आसनसोल से सांसद व तृणमूल कांग्रेस के नेता शत्रुघ्न सिन्हा का कहना है कि इन दिनों राजनीति में नेता, अभिनेता से ज्यादा ‘डायलाग’ मार रहे हैं। सिन्हा का आरोप है कि नेता जनता को दर्शक दीर्घा की तरह ले रहे हैं क्योंकि उनका मकसद सिर्फ तालियां बटोरना है। उन्होंने कहा कि जब अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी से लेकर यशवंत सिन्हा तक को हाशिये पर देखा तो उनका दिल टूट गया। सिन्हा का दावा है कि भाजपा के बनाए जा रहे सारे विमर्शों को खारिज करते हुए अगले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी बड़े अंतराल से जीतेंगी। साथ ही कहा कि शीर्ष नेतृत्व को न कोई सुन रहा, न ही ‘गोदी मीडिया’ को कोई देख रहा है। नई दिल्ली में कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की शत्रुघ्न सिन्हा के साथ बातचीत के चुनिंदा अंश।

फिल्मी दुनिया से काफी संख्या में लोग राजनीति में आए, लेकिन ज्यादातर अभिनेता आपकी तरह टिके नहीं रहे। यानी, निरंतरता में लंबी पारी नहीं खेल सके। आप जिस तरह मजबूती से राजनीति में स्थापित हुए, इसकी क्या वजह मानते हैं?

शत्रुघ्न सिन्हाजब तक आप कारण पर रोशनी नहीं डालेंगे तब तक निवारण नहीं होगा। पहले तो यह समझना होगा कि लोग फिल्मों से राजनीति में क्यों आते हैं? क्या इसलिए आते हैं कि फिल्मों में ‘ग्लैमर’ का सीमित शक्ति प्रदर्शन है और राजनीति में इसी ‘ग्लैमर’ का असीमित शक्ति प्रदर्शन है? कोई किसी स्वार्थ की वजह से तो नहीं आ रहा? कुछ काम करने के लिए आ रहे हैं या करवाने के लिए आ रहे हैं? अगर आप काम करने की लगन के साथ आ रहे हैं तो आपका स्वागत होगा। मैं फिल्मों में भी संघर्ष करके आया था। राजनीति में भी संघर्षशील प्रशिक्षु की तरह आया। नानाजी देशमुख से लेकर जयप्रकाश नारायण जी तक ने मुझे बहुत स्नेह दिया और मेरी बहुत परीक्षा भी ली। अटल बिहारी वाजपेयी भूतपूर्व प्रधानमंत्री ही नहीं अभूतपूर्व व्यक्तित्व भी थे जिन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया। आडवाणी जी को हम शुरू से अपना गुरु, मार्गदर्शक और सशक्त नेतृत्वकर्ता मानते थे। सिनेमा से सियासत में उतरना आसान नहीं है। शुरू में जनता आपको गंभीरता से नहीं लेती है। लोगों की भीड़ बस आपसे फिल्मी संवाद सुनना चाहती है। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसा प्रशिक्षण मिला कि मुझसे कभी किसी ने ‘डायलाग’ सुनाने की फरमाइश नहीं की। एक रेकार्ड कायम हुआ कि फिल्म उद्योग से आए किसी व्यक्ति को पहली बार दो स्वतंत्र मंत्रालयों का कार्यभार मिला। यह राजनीतिक प्रशिक्षण की वजह से हुआ।

अब तो राजनीतिक प्रशिक्षण लिए हुए और राजनीति की मजबूत जमीन से आए हुए लोग भी फिल्मी सितारों की तरह ‘डायलाग’ मार रहे हैं।

शत्रुघ्न सिन्हाजी, अब तो नेता, अभिनेता से ज्यादा ‘डायलाग’ मार रहे हैं। आप भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को ही देख लीजिए। यह मंचीय शैली है, यानी आप दर्शक दीर्घा को रोमांचित करने के लिए ही संवाद बोलते हैं। आप कितना सही, कितना तथ्यपरक बोल रहे हैं, इससे ज्यादा अहम यह हो जा रहा है कि आपके बोलने पर तालियां कितनी बजी। आपकी बातों में गंभीरता का स्तर कितना है, यह मायने नहीं रखता है।

फिल्मी दुनिया और राजनीति के आकर्षण में अंतर है। पहले में आप जनता से दूर रहते हैं और दूसरे में जनता के करीब रहना ही आपका काम है। तो क्या कभी अपने पुराने जीवन की कमी महसूस करते हैं जब आम लोगों की पहुंच आप तक नहीं हो पाती थी।

शत्रुघ्न सिन्हाजी, यह स्वाभाविक है। पहले कई लोग वर्षों तक मुझसे मिलने के लिए बेचैन रहते थे। अभी तो लोग हक से आते हैं और कहते हैं कि नेताजी से मुलाकात करनी है। आज ही मुलाकात चाहिए। धीरे-धीरे मैं राजनीति की इस गहराई को समझता गया और लोगों के करीब आता गया। इससे मेरी भी साख बनी। आज तक आपने मुझे यह कहते नहीं सुना होगा कि मेरी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। मैं जो कहता हूं, भरोसे के साथ कहता हूं। लोग कहते हैं, बिहारी बाबू ने कहा है तो दम है। ये जो कहेंगे तथ्य और सत्य पर आधारित होगा। ज्यादातर फिल्मी सितारे राजनीति में आने के बाद लोकप्रियता खो देते हैं। आज मेरी लोकप्रियता ऐसी है कि मैं ‘स्टार’ प्रचारक में गिना जाता हूं। आज तक मेरे ऊपर कोई इल्जाम नहीं लगा।

1992 में आप एक उम्मीदवार नहीं बल्कि एक पूरी सरकार के खिलाफ लड़ रहे थे। तब आप इस आत्मविश्वास के साथ थे कि मैं जिस राह पर हूं, वही सही है। आपने बहुत से नेताओं के नाम लिए जिनसे आप प्रशिक्षित हुए। फिर ऐसा क्या हुआ कि वो पार्टी आपको छोड़नी पड़ी? आपके लिए कितना मुश्किल था?

शत्रुघ्न सिन्हाकभी-कभी तो शर्मिंदा महसूस करता हूं कि मैं ही वो व्यक्ति हूं जो कभी गर्व से कहा करता था कि भारतीय जनता पार्टी मेरी पहली और आखिरी पार्टी होगी। लेकिन यहां बदले की राजनीति शुरू हो गई। मेरे गुरु आडवाणी जी से लेकर पार्टी के संस्थापक सदस्यों तक को अलग-थलग कर दिया गया। विद्वान अरुण शौरी और मुरली मनोहर जोशी किनारे पर आ गए। राजनीति के प्रतीक पुरुष यशवंत सिन्हा के लिए यहां जगह नहीं थी। यह तथ्य है कि मैं मंत्रिमंडल में था। उस वक्त लगा कि आडवाणी जी की यह हालत है तो मैं किस खेत की मूली हूं। यह भी सोच कर तसल्ली की कि राजनीतिक जरूरतों के तहत अपनी प्राथमिकता के तहत फेरबदल होती है। लेकिन राजनीतिक वातावरण में जो बदलाव हुआ वह देख कर मेरे होश फाख्ता हो गए। बिहार के ही कुछ नेताओं को मुझसे असुरक्षा हो रही थी। बहुत विनम्रता से कह रहा हूं कि किसी चीज को नापने, जांचने वाला मैं कौन हूं, लेकिनअटल बिहारी वाजपेयी तक की लोकशाही न जाने कहां गायब हो गई। हर तरफ सिर्फ एक ही व्यक्ति का जलवा है। आज किसी बच्चे से पूछ लीजिए कि देश के किसी चार केंद्रीय मंत्री का नाम बता दीजिए तो वह एक ही नाम लेगा। अभी तो मंत्री और संतरी में कोई फर्क नहीं है। मैं तो राजनीतिक और सामाजिक तैयारी के साथ यहां आया था। मैं बहती गंगा में हाथ धोने नहीं, विपरीत धारा में तैरने के लिए आया था। बहुत दर्द के साथ कहता हूं, उस वक्त मेरे पास पार्टी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। फिर मैं उस पार्टी से आकर्षित हुआ जिसका आजादी की लड़ाई से नाता रहा। आज जितने एम्स और आइआइटी हैं उसी पार्टी की देन हैं। आज नेहरू की जितनी भी आलोचना की जाए, यह ऐतिहासिक तथ्य है कि वे युगीन महान नेता थे। कांग्रेस में जाने के बाद कुछ ऐसा हुआ, जिसका नैतिकता के स्तर पर वर्णन के लिए शब्द नहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी की यह महानता थी कि उन्होंने मुझसे पूछे बिना ही आसनसोल सीट के लिए मेरे नाम की घोषणा कर दी। ममता बनर्जी की सादगी, उनका नेतृत्व मेरे लिए मिसाल है। वे राजनीतिक प्रतिबद्धता की मूर्ति हैं। लोग उन्हें इतना स्नेह और आदर देते हैं। उन्होंने मुझे इतना स्नेह दिया जिसे शब्दों में नहीं कह सकता हूं। इन हालात में मैंने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और आसनसोल सीट से लड़ा। आज भी मैं कांग्रेस की तारीफ करता हूं। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में राहुल गांधी ने अद्भुत काम किया। मैं हमेशा से काले को काला और सफेद को सफेद कहने का आदी रहा हूं।

केंद्रीय सत्ता पक्ष का मुख्य निशाना राहुल गांधी रहे हैं, लेकिन उसका दूसरा निशाना ममता बनर्जी ही हैं। प्रतीत होता है कि उन्हें यह बात साल रही कि वे पश्चिम बंगाल में सरकार नहीं बना पाए। अभी ऐसा विमर्श तैयार हो रहा कि अगले चुनाव में ममता बनर्जी सत्ता से बेदखल हो रही हैं। इस विमर्श पर आपका क्या कहना है?

शत्रुघ्न सिन्हाविमर्श तैयार करने में तो भारतीय जनता पार्टी और उसके नेतृत्व को कोई पीछे नहीं छोड़ सकता है। भाजपा का मुख्य काम ही विमर्श तैयार करना है। अभी जो देश में हालात चल रहे हैं, एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं उस पर कुछ नहीं बोलूंगा, लेकिन हो क्या रहा है? पिछली बार विमर्श तैयार करने में इनसे अतिश्योक्ति हो गई। भाजपा ने ममता बनर्जी को बहुत अपमानित महसूस करवाया। भाजपा के हर कार्यकर्ता ने बंगाल में ‘दीदी ओ दीदी’ कह कर उनका मखौल उड़ाया। घबराहट तो उनकी ममता बनर्जी से ही है। ममता जी ने इनका विमर्श नाकाम कर दिया। माहौल बनाने के लिए इन्होंने 200 पार का नारा लगाया। ये पहले से ज्यादा तो लाए लेकिन पचास पार नहीं कर पाए। 200 सीटों का आंकड़ा तो ममता बनर्जी ने ही पार किया। आसनसोल में भी रेकार्ड अंतर से हमारी जीत हुई। यानी ममता बनर्जी और जनता जनार्दन की जीत हुई। उसके बाद भाजपा ने क्या किया? संदेशखाली से उसने एक लड़की को खड़ा किया, विमर्श तैयार किया जो जल्दी ही उल्टा पड़ गया। उनके वीडियो की कलई खुलते ही उनका सारा कुप्रचार बेकार साबित हो गया। ममता जी के खिलाफ ये जितना और जिस तरह से बोल रहे थे, वही सब कुछ इन्हें नकली साबित करने के लिए काफी था। इनकी सारी उग्रता कारखाना निर्मित दिखने लगी, जिसके अंदर से राजनीतिक नकली माल निकला। जनता को समझ आ गई कि आपका एक ही मकसद है, कैसे भी सत्ता हासिल कर लेना। ममता जी जनता की नेता हैं। पश्चिम बंगाल के आगामी चुनाव में ममता बनर्जी पहले से बड़े अंतराल से जीत दर्ज करने वाली हैं।

ममता जी की एक राष्ट्रीय छवि है, लेकिन तृणमूल कांंग्रेस क्षेत्रीय दल की सीमा से बाहर नहीं आ पा रही है। अभी तक सतह पर आई खबरों के मुताबिक आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस अपना शक्ति प्रदर्शन कर सकती है। बिहार को लेकर आपका क्या आकलन है? आप ‘बिहारी बाबू’ कहे जाते हैं। इस पर कुछ खास जानने का ख्वाहिशमंद हूं।

शत्रुघ्न सिन्हामैं कई बार कह चुका हूं कि बिहार में मेरे अजीब से हालात हैं। मैं राजद से भी जुड़ा हूं और जनता दल (एकी) से भी। दोनों से मेरी अच्छी नजदीकियां हैं और दोनों मुझे बहुत मानते हैं। बिहार के संदर्भ में मैं अभी कुछ नहीं कह सकता हूं। बिहार के चुनाव का एलान होने के बाद एक राजनीतिक पर्यवेक्षक व एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते मैं अपनी राय व्यक्त करूंगा।

मौजूदा केंद्रीय सत्ता से लेकर मीडिया तक पर बहुत सवाल हैं। विपक्ष के एक अहम प्रवक्ता के रूप में आपकी राय जानना चाहूंगा।

शत्रुघ्न सिन्हाआपका यह सवाल और मेरी तरफ से इसका जवाब, दोनों लाजिम हैं। जिस तरह से इस देश के कथित गोदी मीडिया को कोई देखना नहीं चाहता, उसी तरह से फिलवक्त देश के शीर्ष नेताओं को कोई सुनना नहीं चाहता है। दोनों की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है। पहले ये सिर पर मटका रख कर बैलगाड़ी से बाहर निकलते थे। पहले पेट्रोल-डीजल के दाम पर कितना हंगामा करते थे। अब कहां गई उनकी वाणी? कच्चे तेल का वैश्विक दाम घटता है और यहां उसके उत्पादों के दाम बढ़ते हैं। इनका पूरा विमर्श ‘नकली’ के खाते में रखा जा चुका है। मैं पूरे सम्मान के साथ कहता हूं कि अभी शीर्ष नेतृत्व के सिनेमाई डायलाग सुन कर हंसी आती है। जब देश युद्ध जैसे हालात में हो तो आपको अपने संवादों की पड़ी है। गोदी मीडिया के हिसाब से तो अभी इस्लामाबाद पर हमारा कब्जा होना चाहिए था और वहां जनरल मुनीर को फांसी दी गई…मुनीर बैरक में छुपा हुआ है…। उफ्फ…। आम जनता को सब समझ आ रहा कि यह किस तरह का विमर्श तैयार किया जा रहा है। सब सत्ता को खुश करने के लिए किया जा रहा है। सब जानते हैं कि गोदी मीडिया कह कुछ और रहा, उसका उद्देश्य कुछ और है। इसलिए जनता ने इन्हें गंभीरता से लेना बंद कर दिया है।

बतौर भूतपूर्व अभिनेता आपको इन ‘डायलाग’ देने वाले अभिनेताओं से डर लगता है कि फिर आप जैसे लोगों की क्या उपयोगिता रह जाएगी? खास कर तब जब बालीवुड व हालीवुड के नामचीन इनका साक्षात्कार करने लगे हैं।

शत्रुघ्न सिन्हा(बहुत जोर से हंसते हुए…) क्या कमाल की बात कही आपने। फिल्मी दुनिया के लोगों को तो डर ही जाना चाहिए कि अब उनका क्या होगा। पर ये सब संवाद अदायगी बाजार में पुरानी हो चुकी है।

आपको राजनीति में एक लंबा समय हो गया। पहले राजनीति में परिवार को अलग रखा जाता था। इन दिनों कुछ होते ही सत्ता पक्ष समर्थित पूरी ‘ट्रोल’ सेना किसी के परिवार के पीछे पड़ जाती है। विक्रम मिसरी के परिवार से लेकर पहलगाम में शहीद हुए की पत्नी हिमांशी नरवाल पर घोर आपत्तिजनक निजी हमले हुए। आज हालात ऐसे हैं कि कोई मुसलिम, किसी हिंदू का दोस्त नहीं हो सकता। इस स्थिति पर आपका क्या कहना है?

शत्रुघ्न सिन्हायह बहुत ही निंदनीय और शर्मनाक स्थिति है। इस ‘ट्रोल’ सेना की तो दिहाड़ी तय है कि इतनी टिप्पणियों पर इन्हें इतने पैसे मिलेंगे। सत्ता पक्ष के बड़े से बड़े नेता इन्हें बढ़ावा देते हैं, इनकी हौसला अफजाई करते हैं। आपने भी देखा होगा कि किसी मुद्दे पर ‘ट्रोल’ सेना से लेकर कई फिल्मी सितारों के समूह ‘एक्स’ पर एक जैसी ही पोस्ट करते हैं। आप कुछ भी बोलें ये टिप्पणी में आदेश के तहत मिले वाक्य चिपकाते जाते हैं। जो विक्रम मिसरी के परिवार के साथ हुआ अविश्वसनीय था। आपके जरिए हीसत्ता पक्ष को संदेश देना चाहता हूं कि संदेशवाहक की हत्या मत कीजिए। सरकार से असहमत होते ही आपके परिवार को गालियां पड़ने लगती हैं। मेरे अपने ही परिवार में एक शादी के बाद सभी इनके निशाने पर आ गए। मैंने तो डंके की चोट पर कहा कि शादी मेरी बेटी की है, मैं उसका साथ दूंगा। शादी मेरी बेटी की है, उसे अपनी जिंदगी का फैसला खुद लेना है। सबसे बड़ी बात यह कि क्या उसने कोई असंवैधानिक काम किया है? अगर मैं साथ नहीं भी देता तो वो वयस्क है और उसे अपने फैसले लेने का अधिकार है। चिंता तो शीर्ष नेतृत्व को करनी चाहिए कि उनके समर्थक कैसा निंदनीय व्यवहार कर रहे हैं। भाजपा को कहना चाहता हूं कि गालियों का अंबार लगा देने वाली अपनी ‘ट्रोल’ सेना पर कठोर कार्रवाई कर उन्हें संदेश दें कि संदेश देने वाले की हत्या तो नहीं की जाती है। कई बार इस प्रवृत्ति से पूरे देश को शर्मसार होना पड़ रहा है।

सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच सत्ता वाले का पलड़ा इसलिए भारी हो गया है कि उनके पास धुलाई मशीन है। प्रतिपक्ष से पक्ष में आने के इच्छुक नेताओं के सारे पाप धो डालती है। इस धुलाई मशीन पर आपकी प्रतिक्रिया?

शत्रुघ्न सिन्हा(हंसते हुए…) मेरी हंसी ही आपके कमाल के सवाल का जवाब है। पहले पुस्तिका छपी और उसमें उद्धृत लोग कतार से मशीन में धुलने आ जाते हैं। महाराष्ट्र के उननेताओं की मैं बहुत इज्जत करता हूं, वे सब इसमें धुल कर सत्ता पक्ष के समर्थन में आ गए। अजित पवार से मुझे कोई निजी दिक्कत नहीं। लेकिन सत्ता के शीर्ष ने कहा किसत्तर हजार करोड़ का घोटाला हुआ है। भाजपा के साथ गठबंधन होते ही हर किसी का दाग धुल जाता है।

प्रस्तुति : मृणाल वल्लरी
विशेष सहयोग: राजीव रंजन तिवारी