणु शक्ति संपन्न होने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा लिया था। इन वर्षों में भारत में राजनीतिक नेतृत्व में भी परिवर्तन आ चुका था और प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा गांधी आसीन हो चुकी थीं। परमाणु कार्यक्रम भी होमी भाभा से चलकर विक्रम साराभाई से होता हुआ प्रसिद्ध वैज्ञानिक राजा रमन्ना के हाथों में आ चुका था।

इन्हीं भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज किया और 1972 में इसमें दक्षता प्राप्त कर ली। 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के पहले परमाणु परीक्षण के लिए हरी झंडी दे दी। इसके लिए स्थान चुना गया राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित छोटे से शहर पोखरण के निकट का रेगिस्तान और इस अभियान का नाम दिया गया ‘स्माइलिंग बुद्धा’। इस नाम को चुने जाने के पीछे यह स्पष्ट दृष्टि थी कि यह कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए है।

18 मई 1974 को यह परीक्षण हुआ। परीक्षण से पूरी दुनिया चौंक उठी, क्योंकि सुरक्षा परिषद में बैठी पांच महाशक्तियों से इतर भारत परमाणु शक्ति बनने वाला पहला देश बन चुका था। इस परीक्षण में राजा रमन्ना के नेतृत्व में भारत के मेधावी परमाणु वैज्ञानिकों पीके आयंगर, राजगोपाल चिदंबरम, नागपत्तानम सांबशिवा वेंकटेशन, वामन दत्तात्रेय पट्टवर्धन, होमी एन सेठना आदि की टीम ने अपनी पूरी मेधा झोंक दी। इस टीम के राजगोपाल चिदंबरम बाद में एपीजे अब्दुल कलाम के साथ पोखरण-2 के सूत्रधारों में थे। भारत के परमाणु परीक्षण की पूरी दुनिया में प्रतिक्रिया हुई। पाकिस्तान ने इसे धमकी भरी कार्रवाई करार दिया तो कुछ अन्य देशों ने परमाणु होड़ बढ़ाने वाला बताया, जबकि कुछ अन्य चुप्पी साध गए।

पहले परमाणु परीक्षण के बाद 24 साल तक अंतरराष्ट्रीय दबाव व राजनीतिक नेतृत्व में इच्छाशक्ति के अभाव में भारत के परमाणु कार्यक्रम की दिशा में कोई बड़ी हलचल नहीं हुई। 1998 में केंद्रीय सत्ता में राजनीतिक परिवर्तन हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। वाजपेयी ने अपने चुनाव अभियान में भारत को बड़ी परमाणु शक्ति बनाने का नारा दिया था। सत्ता में आने के दो महीने के अंदर ही उन्होंने अपने इस वादे को मूर्त रूप देने के लिए परमाणु वैज्ञानिकों को यथाशीघ्र दूसरे परमाणु परीक्षण की तैयारी के निर्देश दिए।

चूंकि इससे पूर्व 1995 में भारत की परमाणु तैयारियों की भनक अमेरिका को लग चुकी थी, इसलिए इस बार अभियान की तैयारियों को पूरी तरह गोपनीय रखा गया। यहां तक की केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई सदस्यों तक को इसके बारे में पता नहीं था। पूरे अभियान की रणनीति में कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिक, सैन्य अधिकारी व राजनेता ही शामिल थे।

चूंकि अब भारत की परमाणु दक्षता उच्च स्तरीय हो चुकी थी और दुनिया को यह दिखाने का समय आ चुका था कि वह भारत की ताकत को कमतर करके न आंके, इसलिए इस अभियान का नाम शक्ति रखा गया। अंतत: 11 मई व इसके बाद भारत ने पोखरण में दूसरे परमाणु परीक्षण किए। कुल पांच डिवाइस का परीक्षण किया गया। इस परीक्षण की सफलता के लिए प्रधानमंत्री ने पूरी टीम को बधाई दी।

28 मई 1998 को पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से घोषणा की कि उसने पांच सफल परमाणु परीक्षण किए हैं। पाकिस्तान एटमिक एनर्जी कमीशन के अनुसार, इन परीक्षणों से रिक्टर पैमाने पर 5.0 तीव्रता का भूकंपीय कंपन दर्ज हुआ और कुल विस्फोट क्षमता लगभग 40 किलोटन (टीएनटी के बराबर) आंकी गई। अब्दुल कदीर खान ने दावा किया कि इन परीक्षणों में एक ‘बूस्टेड फिजन डिवाइस’ थी, जबकि बाकी चार सब-किलोटन (एक किलोटन से कम क्षमता वाले) परमाणु उपकरण थे। इसके बाद, 30 मई 1998 को पाकिस्तान ने एक और परमाणु परीक्षण किया, जिसकी अनुमानित शक्ति 12 किलोटन बताई गई। ये सभी परीक्षण बलूचिस्तान क्षेत्र में किए गए, जिससे पाकिस्तान के कुल घोषित परमाणु परीक्षणों की संख्या छह हो गई।

नाभिकीय शस्त्रागार का हो रहा विस्तार

स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने भारत और पाकिस्तान में परमाणु शस्त्रागार विस्तार पर रपट दी है, जिसमें खतरनाक हथियारों की होड़ और संभावित संकट की चेतावनी दी गई है। वैश्विक थिंक टैंक ने अपनी 2025 की रपट में कहा है कि भारत और पाकिस्तान सहित लगभग सभी नौ परमाणु सशस्त्र देशों ने 2024 में गहन परमाणु आधुनिकीकरण कार्यक्रम जारी रखा है, मौजूदा हथियारों को उन्नत किया है और नए संस्करण जोड़े हैं।

माना जा रहा है कि भारत ने 2024 में एक बार फिर अपने परमाणु शस्त्रागार का थोड़ा विस्तार किया है और नए प्रकार की परमाणु वितरण प्रणाली को विकसित करना जारी रखा है। सिपरी का कहना है, भारत की नई मिसाइलें परमाणु युद्धाग्र ले जाने में सक्षम हो सकती हैं और संभवत: एक बार चालू हो जाने पर प्रत्येक मिसाइल कई लक्ष्यभेद कर सकती है।

पाकिस्तान ने 2024 में नई वितरण प्रणालियों का विकास और विखंडनीय सामग्री जमा करना जारी रखा है, जिससे पता चलता है कि आने वाले दशक में उसके परमाणु शस्त्रागार का विस्तार हो सकता है। इसमें कहा गया है कि 2025 की शुरुआत में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कुछ समय के लिए सशस्त्र संघर्ष में बदल गया।

सिपरी के अनुसार, निष्कर्ष बताते हैं कि एक खतरनाक नए परमाणु हथियारों की होड़ ऐसे समय में उभर रही है, जब हथियार नियंत्रण व्यवस्थाएं बेहद कमजोर हो गई हैं। नौ परमाणु सशस्त्र देश हैं : संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक आफ कोरिया (उत्तर कोरिया) और इजराइल।

सिपरी के अनुमान के अनुसार, भारत के संग्रहित आयुधों की संख्या जनवरी 2024 में 172 से बढ़कर जनवरी 2025 में 180 हो गई, जबकि पाकिस्तान के पास 170 ही हैं। अमेरिका के पास 1,770 तैनात और 1,930 संग्रहित आयुध हैं, जबकि 2025 में उसके पास 5,177 आयुध होंगे, जबकि 2024 में यह 5,328 थे। रूस के पास 1,718 तैनात और 2,591 संग्रहित हथियार हैं और इसकी सूची 2024 में 5,580 की तुलना में 5,459 है। चीन के पास 24 तैनात और 576 संग्रहित हथियार हैं। इसकी सूची जनवरी 2025 में 600 हो जाएगी जो 2024 में 500 थी।

कुल भंडार 12,241 हैं, जिनमें से 9,614 हथियार संभावित उपयोग के लिए सैन्य भंडार में हैं। अनुमान है कि 3,912 हथियार मिसाइलों और विमानों के साथ तैनात हैं और बाकी केंद्रीय भंडारण में हैं, जबकि तैनात हथियारों में से लगभग 2,100 को बैलिस्टिक मिसाइलों को उच्च परिचालन सतर्कता की स्थिति में रखा गया है। इनमें से लगभग सभी रूस या अमेरिका के हैं। रपट में कहा गया है, रूस और अमेरिका के पास कुल परमाणु हथियारों का लगभग 90 फीसद हिस्सा है। उनके सैन्य भंडार (अर्थात उपयोग योग्य हथियार) का आकार 2024 में अपेक्षाकृत स्थिर प्रतीत होता है, लेकिन दोनों देश व्यापक आधुनिकीकरण कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं। इससे भविष्य में उनके शस्त्रागार का आकार और विविधता बढ़ सकती है।

रपट में कहा गया है, चीन का परमाणु शस्त्रागार किसी भी अन्य देश की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। 2023 से प्रति वर्ष लगभग 100 नए हथियार बनाए जा रहे हैं। जनवरी 2025 तक, चीन देश के उत्तर में तीन बड़े रेगिस्तानी क्षेत्रों और पूर्व में तीन पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 350 नए ‘आइसीबीएम साइलो’ का निर्माण पूरा कर चुका है। अपनी सेनाओं की संरचना के आधार पर, चीन के पास इस दशक के अंत तक रूस या अमेरिका के बराबर आइसीबीएम हो सकते हैं। अगर चीन 2035 तक अधिकतम अनुमानित 1,500 परमाणु आयुधों तक पहुंच भी जाता है, तो भी यह रूस और अमेरिका के मौजूदा परमाणु भंडार का लगभग एक-तिहाई ही होगा।